क्या नीतीश कुमार वैचारिक रूप से समृद्ध पार्टी नेताओं से असुरक्षित महसूस करते हैं?

नीतीश कुमार के बारे में धीरे धीरे यह मान्यता प्रचलित होती जा रही है कि उन्हें अच्छे पढ़े लिखे और तेजतर्रार लोग नहीं सुहाते । जाहिर है जो सही मायने में शिक्षित होंगे वो अपने आत्मसम्मान के प्रति भी सजग होंगे । इसके अनेक  उदाहरण हैं ।

नौकरशाही मीडिया

 तीन-चार साल पहले नीतीश कुमार ने दो लोगों को एक साथ अपनी पार्टी का प्रवक्ता बनाया। एक  रोहतास निवासी घनश्याम तिवारी और दूसरे पटना के बिक्रम निवासी और आईएएस के इंटरव्यू तक पहुंच चुके नवल शर्मा । उस दौर में इन दोनों ने राष्ट्रीय मीडिया में और टीवी के डिबेट में जिस मजबूती से नीतीश का पक्षपोषण किया उसकी चारों ओर सराहना हुई । तिवारी ने सोशल मीडिया से लेकर नीतीश के ट्विटर एकाउंट को सजाने में अपनी सारी ऊर्जा लगा दी । कहा जाता है कि घनश्याम के पास जब पटना में आवास उपलब्ध नहीं था तब वो पटना बेली रोड के किनारे अपनी मटीज कार में ही सो जाते थे और सुबह सुलभ शौचालय में निवृत हो और रोड के ठेला पर खाकर अपने लैपटॉप को लेकर दिनभर नीतीश की सेवा में लगे रहते थे ।
 

नवल, घनश्याम,शाश्वत, पीके

 
कुछ ऐसा ही समर्पण भाव नवल शर्मा का भी रहा । नवल शर्मा अध्यनशील और चिंतनशील व्यक्ति हैं. जो राजनीति की गहरी समझ रखते हैं और अपने मजबूत तर्कों से टीवी डिबेट में विरोधियों को चित करने का माद्दा रखते हैं. टीवी डिबेट्स में संबित पात्रा और राकेश सिन्हा जैसों की धुलाई करते नवल शर्मा के तर्क  व बॉडी लैंग्वेज काफी प्रभावी रही है.
 

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जदयू के ये दोनों प्रवक्ता अब कहां हैं? अगर आप टीवी डिबेट्स देखते होंगे तो शायद आप को पता हो कि  घनश्याम तिवारी को सपा ने अपना राष्ट्रीय प्रवक्ता बना दिया है.
 नवल शर्मा अभी जदयू की राजनीतिक सलाहकार समिति के सदस्य और बिक्रम विधानसभा से अगले विधानसभा की चुनावी तैयारी में कूदे हुए हैं । पूछने पर सीना तानकर बोलते हैं , मैं राजनीति करने आया हूँ , राजनीति ही कर रहा हूं पर भूमिका जरा बदल गयी है.
यह महज संयोग भी नहीं कि जिस दिन से बिहार में राजद और जदयू का गठबंधन टूटा उसी दिन से नवल शर्मा टीवी डिबेट्स में नहीं दिखते. हालांकि नवल शर्मा इन दिनों जिस तरह से बिक्रम विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय हैं, उससे उनकी राजनीति में जमीनी पहचान काफी बढ़ी है. वह जिस तरह से सक्रिय हैं उससे लगता है कि वह चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. तभी वो बुलन्द आवाज में बोलते हैं कि अभी तो खेल शुरू हुआ है ।

नीतीश का खौफ

 
पर एक बात है दोनों में से कोई भी न तो नीतीश कुमार की आलोचना करते और न हीं सुनते, पर उनके होंठों की सर्द मुस्कान भीतर की सारी तिक्तता को बयान कर देती है । कुछ ऐसा ही हाल शाश्वत गौतम और अब हाई प्रोफाइल प्रशांत किशोर का भी हो रहा । तो ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या वाकई नीतीश पढ़े लिखे लोगों से असुरक्षित और असहज महसूस करते हैं ?
दर असल किसी भी राजनीतिक शिखर पर बैठा व्यक्ति अपने शिखर से गिरने के खौफ का शिकार होता है. यह खौफ जितना अपने विरोधी दलों से होता है लगभा वैसा ही अपने दल के भीतर से होता है. विरोधी शक्तियों से तो नेता हर पल निपटता रहता है लेकिन आंतरिक चुनौतियों पर नता को भरोसा नहीं होता. शिखर पर बैठे नेता अगर अपने सहयोगियों पर भरोसा जताये और एक मजबूत टीम बनाये तो इससे नुकसान नहीं फायदा ही है.

By Editor