मक्का के काबा के इमम की इमाममत में शुक्रवार को पटना के गांधी मैदान में नमाज अदा करने के नाम पर उमड़े जनसैलाब की सियासी कीमत तो वसूले जाने की मंशा तो नहीं है?
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
पटना पुलिस प्रशासन भी इस आयोजन में मुस्तैद है. चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात की जा रही है. मजमे को संभालने के लिए ट्रैफिक सिस्टम में परिवर्तन किया जा रहा है. पटना के गांधी मैदान में संभव है कि दो-तीन लाख या उससे भी ज्यादा लोग सऊदी अरब के पवित्र काबा के इमाम शेख सालेह अल तालेब के पीछे जुमे की नमाज पढ़ने आयेंगे. इसी दौरान अमन यानी शांति कांफ्रेंस का आयोजन होना है.
मजहबी जलसे का आयोजन प्रशंसा की बात है. मजहब अमन सिखाता है. अमन का पैगाम देना भी मानवता की सेवा है. इसलिए इस आयोजन की तारीफ होनी चाहिए.अमन कांफ्रेंस के जरिये अमन का पैगाम भी ठीक है और इबादत भी ठीक. लेकिन इबादत का संबंध व्यक्ति के निजी जीवन से है. इबादत करने वाले को अल्लाह सवाब( पुण्य) देता है. इस तरह इबादत से प्राप्त पुण्य का संबंध आखिरत की निजी कमाई है. इसलिए इस दिन जो भी नमाजी गांधी मेदान पहुंचेगा वह यह सोच कर पहुंचेगा कि उन्हें पुण्य अर्जित करने का मौका मिलेगा.
मजहब के पर्दे में सियासत
लेकिन अमन कांफ्रेंस के नाम पर यह आयोजन अगर इबादत और अमन के पैगाम तक सीमित हो तो इस आयोजन को हर वर्ग का समर्थन मिलना ही चाहिए. लेकिन क्या सचमुच ऐसा ही है? यह एक गंभीर प्रश्न है. क्योंकि इबादत के नाम पर सियासी फायदा लेने की अगर जरा भी कोशिश हुई, जिसकी कि पूरी संभवाना है तो फिर ऐसे में इबादत की सुद्धता पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है. क्योंकि इस आयोजन को इबादत के नाम पर सियासी रंग में रंगने की कोशिशें भी शुरू हो गयी हैं.
जुमे की नमाज के नाम पर मजमा
काबा शरीफ के वैश्विक महत्व और मुसलमानों के लिए इसके सम्मान की भावना को अगर सियासी लाभ के लिए इस्तेमाल किया गया तो इबादत की पवित्रता और शुद्धता पर असर पड़ेगा. क्योंकि इबादत के लिए इकट्ठे हुए लाखों के मजमे को कुछ लोग अपनी सियासी ताकत के प्रदर्शन के रूप में सत्ता के शीर्ष से भुनाने के जुगत में हैं. इस आयोजन में बिहार की सत्ता के शीर्ष नेतृत्व को आमंत्रित किया गया है. सवाल यह है कि अगर यह शुद्ध इबादत के उद्देश्य से होने वाला आयोजन है तो तो राजनीतज्ञों को मंच पर बुलाने के पीछे मकसद क्या है? दूसरी तरफ इस आयोजन के लिए जिस दिन का चुनाव किया गया है वह खुद मजहबी आस्था से जुड़ा है. जुमा यानी शुक्रवार की नमाज के नाम पर लाखों लोग बिन बुलाये इकट्ठा होंगे. जुमा के नाम पर इकट्ठा लोगों की भीड़ को अमन कांफ्रेंस में बदल दिया जायेगा. और फिर मुसलमानों के इस हुजूम को अपनी सियासी कुअत के रूप में पेश करने की कोशिश होगी. यह सोची समझी रणनीति का हिस्सा है.
अंदर की बात
इस आयोजन की जिम्मेदारी तौहीद एजुकेशनल ट्रस्ट ने उठाई है. इसके ट्रस्टी अब्दुल मतीन सलफी हैं. यह ट्रस्ट शिक्षा के क्षेत्र में काम करता है. याद रहे कि इसी ट्रस्ट ने 2012 में किशनगंज में पीस कांफ्रेंस का आयोजन किया था. तब जाकिर नायक आये थे. छह से सात लाख लोग जुटे थे. तब इसका शायद ही कोई सियासी नजरिया था. लेकिन इस बार ऐसा आयोजन पटना में हो रहा है. नौकरशाही डॉट कॉम को पता चला है कि सत्ता शीर्ष के सामने ट्रस्टी महोदय ने अपनी राजनीतिक इच्छा पहले ही पेश कर दी है. अभी तक सत्ता शीर्ष ने कोई आश्वासन नहीं दिया है. माना जा रहा है कि अमन कांफेंस से सत्ता शीर्ष को यह दिखाने की कोशिश होगी कि उनके साथ जनमत की फौज खड़ी है. जुमे के नमाजियों की शुद्ध इबादत के जज्बे का इस तरह सियासी सौदागरी ठीक नहीं. इबादत के पीछे अगर कोई छुपा एजेंडा है तो यह इबादत की शुद्धता के साथ छल है.