कोरोना जैसे मानवीय संकट पर साम्प्रदायिक नफरत के सौदागरों की मानसिक दीवालियेपन की तहों को चर्चित नाविलनिगार मुशर्रफ आलम जौकी ने उधेड़ कर बेनकाब कर दिया है.

नफरत के बीच उम्मीद की किरण

मुशर्रफ आलम जौकी, चर्चित साहित्यकार व पत्रकार


बांद्रा स्टेशन। पहला ब्यान , विनय दुबे। जिसने अफवाह उड़ायी कि ट्रैन व्यवस्था चालु हो चुकी है। यह व्यक्ति अब महाराष्ट्र पुलिस की हिरासत में है।
दूसरा ब्यान , रजत शर्मा , जिस के नफरत भरे ट्वीट ने गोदी मीडिया में सनसनी पैदा कर दी। तीसराब्यान कपिल मिश्रा , जिसके आग लगाने वाले भाषण ने साम्प्रदायिकता को हवा दी।

आजकल यही खेल हो रहा है। लॉक डाउन में क्रोना के वायरस से अधिक अगर कोई वायरस काम कर रहा है तो वह मीडिया वायरस है।

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विनय की सुचना वायरल हुई तो सैकड़ों प्रवासी मज़दूर घर जाने के लिए बांद्रा स्टेशन पहुंच गए। रजत शर्मा के ट्वीट में इन प्रवासी मज़दूरों को मुसलमान बताया गया। और बांद्रा स्टेशन की जगह रजत की हिंसात्मक मानसिकता ने स्टेशन को मस्जिद में तब्दील कर कर दिया ।

आग लगाने का ज़िम्मा कपिल मिश्रा का था। इस से पहले कि अलका लाम्बा रजत शर्मा के ट्वीट की निंदा करती , रजत ने अलका को ब्लॉक कर दिया। मराठी पत्रकार निखिल वागले ने फौरन जवाब दिया। बेशर्मी की हद हो गयी। लेकिन हद किस से हुई ? रजत से ? विनय दुबे से ? या कपिल मिश्रा से।

पिछले छह वर्षों से तमाम मुस्लिम विरोधी मंसूबे इसी तरह काम कर रहे हैं। अब सवाल है , एक इशारे पर ताली , थाली बजवाने वाली सरकार क्या इन पाखंडों को रोक नहीं सकती ? दूसरा सवाल है , क्या इन पाखंडों में स्वयं सरकार भी शामिल है ? मुसलामानों के सामाजिक आर्थिक वहिष्कार से क्या सभी समस्याएं सुलझ जाएंगी ?

तो ये हैं मुहरे

जो मंसूबों का पालन कर रहे हैं , वह केवल मुहरे हैं। लेकिन यह मुहरे देश को विभाजन या साम्प्रदायिक दंगों की तरफ धकेल रहे हैं। यह देश मुसलामानों का भी है। इसलिए कि पाकिस्तान बनने के बावजूद देश के वफादार मुसलामानों ने पाकिस्तान को मंज़ूरी नहीं दी। वे यही रहे।

इसलिए अब कोई भी विभाजन मुसलामानों को मंज़ूर नहीं होगा।


यह सत्य है कि देश का मुसलमान किसी भी राजनितिक पार्टी से नफरत नहीं करता। इतिहास भले मिटा दिया जाए लेकिन मुसलामानों के बलिदानों की कहानियां अभी अगले सौ वर्ष तक इस देश में जीवित रहेंगी। मुसलमान इस राजनितिक रहस्य को समझ चुके हैं कि केजरीवाल हों , या माया , या कांग्रेस ,सब नरम गर्म धर्म की राजनीति में उलझे हैं। इस लिए पधानमंत्री को यह ज्ञात होना चाहिए कि इस देश का मुसलमान उनका दुश्मन नहीं है। जब भारत में अकेले केवल एक ही पार्टी की सत्ता है तो मुसलमान अब किसी और पार्टी के बारे में विचार नहीं कर सकते .

नफरत में भी अम्न की मानसिकता


लेकिन प्रधान मंत्री को यह भी सोचना और देखना होगा कि आज देश उस स्थिति में पहुंच गया है जहाँ सब्ज़ी वाले तक हिन्दू सब्ज़ी वाले और मुसलमान सब्ज़ी वाले का बोर्ड लगा रहे हैं। मुझे एक मुस्लिम बस्ती में एक दिलचस्प बोर्ड नज़र आया। एक हिन्दू सब्ज़ी फरोश ने बोर्ड पर लिखा था — यहाँ मुसलमान रहते हैं। यहाँ मुझे कोई खतरा नहीं। यहाँ सुरक्षित हूँ और आराम से सब्ज़ी बेचता हूँ। सच जानिये , देश की असल मानसिकता यही है। इसलिए देश कभी टूटेगा नहीं। ये वह मानसिकता ही नहीं जहाँ सैकड़ों लोग सोशल वेबसाइट पर मुसलामानों को काटने मारने और पाकिस्तान भेजने की बात करते हैं। ये लोग भी एक दिन अम्न की उज्ज्वल मशाल उठाये हुए नज़र आएंगे.


अस्पताल में हिंदू वार्ड, मुस्लिम वार्ड

अहमदाबाद में करोना मरीज़ों के लिए दो वार्ड बनाये गए। हिन्दू वार्ड , मुसलमान वार्ड।
कल को हिन्दू अस्पताल और मुसलमान अस्पताल होंगे। हिन्दू डॉक्टर और मुसलमान डॉक्टर होंगे। मुस्लिम -हिन्दू चायवाला , मुस्लिम हिन्दू मॉल , मुस्लिम हिन्दू किराना की दूकान। यह कैसा मंसूबा है ? यह इस देश में क्या हो रहा है।

हिंदू पाठक का फोन

आज सुबह मेरी एक महिला पाठक का फोन आया। पूछा गया , तब्लीग़ी क्या बहुत गंदे और राक्षस परवर्ति के होते हैं। मैं ने उसे पहली बात बताई कि , इस बीच क्रोना काल में देश में पंद्रह लाख विदेशी आये। तीन हज़ार जमीयत वाले। बाक़ी कहाँ गए ? चौदह लाख संतानवे हज़ार ? दूसरी बात मैं ने बताई कि निजामुद्दीन में डाक्टरों की तरह टीमों ने मिल कर तीन दिन तक एक एक घर की जांच की. सात हज़ाए से अधिक लोगों की स्क्रीनिंग की। एक भी पॉज़िटिव केस नहीं मिला। फिर मैं ने पूछा , क्या २०१४ से पहले तुम्हें हिन्दू , मुसलामानों के बीच भेद भाव का एहसास हुआ। उसका सीधा उत्तर था — नहीं।


यह कैसे मंसूबे हैं ? हम यह जान चुके हैं कि इन मंसूबों के पीछे क्या है ? देश भी आहिस्ता आहिस्ता जान रहा है। क्योंकि बहुत बड़ी होती घृणा के बीच कुछ निखिल वागले और सब्ज़ी वाले जैसे लोग अब भी हैं जो देश को बचा लेंगे।

By Editor