विधानसभा अध्यक्ष के अपमान के पीछे क्या है असली कहानी

विस अध्यक्ष का अपमान किए जाने से बिहार सन्न है। अध्यक्ष का अपमान उन्हीं के दल भाजपा के सदस्य ने किया। क्या फिर ऐसी घटना नहीं होगी? आखिर घटना क्यों हुई?

कुमार अनिल

बिहार विधानसभा में आज जो कुछ हुआ, वह इतिहास में दर्ज हो गया। वर्षों तक लोग याद रखेंगे। ‘व्याकुल मत होइए’ भाजपा का ब्रांड बन गया। एनडीए की सरकार 16 वर्षों से है। आसन पर बैठे माननीय और माननीय विधायक दोनों सदन के पुराने सदस्य हैं। आज तक किसी सदस्य ने इस तरह आसन को उंगली दिखाकर अपमानित नहीं किया था, फिर इस बार ऐसा क्यों हुआ? इसे समझने के लिए बिहार की बदली हुई राजनीतिक स्थिति पर एक नजर डालना जरूरी है।

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बिहार में दो बड़े परिवर्तन हुए हैं और इसी में छिपा है आसन के अपमान की वजह। पहला परिवर्तन यह है कि हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, लेकिन वे गठबंधन में छोटे पार्टनर हैं। भाजपा बड़ी पार्टनर है। स्वाभाविक है मुख्यमंत्री का वही रुतबा नहीं हो सकता, जो तब था, जब वे बड़े पार्टनर थे।

दूसरा महत्वपूर्ण परिवर्तन है सुशील कुमार मोदी का सदन में न होना। पहले भाजपा में नेतृत्व पर कोई सवाल नहीं था। सुशील मोदी भाजपा के सबसे बड़े नेता थे। मुख्यमंत्री के साथ उनकी ट्यूनिंग भी शानदार थी। इस तरह जब मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी की जोड़ी सामने हो, तो भाजपा या जदयू में किसी के बड़बोले होने की कोई जगह नहीं थी। अब सुशील मोदी सांसद बन गए हैं और सदन में उनकी हैसियत का कोई ऐसा केंद्र नहीं है, जिसके इर्द-गिर्द पूरी भाजपा खड़ी रहे। यह एक तरह से नेतृत्व या केंद्रक का अभाव है।

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भाजपा में सुशील मोदी का स्थान कौन लेगा, यह अभी तक तय नहीं हो पाया है, जो दो काम एक साथ कर सके। भाजपा के केंद्र में भी हो और मुख्यमंत्री के साथ प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि सहयोगी की भूमिका में रहे।

भले ही भाजपा ने तकनीकी रुप से हर पद पर नियुक्ति कर दी हो, लेकिन वास्तविकता यह है कि अबतक सुशील मोदी का स्थान कोई भर नहीं सका है।

इसीलिए जबतक यह स्थान भर नहीं जाता, जिसे पार्टी के सभी सदस्यों का भी सम्मान हासिल हो और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भी तालमेल रखे, तब तक ऐसी शर्मनाक स्थिति के दुहराव को रोकने की गारंटी नहीं दी जा सकती। इसीलिए अनहोनी की आशंका बनी रहेगी।

उधर, राजद ने आसन के अपमान को मुद्दा बना दिया है।

By Editor