दोबारा जनता का दरबार लगाने पर क्यों मजबूर हुए नीतीश

दोबारा जनता का दरबार लगाने पर क्यों मजबूर हुए नीतीश

NDC Desk

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जनता के दरबार में मुख्यमंत्री ( Janta Darbar) कार्यक्रम 2016 में हमेशा के लिए बंद कर दिया था. पांच साल बाद उन्हें अपने फैसले को क्यों पलटना पड़ा?

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता की समस्याओं से सीधे जुड़ने और उन समस्याओं के निदान के लिए इस कार्यक्रम को करते थे. लगभग दस सालों तक वह इसे पूरी तन्मयता से पूरा करते रहे. हर सोमवार को अलग-अलग विषयों से जुड़े मामले सुने जाते थे. आन स्पाट समस्या के समाधान की कोशिश की जाती थी. लेकिन इस कार्यक्रम को उन्होंने 2016 में बंद कर दिया.

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तब उन्होंने कहा था कि आम लोगों की समस्या को गौर से देखने के बाद उन्होंने यह अनुभव किया था कि लोक सेवा से जुड़े मुद्दे पर अगर बाध्यकारी कानून बना दिया जाये तो लोगों को मुख्यमंत्री तक आने की जरूरत नहीं होगी. इसी के बाद बिहार सरकार ने राइट टु सर्विस एक्ट बनाया. लोक सेवाओं के अधिकार के तहत आने वाली तमाम सेवाओं को पूरा करने के लिए निश्चित समय निर्धारित कर दी गयी. इसके बाद नीतीश कुमार ने ऐलान कर दिया था कि अब जनता के दरबार में मुख्यमंत्री कार्यक्रम नहीं होगा.

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लेकिन 2020 के विधान सभा चुनाव में जनता दल युनाइटेड के शर्मनाक प्रदर्शन के बाद नीतीश कुमार ने महसूस किया कि जनता से कट जाने के कारण ऐसी स्थिति आयी है. चुनाव के तुरत बाद तब नीतीश कुमार ने घोषणा की थी कि जल्द ही वह जनता के दरबार में मुख्यमंत्री ( Janta Darbar) कार्यक्रम शुरू करेंगे. इस बीच कोरोना की विकराल स्थिति के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सका था. लेकिन आज यानी 12 जुलाई से यहकार्यक्रम फिर सोमवार को हुआ करेगा.

असल 2020 के चुनाव में जनता दल युनाइटेड को मात्र 43 सीटें मिली थीं. उसकी छोटी सहयोगी भाजपा ने उससे दोगुणा से कुछ ही कम यानी 74 सीटों पर जीत हासिल की थी. जबकि मुख्य विपक्षी दल राजद सबसे बड़ी पार्टी बनी. राजद ने 75 सीट पर जीत दर्ज की थी.

नीतीश कुमार अक्सर कहा करते हैं कि जनता से सीधा संवाद करने के बाद जो अनुभव प्राप्त होता है वह सबसे सटीक होता है. आप समझ पाते हैं कि जनता सरकार से क्या उम्मीद करती है. ऐसे में यह कार्यक्रम शुरू करके नीतीश जनता से सीधा जुड़ना चाहते हैं ताकि वह अपनी खोई हुई लोकप्रियता हासिल कर सकें.

By Editor