भाजपा यूपी के रणक्षेत्र में गंभीर भंवर में फंसी है.माया-अखिलेश-राहुल के संजाल से कराहती भाजपा ने इससे निपटने के लिए वही दाव खेला है जिसके लिए वह पहचानी जाती है. चूंकि सुप्रीम कोर्ट के धर्म-ताति-भाषा पर वोट मांगने की मनाही से उसे कोई रास्ता नहीं दिख रहा है, ऐसे में उसने ट्रिपल तलाक का मुद्दा उछाला है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
चुनावों से पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक सख्त हिदायत जारी करते हुए धर्म, जाति, लिंग और भाषा के नाम पर राजनीति करने पर रोक लगायी थी. इसके बाद चुनाव आयोग ने इस मुद्दे पर सख्ती बरतने के संकेत दे दिये. इतना ही नहीं नफरत की सियासत के लिए बदनाम विधायक संगीत सोम पर आयोग ने नकेल कसके अपने इरादे स्पष्ट कर दिये कि कोई भी व्यक्ति साम्प्रदायिक या जातीय विभागजन की कोशिश करेगा तो उसका चुनाव लड़ना भी खतरे में पड़ सकता है. अदालती आदेश और आयोग की तनदेही के कारण पिछले दो पखवाड़े से चल रहा चुनावी अभिया विकास जैसे मुद्दे पर केंद्रित हो कर रह गया था.
नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राहुल गांधी, राजनाथ सिंह, अजित सिंह, मायावती, यहां तक की अखिलेश यादव सबने अपनी बातों में संयम दिखाने की कोशिश की. कुछ नेताओं ने नफरत भरे बयान जारी करने की कोशिश की तो आयोग ने फौरन अपनी चाुबक उसकी पीठ पर दे मारा. ऐसे में जनता को वही दल प्रभावित कर सकते हैं, जिन से उन्हें उम्मीद है कि अगर वह चुन कर आया तो लोगों के हित का काम करेगा.
लेकिन उत्तर प्रदेश में जिस तरह के हालात हैं, वह भाजपा के लिए गंभीर चुनौतीपूर्ण हैं. एक तरफ नोटबंदी के दर्द को वहां की जनता नहीं भूली है वहीं वहां किसानों में केंद्र के रवैये के प्रति भारी नाराजगी है. दूसरी तरफ बसपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के सामने भाजपा की स्थिति चिंताजनक है. ऐसे में भाजपा अपने असली चेहरे के साथ सामने आ कर धार्मिक ध्रुवीकरण का प्रयास करके वोटरों को प्रभावित करने का सहारा लेने का जोखिम डायरेक्ट नहीं उठा सकती क्योंकि कोर्ट के नये आदेश और इस आदेश के प्रति चुनाव आोग की चाबुकदस्ती से उसे भय है. ऐसे में उसने ट्रिपल तलाक का मु्द्दा उछाल कर समाज में ध्रुवीकरण का अपना पैंतरा चल दिया है. इसके लिए भाजपा ने रविशंकर प्रसाद को चुना. रविशंकर कानून मंत्री हैं.
उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक के मसले पर उनकी सरकार चाहती है कि महिलाओं को शोषण से मुक्ति के लिए उनसे बात की जायेगी. और उसके बाद सरकार इस पर आगे की कार्रवाई करेगी. रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर विपक्षी दलों को भी कुरेदने की कोशिश की और उन्हें अपना रवैया स्पष्ट करने को कहा.
दर असल यह भाजपा के बौखलाहट का नतीजा है. एक कानून मंत्री को क्या यह नहीं मालूम की ट्रिपल तलाक का मसला अदालत में है और अदालत के मसले पर राजनीतिक दलों या अन्य संगठनों के बोलने की क्या जरूरत है. रविशंकर प्रसाद को इस बात पर चिंता क्यों नहीं हुई कि देश में दहेज की कुप्रथा, कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ कानून होने के बावजूद बेटियां या तो गर्भ के अंदर मार डाली जा रही हैं या जलाई जा रही हैं. जबकि इन दोनो कुप्रथा के खिलाफ कानून है. इसके बावजूद सरकारें इन मामलों में विफल रही हैं. रविशंकर प्रसाद और भाजपा को दरअसल यह मालूम है कि ऐसे संवेदनशील मामलों पर बोलने से उनकी रही सही लोटिया भी डूब जायेगी. ऐसे में उन्होंने ट्रिपल तलाक के मसले को क्यों उठाया यह बात उत्तर प्रदेश की जनता बखूबी समझती है.
हालांकि उत्तर प्रदेश की जनता क्या रुख अपनाती है, यह अंतिम रूप से अभी कुछ कहना कठिन है, लेकिन जो स्थितियां हैं उससे जाहिर है कि भाजपा संकट में है.