Jharkhand Assembly Result 2019इन 6 कारणों से BJP झारखंड में हो गयी मटियामेट
नागरिकता कानून लागू होने के बाद हुए झारखंड Assembly चुनाव में BJP मटियामेट हो गयी. हमारे सम्पादक इर्शादुलह हक उन छह कारणों की पड़ताल की जिसके कारण रघुबर सरकार ध्वस्त हो गयी.

आइए इन छह कारणों को समझते हैं.

इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम

1.मॉब लिंचिंग

देश में ‘मॉब लिंचिंग’ शब्द को पहली बार सबसे ज्यादा पॉपुलरिटी झारखंड से ही मिली थी. यहां के तत्कालीन केंद्रीय मंत्री ने मॉबलिंचिंग के मुजरिमों को जमानत मिलने के बाद अपने घर पर दावत दी और उन्हें फूलों से स्वागत किया था. किसी केंद्रीय मंत्री द्वारा मॉबलिंचिंग के औचित्य को महिमामंडित करना झारखंड ने स्वीकार नहीं किया. इस राज्य में पिछले पांच सालों में आफिसियली 24 निर्दोषों को पीट पीट कर हत्या कर दी गयी. इनमें आदिवासियों और मुसलमानों की संसख्या सर्वाधिक थी.

 

2.आदिवासियों की उपेक्षा

हेमेंत सोरेन झारखंड के आदिवासियों को यह समझाने में सफल रहे कि भारतीय जनता पार्टी ने रघुबर दास को प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर थोप कर आदिवासी समाज की घोर उपेक्षा की. राज्य की कुल आबादी के 26.4 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. यह किसी भी सामाजिक ग्रूप से बड़ी आबादी है. झारखंड के आदिवासियों की 91 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है. इस लिहाज से अगर चुनाव परिणामों को ध्यान से देखें तो पता चलता है कि गांवों बहुल आदिवासी सीटों पर भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया है. उसे मात्र 5 आदिवासी बहुल सीटों पर जीत मिली जबकि हेमंत सोरेन की पार्टी ने 30 आदिवासी सीटों पर जीत हासिल की.

 

3.नागरिकता संशोधन कानून व एनआरसी

वैसे तो नागरिकता संशोधन कानून झारखंड चुनाव को प्रभावित करने के लिए अंतिम समय में दस्तक दी. लेकिन यह मानना होगा कि CAA और NRC ने भाजपा को जोरदार धक्का दिया और उसकी रही सही उम्मीदों को मटियामेट करने की भूमिका निभाई. चुनाव प्रचार के दौरान झारखंड मुक्ति मोर्चा प्रमुख हेमेंत सोरने ने इस मुद्दे को बड़ी जोरदार तरीके से उठाया और मुसलमानों के बजाये राज्य के आदिवासियों को यह समझाया कि अगर मुसलमानों की नागरिकता खतरे में पड़ी तो झारखंड में आदिवासी नेतृत्व की पार्टियों का वजूद मिट जायेगा. लिहाजा CAA और NRC आदिवासी समाज को फिर से जंगलों में भेज देने का षड्यंत्र है. सोरेन की इन बातों ने मुसलमानों और आदिवासियों की एकता को चट्टान के रूप में मजबूत कर दिया.

4.रघुबर दास का अंहकार

पिछले पांच वर्षों में रघुबर दास ने सत्ता को अपनी मुट्ठी में केंद्रित कर लिया था. किसी भी सामाजिक या राजनीतिक मुद्दों पर खुद भाजपा और सहयोगी दलों की एक भी नहीं चलती थी. इसके कारण विपक्ष के साथ साथ खुद भाजपा के अंदर भी उनके प्रति नाराजगी बढ़ती गयी. राज्य में विकास कार्यों में भारी भ्रष्टाचार पर जितनी भी आलोचनायें हो जायें लेकिन रघुबर इन गंभीर मुद्दों पर किसी कि नहीं सुनते थे. उधर विरोधियों ने जनता को यह समझाने में भी कोई कसर न छोड़ी कि रघुबर ने विकास का काम कम, झूठा प्रचार ज्यादा किया है. हेमंत सोरेन तो रघुबर दास का नाम ही ठगुबर दास रख दिया था और हमेशा वह उन्हें ठगुबर दास ही कह के पुकारते रहते थे.

5.सरयू राय फैक्टर

रघुबर दास कैबिने में सरयू राय एक कद्दावर मंत्री रहे.लेकिन सरूय राय की वाजिब आलोचना को भी रघुबर ने ठेंगा दिखा दिया और उन्होंने चुनाव में सरयू राय को टिकट से वंचित कर दिया. हालांकि माना जाता है कि इसके लिए सिर्फ रघुबर जिम्मेदार नहीं थे. रघुबर की पीठ पर डॉयरेक्ट अमित शाह का हाथ था. दोनों ने मिल कर सरयू राय को अपमानित किया. फिर क्या था सरयू राय ने अपने अपमान का बदला लेने की ठान ली. और उन्होंने जमशेदपुर ईस्ट सीट पर, जहां से रघुबर खुद चुनाव लड़ रहे थे, नामांकन भर दिया. झामुमो और कांग्रेस ने सरयू राय को अंदर से मदद की और नतीजा यह हुआ कि सरयू राय ने रघुबर दास को ही धूल चटा दिया.

 

6.गठबंधन सहयोगियों को अपमानित किया

भाजपा एक तरह से अहंकार में भरी थी. वह खुद को अजेय मान चुकी थी. उसे यह भी लगने लगा था कि जीत उसके अकेले दम पर होती है. सो उसने गठबंधन सहयोगियों को अपमान की हद तक नीचा दिखाया. कारण यह हुआ कि जदयू तो छोड़िये राज्य की महत्वपूर्ण पार्टी ऑल झारखंड स्टुडेंट्स युनियन का भी उसे साथ नहीं मिल सका. दूसरी तरफ विपक्ष ने एक मजबूत गठबंधन बना लिया. जिसका परिणाम सामने है.

 

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