आपने नीतीश के प्रचार तंत्र को संभालने वाले प्रशांत किशोर का नाम तो खूब सुना लेकिन नौकरशाही डॉट इन आज लालू के गुमनाम प्रशांत किशोर के रहस्य से पर्दा उठा रहा है.लालू के इस प्रशांत किशोर ने नीतीश के जद यू से भी राजद को बड़ी सफलता दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट इन
लालू के प्रशांत किशोर हैं- नाम है संजय यादव. एक गुमना सा युवा. छरहरी काया, आंखों में आत्मविश्वास की तेज चमक पर स्वभाव से शौम्य. प्रशांत किशोर के बरअक्स संजय यादव की तीन लड़कों की टीम ने सोशल मीडिया से ले कर गांव की पगडंडियों तक कोहराम मचा दिया. नतीजा यह हुआ कि राष्ट्रीय जनता दल ने जनता दल यू से 9 ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रहा. जबकि दोनों ने बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा. इतना ही नहीं संजय की टीम ने सोशल मीडिया पर यह करिश्मा बिना किसी तामझाम और लाव लश्कर के कर दिखाया जबकि नीतीश कुमार के प्रशांत किशोर के बारे में चर्चा है कि उन्हें करोड़ों रुपये भुगतान किये गये. दर्जनों प्रोफेशनल्स की टीम दिन रात लगी रही सो अलग.
संजय का कमाल
आखिर संजय यादव ने क्या कमाल ढ़ाया और कैसे गुमनामी में रह कर बेजान और निराशा से भरे राजद के जिस्म में रूह फूकने में बड़ी भूमिका निभाई?
यह सितम्बर 2015 की 21 तारीख थी. सुबह 9 बजे आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हवाले से खबर आई कि उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा है कि दलितों-पिछड़ों को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा होनी चाहये और इस की मानरिटिंग के लिए गैरराजनीतिज्ञों की समिति बननी चाहिये. यह खबर नेट पर पढ़ते ही संजय अपनी कुर्सी से उछल पड़े. उन्हें लगा कि भागवत का यह बयान, राजद के लिए रामबाण साबित हो सकता है. उन्होंने फौरन इसकी प्रिंट ली और तेज कदमों से वहां चले गये जहां लालू प्रसाद मजूद थे. उन्हें पढ़ के सुनाया और कहा कि भागवत की इस टिप्पणी के खिलाफ एक ऐसे आक्रामक बयान की जरूरत है जो पूरे बिहार ही नहीं बल्कि समूचे देश को उद्वेलित कर दे. लालू की अनुभवी नजरें भी इस बयान की राजनीतिक गहराई को भांपने में देर नहीं लगाई. उन्होंने संजय को बयान दर्ज करवाया. लेकिन संजय को लगा कि इसमें और आक्रामकता की जरूरत है. सो सुबह के ग्यारह बजते बजते लालू के फेसबुक और ट्विटर पेज पर एक बयान आया- ‘अगर मां का दूध पिया है तो आरक्षण खत्म करके दिखाओ. मैं अपने जान की बाजी लगा दूंगा लेकिन आरक्षण खत्म करने की किसी साजिश को कामयाब होने नहीं दूंगा’.
घंटे भर में देखते देखते लालू का यह बयान सोशल मीडिया पर वॉयरल हो गया. और शाम होते होते टीवी चैनलों की बड़ी खबर बन गयी.सारे चैनल्स पर प्राइम टाइम डिबेट का सब्जेक्ट भी आरक्षण बन गया. बस क्या था यह खबर संचार माध्यमों के द्वारा खेतों खलियानों तक पहुंच गयी और तभी यह तय सा हो गया कि लालू ने चुनावी बाजी को अपने पक्ष में कर लिया है.
