रुस्तम और सोहराब की कहानी दसवी सदी की विख्यात कहानी है जिसमें बाप और बेटे ही दंगल में एक दूसरे के खिलाफ होते हैं. इस दंगल में पिता रुस्तम अपने बेटे के सीने में खंजर डाल देता है. आज मुलायम और अखिलेश की जंग रुस्तम और सोहराब के रास्ते पर जाती दिख रही है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
कहानी का सर
रुस्तम और सोहराब की कहानी दसवीं सदी के पर्सियन शायर फिरदौसी की विश्वविख्यात रचना है. इसमें कहानी का नायक एक ताकतवर योद्धधा रहता है. उस दौर में उसकी ख्याति चारो ओर होती है. वह अपने खोये हुए घोड़े की तलाश में दूसरे राज्य में पहुंच जाता है जहां के राजा उसे अपना सम्मानित मेहमान बनाते हैं. राजा की बेटी तहमीना रुस्तम से खासा प्रभावित होती है. वह रुस्तम के सामने शर्त रखती है कि रुस्तम से उसे एक संतान की पूर्ति हो जाये तो उसके घोड़े की तलाश सुनिश्चित की जा सकती है. तहमीना की शर्त रुस्तम मंजूर कर लेता है. और अपने घोड़े ले कर चला जाता है. तहमीना को एक बेटा पैदा होता है, जिसका नाम सोहराब रखा जाता है. कालांतर में सोहराब अपने पिता की तरह बड़ा पहलवान बन जाता है. एक बार समय ऐसा आता है कि रुस्तम की भिड़ंत अपने ही बेटे सोहराब से हो जाती है. रुस्तम और सोहराब के बीच काफी संघर्षपूर्ण युद्द होता है. लेकिन अंत में रुस्तम की तलवार सोहराब के सीने में पेवस्त हो जाती है. सोहराब अपनी जान गंवा बैठता है. सोहराब की मौत के बाद रुस्तम की नजर सोहराब की बांह पर जाती है जिसमें एक तावीज है जिसे रुस्तम ने सोहराब की मां को निशानी के तौर पर दे रखा था. इस तावीज से रुस्तम को पता चलता है कि सोहराब उसी का बेटा है.
आज की हकीकत
रुस्तम और सोहराब की इस कहानी में हम मुलायम और अखिलेश की कहानी को सिर्फ और सिर्फ पिता और पुत्र की तरह देखने की कोशिश कर रहे हैं. और पाते हैं कि अखिलेश का आज जो कुछ भी सियासी वजदू है वह सिर्फ और सिर्फ मुलायम सिंह के बेटे होने के सबब है. अखिलेश ने अपने पिता के संघर्षों को न तो जिया है और न ही अनुभव किया है. एक गुमनाम पहलवान जो उत्तर प्रदेश में कुश्ती के अखाड़े से अपनी पहचान बनाता है और इस पहचान को सियासी रंग देते हुए मुलायम सिंह यादव जैसा बड़ा नेता बन जाता है. दूसरी तरफ अखिलेश को सियासत का सिंहासन, संघर्ष के बूते नहीं बल्कि अपने पिता की विरासत के तौर पर मिलता है. लेकिन आज अखिलेश नामक सोहराब अपने पिता रुस्तम (मुलायम सिंह यादव) के मुकाबले में खड़ा है. पिछले अनेक महीनों से चल रही यह जंग आज अपने क्लाइमेक्स पर पहुंच चुकी है. अखिलेश हर हाल में अगला मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने भरोसेमंद उम्मीदवारों को टिकट दिलाना चाहते हैं, जबकि पुत्र मोह में अपनी कुर्सी अखिलेश को सौंप चुके, मुलायम आज खुद अपने बेटे से ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.
मुलायम और अखिलेश के बीच शह मात की यह जंग रुक गयी तब तो ठीक है. अगर यह जंग जारी रही. तो इसके नतीजे रुस्तम और सोहराब की कहानी के नतीजे के तौर पर सामने आ सकते हैं.जिसमें रुस्तम अपने बेटे सोहराब के सीने में खंजर उतार कर भी पछताता है.