यह कोई साधाराण खबर नहीं है. भ्रष्टाचार के आरोप में किसी आईएएस अफसर को सस्पेंंड किया जाना यह साबित करता है कि हमारा सिस्टम कितना सड़ियल है.वह भी बिहार के अनुुुुसूचित जाति के छात्रों की स्कॉलरशिप के घोटाले के मामले में.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम
कहने की बात नहीं कि अनुसूचित जाति के छात्र समाज के सबसे कमजोर वर्ग का हिस्सा होते हैं और जिनके उत्तथान की जिम्मेदारी पूरे सिस्टम की है. आईएएस अफसर एसएम राजू पर अनुसूचित जाति के छात्रों को दी जाने वाली छात्र वृत्ति में मुख्य घोटालेबाज के बतौर आरोपित हैं और उन पर विभिन्न धाराओं के तहत एफआईर दर्ज किया गया है. इन में 420, 467 और 468 समेत अन्य धारायें भी शामिल हैं.
एसएम राजू के निलंबन के बाद मुख्यसचिव अंजनी कुमार सिंह ने कहा कि एफआईआर दर्ज होने के बाद किसी आईएएस अफसर को नलंबित किया जाना सामान्य कदम है. लेकिन दर हकीकत किसी आईएएस अफसर का निलंबित किया जाना कत्तई सामान्य बात नहीं है. खास तौर पर जब, एसएम राजू समाज क्लयाण विभाग के सचिव की हैसियत से पोस्ट मैट्रिक स्कालरशिप निर्गत करने के मामले में सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदार अधिकारी थे.
निलंबित आईएएस एसएम राजू को जानिये- अच्छे राजू, बुरे राजू
राजू 2003 में भी स्सपेंड हुए थे. तब कर्नाटक में 19 लाख रुपये रिश्वत लेने का आरोप था. पर उससे वह बरी हो गये थे.
छात्रों को यह स्कालरशिप तकनीकी शिक्षा के लिए दी जाती थी. लेकिन इस घोटाले के बाद सैकड़ों छात्रों की न सिर्फ पढ़ाई बाधित हुई बल्कि उनके करियर को भी झटका लगा.इस मामले में पिछले दिनों राजू सहित 16 लोगों के खिलाफ निगरानी थाने में प्राथमिकी दर्ज की कराई गई थी। प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि आईएएस अधिकारी राजू जब कल्याण विभाग के सचिव पद पर तैनात थे, उस समय अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति में करोड़ों रुपये की हेराफेरी की गई थी.
राज्य सरकार इस बात का डंका पीटते नहीं थकती कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति पर चलती है. जीरो टालरेंस की नीति का मतलब सिर्फ यह नहीं होता कि भ्रष्टाचार के आरोपियों को मात्र स्सपेंड कर दिया जाये. बल्कि यह सुनिश्चित भी की जाये कि आरोपियों के खिलाफ गुनाह साबित भी हो और उन्हें सजा भी मिले. साथ ही इस बात की भी कोशिश हो कि भ्रष्टाचार नियंत्रण में रहे.
आईएएस जितेंद्र गुप्ता का मामला
लेकिन पिछले एक साल के आंकड़ों को देखें तो लगता है कि आरोपी अधिकारियों और कर्मियों को सस्पेंड तो कर दिया जाता है लेकिन ज्यादातर मामलों में उनके खिलाफ गुनाह साबित करने में निगरानी एजेंसी कामयाब नहीं हो पाती. पिछले दो साल में 50 से ज्यादा सरकारी कर्मियों को भ्रष्टाचार के मामले में चिन्हित किया गया लेकिन दो चार मामलों में ही उनके खिलाफ लगे आरोपों को साबित किया सका.
एक ताजा मामला आईएएस अफसर जितेंद्र गुप्ता का है. 2013 बैच के आईएएस व मोहनिया के एसडीएम जितेंद्र गुप्ता पर आरोप था कि उन्होंने पत्थर की तस्करी करने वाले ट्रक ड्राइवर से रिश्वत ली थी. लेकिन दो तीन महीने के अंदर सरकार को उनका निलंबन वापस लेना पड़ा. सरकार उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं कर सकी. हालांकि यह जगजाहिर है कि मोहनिया में जीटी रोड पर सरकारी मिलभगत से बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का खेल अंजाम दिया जाता है. अगर इस मामले में जितेंद्र गुप्ता जिम्मेदार नहीं थे तो इसका यह मतलब नहीं कि उस इलाके में पत्थर माफियाओं की मिलीभगत से भ्रष्टाचार नहीं होता.
इसी तरह, जहां तक स्कालरशिप घोटाले में एसएम राजू के निलंबन का सवाल है, यह बात अभी साबित होना है कि वह भ्रष्टाचार में लिप्त हैं या नहीं. हो सकता है कि राजू यह साबित करने में सफल हो जायें कि वह भ्रष्ट नहीं है लेकिन इससे यह कत्तई साबित नहीं हो सकता कि स्कालरशिप मामले में घोटला नहीं हुआ. ऐसे में जांच एजेंसियों से उम्मीद की जाती है कि उनके प्रयास से यह साबित हो सके कि घोटला हुआ है तो इसका जिम्मेदार कौन है. आईएएस अफसर भले ही राज्य सरकार के अधीन काम करते हों पर वे अखिल भारतीय सेवा से होते हैं ऐसे में उनकी अंतिम जवाबदेही केंद्र के प्रति होती है. साथ ही एक नौकरशाह होने के कारण उनके हाथ इतने लम्बे होते हैं कि उनकी गर्दन को दबोच लेना आसान नहीं होता. ऐसे में राजू के मामले में जांच एजेसियां किस नतीजे पर पहुंचती हैं, यह देखना दिलचस्प होगा.