लाठी से लैपटाप तक
दर असल संजय यादव पहली बार 2012 में लालू प्रसाद के छोटे बेटे तेजस्वी के रणनीतिकार के रूप में शामिल हुए. उस समय लालू तेजस्वी को प्रोमोट करने की शुरुआत कर रहे थे. युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करना एक बड़ी चुनौती थी. संजय बताते हैं- हमारी चुनौती थी कि राजद को लाठी की पहचान से बाहर निकाल कर लैपटॉप तक कैसे पहुंचाया जाये. इसके लिए संजय सबसे पहले तेजस्वी के सोशल मीडिया कैम्पेन को अपने हाथों में लिया. उस समय लालू प्रसाद समेत राजद के तमाम बड़े से ले कर मझौले नेता सोशल मीडिया के वर्चुअल वर्ल्ड से अनभिज्ञ थे. देखते देखते राज के तमाम विंग सोशल मीडिया पर दस्तक देने लगे. इसके लिए संजय ने फेसबुक पर एक्टिव बिहार में समान विचारों के युवाओं को पहले जोड़ा. उन्हें आमंत्रित कर तेजस्वी से मीटिंग कराई. फिर क्या था अगल कुछ ही महीनों में तमाम जिलों की इकाइयां भी फेसबुक पर नमूदार ही नहीं हुई बल्कि पूरी आक्रामकता से धूम मचाने लगीं.
दूसरे फेज में संजय की सबसे बड़ी चुनौती थी कि कैसे राजद को बदनाम करने और उसकी छवि को धुमिल करने वाले मुद्दों से निपटा जाये. विरोधियों द्वारा राजद को जंगल राज का पर्याय बना देने की काट खोजने के बारे में संजय बताते हैं हमने तय किया कि विरोधियों ने जिसे हमारी कमजोरी घोषित की है उसे ही अपनी ताकत बनाना है. इसी सोच के बाद पटना समेत बिहार के तमाम शहरों में एक नारा बुलंद हुआ- गरीबों को दी आवाज/ उसे कहते हो जंगल राज.
इस नारे की होर्डिंग में न सिर्फ आकर्षण था बल्कि गरीबों की भावनाओं को सीठा टच करने वाला भी.
कौन हैं संजय यादव
32 वर्षीय संजय मूल रूप से हरियाणा के रहने वाले हैं.उन्होंने कम्प्युटर साइंस में एमएससी की उपाधि के अलावा एमबीए की डिग्री भी ली है. राजनीतिक-सामाजिक विषयों पर गहरी समझ रखते हैं. सामाजिक न्याय की राजनीतिक धारा उन्हें विरास्त में मिली है. करियर के शुरुआती दिनों में वह अन्ना और केजरीवाल के समर्थक रहे. लेकिन 2012 के बाद वह बिहार की राजनीति की गुत्थियों पर जबर्दस्त पकड़ बना चुके हैं. इन तीन वर्षों में संजय ने बिहार के गांव-गांव के सामाजिक समीकरण को बारीकी से समझ लिया है.
भागवक के बयान पर पलट गयी बाजी
एक तरफ संजय राजद की छवि को गरीबों दलितों पिछड़ों में स्वीकार्य बनाने में जुटे थे तो दूसरी तरफ चुनावी समर में बयानों के नश्तर भी गढ़ने में लालू प्रसाद की मदद करते रहे.
संजय बताते हैं हमने साहब( लालू प्रसाद) के सानिध्य में सीखा कि किसे निशाने पर लेना है और किस पर जम कर हमला करना है और किसे इग्नोर किया जाना है. इस सबक के बाद हमने एक ऐसी रणनीति बनायी कि भाजपा और आरएसएस के लोगों को इतना प्रोवोक करो कि वे अल्ल बल्ल बोलने को मजबूर हो जायें.
हमारी यह रणनीति सफलता पूर्वक आगे बढी और रहा सहा कसर नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पूरा कर दिया. शैतान, पाकिस्तान में पटाखे, चारा चोर जैसी श्बदावलियों पर धारदार आक्रमण इसी रणनीति का हिस्सा था जिसके कारण भाजपा पूरी तरह राजद की गिरफ्त में आ गयी. हालांकि गोवध जैसे मुद्दे पर लालू प्रसाद घिर भी.
लेकिन इस संबंध में संजय कहते हैं कि लालू जी ने जैसे बात रखी थी उसे मीडिया ने डिस्टोर्ट कर दिया. लेकिन इससे इतना हुआ कि हम समझ गये कि आक्रमण की नीति कैसी होनी चाहिये.
किसी चुनावी राजनीति में जीत और हार की कोई एक वजह नहीं होती. राजद की सत्ता में पुनर्वापसी के और भी कई कारण हैं लेकिन रणीति, सोशल मीडिया और जमीनी कैम्पेन को धारदार बनाने में संजय की अहम भूमिका मानी जा रही है. संजय को जब यह बताया जाता है कि आपकी कोशिशों से राजद को कामयाबी मिली. तो इस पर वह मुस्कुराते हैं और इसी पूरी पार्टी की मेहनत की जीत बताते हैं.