इस्लाम धर्म निरपेक्षता( Islma , Secularism) और बहुलतावाद का पोषक है
एक कट्टर और संकीर्ण धर्म के विपरीत इस्लाम उदार और धर्म निरपेक्ष है. यह अल्लाह और उसके आदर्शों के लिए समर्पित है. जो अल्लाह पर अपना सर्वस्व निछावर कर देता है तथा भलाई करने वाला होता है वह अल्लाह से अपना इनाम पायेगा. ऐसे लोगों को कोई भय नहीं होगा और न वही वह दुखी होगा.
इसके अलावा कुरआन में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि बहुदेववादी काफिर होता है. फिर भी अपने धर्म के लिए दूसरे को सताता है चाहे वह कोई मुस्लिम ही क्यों ना हो, वह काफिर है. अल्लाह का हुक्म है- इस्लाम में कोई बाध्यता नहीं है ( 2.256)
इस्लाम में न्याय का मानक पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष है.
“हे अल्लाह के बंदों, निष्पक्ष कार्य के गवाह के रूप में अल्लाह के लिए दृढ़तापूर्ण डटे रहो और दूसरे लोग आप से नफरत करते हैं, उनके कारण कभी भी गलत काम मत करो और न ही न्याय के मार्ग से अलग होओ. धार्मिक बनों और अल्लाह से खौफ खाओ. वह तुम्हारे सभी कार्यों को देख रहा है”( 5-8)
अल्लाह के दर पर तौहीद सबको समान मानता है इस कारण तौहीद जो सबको बराबर मानता है, सभी धर्मानुयाइयों की अगुवाई करता है. लोगों को कल्याणकारी कामों में लगाता है और मानव जाति को प्रसन्न रखता है.
Islam सम्पूर्ण सृष्टि के लिए है तथा सुधारों का द्वार खोलता है
इस्लाम का उद्देश्य मानव जाति औऱ अल्लाह की सृष्टि के कल्याण के साथ ही सैन्य कार्रवाई और अन्याय के विरुद्ध लोकहित में दुनिया के सभी अच्छे लोगों को संगठित करना है.
पवित्र कुरआन अल्लाह का वचन है, जो लगभग 25 वर्षों की अवधि में पैगम्बर पर अवतीर्ण हुआ था. यह संकेत देता है कि विश्व कल्याण आदि कार्य के निमित पैगम्बर को समकालीन आवश्यकताओं की पृष्ठभूमि में ठीक मार्ग का दिग्दर्शन कराया गया था.
इस्लाम एक धर्मनिरपेक्ष धर्म है, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता पृथ्वी पर शांति और प्रगति के उद्देश्य से सद्भावना और सह-अस्तित्व की अपील के साथ अन्य धार्मिक पद्धति को महत्व प्रदान करता है.
इस्लामिक सिद्धांत पर आधारित संस्कृति और सभ्यता आधुनिक विश्व के साथ सामंजस्य स्थापित करता है. इसलिए इस्लाम लगातार विकास कर रहा है, जबकि इसके ही समकालीन यहूदीवाद ठहर गया.
कुराआन का उद्धरण है- अल्लाह किसी की तकदीर तबततक नहीं बदलत सकता, जब तक कि कोई अपने आप में खुद न बदलना चाहे) 3.11)
यही बात मुस्लिमों के लिए कही गयी है कि अतिवाद या हिंसक विचारधाराओं या धर्मों विज्ञानियों से दूरी बना कर मुसलमानों को अपने धर्म की चिंता करनी चाहिए और इसका प्रचार-प्रसार करना चाहिए.