मानवमन की अभिव्यक्ति की आदि विधा है कविता ,यह आँखों के आँसू पोंछती है

साहित्य सम्मेलन में कवयित्री डा सुधा सिन्हा के काव्यसंग्रहगगरिया छलकत जाए‘ का हुआ लोकार्पण,

कविसम्मेलन में पढ़ी गई हृदयग्राही कविताएँ और ग़ज़ल 

मानव-मन की अभिव्यक्ति की आदि विधा है कविता ,यह आँखों के आँसू पोंछती है

पटना,१८ अक्टूबर । मानवमन के अनेकों घनीभूत भावों,वेदना और गहनगंभीर अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की आदि विधा है कविता। यह वेदनाग्रस्त आँखों के आँसू पोंछती हैमन को धैर्य और हृदय को नवीन ऊर्जा प्रदान करती है। यह मानवमन को बदलती और आनंद प्रदान करती है। इसमें एक ऐसी सूक्ष्म शक्ति हैजिससे दुनिया बदलती हैक्योंकि यह एक हृदय से निकल कर सबके हृदय तक पहुँचती है।

यह बातें शुक्रवार की संध्या,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवयित्री डा सुधा सिन्हा की पहली काव्यपुस्तकगगरिया छलकत जाएके लोकार्पणसमारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा सुधा जी मूलतः दर्शन की छात्रा और अध्यापिका रही हैं,किंतु इनकी कविता की धारा प्रेमऋंगार और प्रकृति को समेट कर बहती है। इनकी रचनाओं में सीख और साखी भी है। कवयित्री में पर्याप्त संभावनाएँ हैं। काव्य का कलापक्ष जैसेजैसे सुदृढ़ होगारचना का स्तर उतना हीं ऊँचा होता जाएगा।

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पुस्तक का लोकार्पण करते हुएवरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह विदेहने कहा किलोकार्पित पुस्तक में संकलित रचनाओं से विदित होता है किकवयित्री में टिकाऊ और बड़ी कविता लिखने के लिए पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है। इन सामग्रियों को रूप देकर कविता को व्यापक बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि कवि का कार्य बहुत कठिन है। बड़ी पीड़ा से गुज़रने के बाद बड़ी कविता लिखी जाती है।

समारोह के मुख्य अतिथि और सुप्रसिद्ध कहानीकार जियालाल आर्य ने कहा किकवयित्री ने अपने भावों को जिस प्रकार प्रस्तुत किया है उससे लगता है कि ये आत्मा से लिखी हुई पंक्तियाँ हैं। 

इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा किसुधा जी की रचनाओं में मांटी की सुगंध है।

अवकाश प्राप्त भा प्र से अधिकारी एवं साहित्यसेवी श्यामजी सहायसम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंहडा पुष्पा जमुआरकालिन्दी त्रिवेदीडा मेहता नगेंद्र सिंहडा जनार्दन प्रसाद सिंह तथा आचार्य पाँचू राम ने भी कवयित्री के प्रति शुभकामनाएँ व्यक्त की।

इस अवसर पर आयोजित कविसम्मेलन का आरंभ जय प्रकाश पुजारी ने अपनी वाणीवंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने हालेदिल यों बयान किया कि, “हालात ने इस दिल को समंदर बना दिया/हर नज़र को दिलवर ने ख़ंजर बना दिया” । गीत के चर्चित कवि आचार्य विजय गुंजन ने गीत को स्वर देते हुए कहा कि, “तेरे पाज़ेब बांधे पाँवों की रुनझुन में/मेरा मन खो गया अनजान सी मंजुल धुन में।

कवि घनश्याम का कहना था कि, “विगत के भेद गहरे खोलते हैंयहाँ बेजान पत्थर बोलते हैं/दामनशोषण,तबाही की कहानी/जलेटूटे,ढहे घर बोलते हैं

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अपने कृतज्ञता ज्ञापन के क्रम में कवयित्री डा सुधा सिन्हा नेगौरैया का नज़रानाशीर्षक से अपनी रचना का पाठ किया। कहा– “भोर होते ही वह चहचह करती/कानों में मधुरस घोलती/बोझिल आँखें फिर भी नहीं खुलतीप्रिय मेरे तुम बने परदेशीकैसे हो तुम मेरे हितैषीराह देख आँखे थकीसाँसे भी मेरी अटकी

अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में डा सुलभ ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि, “है न कोई जगह बाक़ीदर्द सारे दिल में हैऔर भी दुनिया का सारा ग़म हमारे दिल में हैहै बहुत शातिर हमारे खाब का क़ातिल मगरऔर बहुत सपने सुहानेमंज़र नज़ारे दिल में है।

वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुरओम् प्रकाश पाण्डेय प्रकाश‘,सुनील कुमार दूबे,डा मीना कुमारी परिहार‘,पूनम सिन्हा श्रेयसी,डा शालिनी पाण्डेय,डा मनोज गोवर्धनपुरी,इन्दु उपाध्याय,माधुरी भट्टऋचा वर्मासचिदानंद सिन्हालता प्रासर,श्रीकांत व्यास,डा उमा शंकर सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवादज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।

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