गुजरात चुनाव के पहले चरण के बाद मोदी वैसे बयानों पर उतर आये हैं जैसे वह बिहार विधानसभा चुनावों में देते फिरते थे. क्या मोदी गुजरात में ठीक वैसे ही नर्वस हो गये हैं जैसे बिहार में हो गये थे? इर्शादुल हक,  एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम

 

कभी गुजरात मॉडल के विकास को भारत के लिए अनुकरणीय कहने वाले मोदी अब गुजरात मॉडल का नाम लेने से भी बचते रहे हैं. भाजपा का कोई नेता विकास के मुद्दे पर कूदने के बजाये संवेदनशील मुद्दे उठा कर वोटरों को अपनी भावनाओं के जाल में लपेटना चाहते हैं. उधर जब से कांग्रेस से सस्पेंड हो चुके नेता मणिशंकर अय्यर ने मोदी को नीच कहा तबसे मोदी इस शब्द को रामबाण की तरह इस्तेमाल करने में लगे हैं. वह अपनी तमाम सभाओं में यह दोहराना नहीं भूल रहे कि उन्हें नीच कहना गुजरात का अपमान है. वह अपनी गुरबत का रोना रो रहे हैं. खुद को चाय बेचने वाला कह कर अपनी खस्ताहाल जिंदगी को चुनावी हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसा लग रहा है जैसे गुजरात के वोटरों से दया और सहानुभूति का आखिरी तरकश चला कर उन्हें प्रभावित करना चाह रहे हैं. अपनी गुरबत का रोना रो कर जब मोदी ने वहां के वोटरों को बारबार याद दिलाया तो इसका जवाब मनमोहन सिंह ने ऐसा दिया कि मोदी भी हक्काबक्का रह गये. मनमोहन सिंह ने कहा कि गरीब तो मैं भी था. लेकिन मैं अपनी गरीबी का रोना रो कर नहीं चाहता कि लोग मुझ पर तरस खायें.

 

पाकिस्तान और अहमद पटेल

मोदी के भाषणों को जरा गौर से देखिए तो वह कांग्रेसी नेता अहमद पटेल को चुनावी हथियार के रूप में अब इस्तेमाल करने लगे हैं. वह कह रहे हैं कि पाकिस्तान की सेना और इंटेलिजेंस अहमद पटेल को गुजरात का सीएम देखना चाहते हैं. वह कह रहे हैं कि कांग्रेस को इस पर अपनी स्थिति स्पस्ट करनी चाहिए.  अहमद पटेल को मोदी से ऐसी राजनीति की पहले ही उम्मीद थी. लिहाजा पहले ही उन्होंने साफ कर दिया था कि वह गुजरात सीएम का न तो कभी उम्मीदवार थे ना भविष्य में होने वाले हैं.  लोगों को याद है कि ऐसे ही भाषण 2015 में अमित शाह ने बिहार के दूसरे चरण के बाद के चुनावों के समय दिया था. तब शाह ने कहा था कि अगर लालू यादव और कांग्रेस गठबंधन की जीत होगी तो पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे.  शाह के बिहार के भाषण और नरेंद्र मोदी के गुजरात के भाषण को गौर से देखने से पता चलता है कि मोदी और उनकी पार्टी वही गलती दोहरा रही है जो बिहार में की जा चुकी है.

पाकिस्तान भाजपाई राजनीति के लिए एक बड़ा हथियार रहा है. जब भाजपा के नेता पाकिस्तान का नाम लेते हैं तो उनका सीधा मकसद भारत के हिंदू वोटरों को पाकिस्तान के नाम पर डराना होता है. ऐसा लगता है कि मोदी अंदर से डर चुके हैं. और अंदर से डरा हुआ व्यक्ति अपना आत्मविश्वास और आपा दोनों खो चुका होता है. मोदी ने गुजरात में बिहार में की गयी एक और गलती दोहरा दी. मोदी ने बिहार में महागठबंधन पर आरोप लगाया था कि वह बिहार में मुसलमानों को आरक्षण देना चाहती है और यह आरक्षण अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों के हिस्से के आरक्षण को छीन कर दिये जाने का एजेंडा है. लेकिन बिहार के वोटरों ने मोदी के इस बात में नहीं आये. मोदी कुछ इसी तरह का भाषण गुजरात में देते हुए कहा कि कांग्रेस पाटीदारों को आरक्षण देना चाहती है और यह तब संभव है जब वह अन्य पिछड़े वर्गों और एससी एसटी के आरक्षण में सेंधमारी करे. हालांकि कांग्रेस और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने साफ कर दिया है कि आरक्षण का दायरा बढ़ाया जायेगा जिसमें किसी के मौजूदा आरक्षण से छेड़-छाड़ नहीं होगा.

गुजरातियों की दया हासिल करने के लिए

मोदी गुजरात में एक और रणनीति अपना रहे हैं. वह गुजरातियों की दया हासिल करने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं. दया हासिल करने के लिए वह खुद को बेबस , कमजोर, गरीब और पिछड़ी जाति का बता कर लोगों की भावनाओं तक पहुंचना चाह रहे हैं. यह मोदी के उस आभामंडल के एक दम विपरीत है जो खुद को देश का सबसे ताकतवर और साहसी प्रधानमंत्री साबित करने में लगा रहा है. चुनावों से पहले खुद की 56 इंच छाती का बखान करने वाले प्रधानमंत्री अब नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के अपने कथित साहस का उल्लेख तक नहीं कर रहे हैं.  हालांकि अभी तक गुजरात के दर्जनों भाषणों के बावजूद उनका कोई भी भाषण ऐसा नहीं रहा जिसमें वह लोगों के सामने आंसू बहाये हों. यह शायद इसलिए भी हो सकता है क्योंकि चुनावों से पहले राहुल ने यह कह डाला था कि देखना मोदी जी वोट मांगने के लिए रोने का नाटक भी कर सकते हैं. वैसे मोदी पिछले डेढ़ वर्षों में भरी सभा में दो बार रो चुके हैं और लोगों ने उन्हें अपने रुमाल से आंसू पोछते हुए देखा है. लेकिन  सच यह भी है कि मोदी ने चुनाव प्रचार के दौरान  खुद को नीच कहे जाने पर जितना संभव था उतना लोगों की संवेदना तक पहुंचने का प्रयास कर चुके हैं.

गुजरात में पहले चरण में 88 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं. बाकी बची सीटों पर 14 दिसम्बर को चुनाव होना है. पिछले 22 वर्षों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा, के लिए यह चुनाव अब तक का सबसे कठिनतम चुनाव साबित हो रहा है. इस बात को समूची भाजपा और खुद नरेंद्र मोदी भी समझ रहे हैं.

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