शाहबाज़ की इनसाइड पोलिटिकल स्टोरी

चिराग पासवान के प्रेशर पॉलिटिक्स कि वजह्कर NDA खेमे में फिलहाल अनिश्चितता है. लोजपा अध्यक्ष के हालिया राजनितिक दांव-पेंच को देखे तो वह अपने पिता के नक़्शे कदम पर चलकर बिहार में किंगमेकर बनना चाहते है और उनकी महत्वाकांक्षा बिहार चुनावो से आगे की नज़र आती है.

भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा कह चुके है की NDA (National Democratic Alliance ) की गठबंधन नीतीश कुमार के चेहरे के साथ चुनावी मैदान में उतरेगा और जीतने के लिए NDA खेमे के सभी प्रमुख दलों को एकजुट रहना होगा. लेकिन चुनावी समय में चर्चाएं चल रही है कि लोक जनशक्ति पार्टी, जीतन राम मांझी के जदयू में शामिल होने की सम्भावना को लेकर असहज है क्यूंकि मांझी के आने से लोजपा को मिलने वाले सीटों पर असर पड़ सकता है.

दरअसल लोक जनशक्ति पार्टी आगामी बिहार विधान सभा चुनाव के साथ साथ 2024 में होने वाले लोक सभा चुनावो को मद्देनज़र रखते हुए बिहार के सियासी पटल पर फूँक फूँक कर कदम रख रही है. लोजपा कम सीटों से संतोष कर NDA खेमे में अपना वज़न नहीं घटाना चाहती ताकि बिहार में सरकार बनाने की चाभी लोजपा के पास रहे और पार्टी आने वाले 2024 लोक सभा चुनाव में भी भाजपा के एक प्रमुख सहयोगी के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा सके.

लोजपा के प्रवक्ता संजय सिंह ने हाल ही में कहा था कि हमारी सीट में कमी का सवाल कहां है. संजय सिंह ने गठबंधन में सीट बटवारे पर कहा था कि लोकसभा चुनाव में लोजपा और भाजपा का स्ट्राइक रेट सौ फीसदी रहा था लेकिन जेडीयू एक सीट हारी थी. इस आधार पर लोजपा को 42 भाजपा को 105 और जेडीयू को 96 सीटें मिलनी चाहिए. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने हमें पहले ही आश्वस्त कर दिया है की जितनी सीटों पर हमने 2015 में चुनाव लड़ा था उतने पर हीं लड़ेंगे.

जदूय से अलग होने का जोखिम क्यों उठाना चाहते हैं चिराग?

लोजपा और जेडीयू में क्यों हो रहा टकराव

दरअसल लोक जनशक्ति पार्टी कम से काम 42 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है. 2015 बिहार विधान सभा चुनाव में पार्टी 42 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमे से 2 सीटों पर विजयी रही. लोजपा दलित वर्ग पर खासा पकड़ रखती है. ऐसे में अगर जीतन राम मांझी NDA में शामिल हो जाते हैं तो भाजपा और लोजपा दोनों पार्टियों को कुछ सीटों का त्याग करना पद सकता है. जो लोजपा की लॉन्ग टर्म निति के खिलाफ जा सकता है. लोक जनशक्ति पार्टी के नेता मांझी को NDA में लाने की कोशिशों को गठबंधन में लोजपा की शक्ति कम करने की एक चाल के रूप में देख रहे हैं.

वही लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान लगातार नीतीश कुमार के काम काज पर सवाल उठा रहे हैं. हाल ही में उन्होंने श्याम रजक का NDA से जाना दुर्भाग्यपूर्ण बताया वही बिहार में स्वच्छता पर सवाल उठाकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कामकाज पर सवाल उठाया। जिससे लोजपा और जदयू के बीच तनातनी बढ़ी.

क्या है चिराग पासवान की नीति ?

चिराग पासवान राज्य की राजनीती के साथ ही राष्ट्रीय राजनीती में भी अपनी छवि बनाने की कोशिश करते नज़र आ रहे है. अगर उनके हालिया मुद्दों की राजनीति को देखे तो वह JEE एवं NEET परीक्षाओं को स्थगित करने को लेकर और सुशांत सिंह राजपूत मामले पर अपने रूख को लेकर चर्चित है. इसके अलावा NDA खेमा उन्हें एक सहयोगी के रूप में देखता है. जानकार मानते है की अगर लोजपा NDA से अलग होने का फैसला करती है तो भी उसके पास खोने को कुछ नहीं है. क्यूंकि पार्टी के पास अभी कुल दो ही विधायक है. अगर इस बार लोजपा अधिक सीटों पर जीतती है तो वह फिर से बिहार में किंगमेकर की भूमिका में आ सकती है. इससे बिहार की राजनीती में पार्टी का कद तो बढ़ेगा ही इसके साथ ही वह NDA गठबंधन में जदयू के वज़न को घटा सकती है।
इसी लॉन्ग टर्म नीति की वजह से चिराग बिहार में भाजपा की सहयोगी ज़्यादा दिखना चाहती है न की जदयू के सहयोगी के रूप में. इसलिए वह नीतीश कुमार की अप्रत्यक्ष रूप से आलोचना करते रहते हैं.

कैसे बिहार में किंगमेकर बने थे रामविलास ?

फरवरी 2005 के बिहार चुनावो में चिराग पासवान के पिता एवं केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान किंगमेकर बनकर उभरे थे. जिसके बिना किसी भी पार्टी के लिए सरकार बनाना संभव नहीं था. लोजपा ने उस समय 31 सीटों पर विजयी रही थी. RJD 77 सीटों पर सिमट गई थी और BJP-JD (U) गठबंधन को 94 सीटों के साथ सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरा। सरकार बनाने के लिए 28 सीटें कम। रामविलास ने कहा था कि “अगर 2005 विधान सभा चुनाव में लोजपा ने राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन न किया होता तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बनते”.

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