गौतम बुद्ध की धरती गया का संबंध मगध साम्राज्य से रहा है। ज्ञान की भूमि गया पितृपक्ष में पिंडदान के लिए भी चर्चित रहा है। पिछले दिनों पितृपक्ष के दौरान उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने ‘सुशासन का पिंडदान’ भी कर दिया, जब उन्होंने अपराधियों से पितृपक्ष के दौरान अपराध न करने की अपील की। गया संसदीय क्षेत्र के इतिहास में इसका प्रशासनिक स्वरूप में बदलाव आता रहा है। 1977 से यह लगातार आरक्षित ही रहा है।
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वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 16
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सांसद — हरि मांझी — भाजपा — मुसहर
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
शेरघाटी — विनोद यादव — जदयू — यादव
बाराचट्टी — समता देवी — राजद — मुसहर
बोधगया — कुमार सर्वजीत — राजद — पासवान
गया टाउन — प्रेम कुमार — भाजपा — कहार
बेलागंज — सुरेंद्र यादव — राजद — यादव
वजीरगंज — अवधेश सिंह — कांग्रेस — राजपूत
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2014 में वोट का गणित
हरि मांझी — भाजपा — मुसहर — 326230 (41 प्रतिशत)
रामजी मांझी — राजद — मुसहर — 210726 (27 प्रतिशत)
जीतनराम मांझी — जदयू — मुसहर — 131828 (17 प्रतिशत)
सामाजिक बनावट
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गया लोकसभा सीट में जिले के छह विधान सभा क्षेत्र आते हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में कुल वोटरों की संख्या लगभग 15 लाख होगी। इसमें एक जाति के रूप में सर्वाधिक तीन लाख वोटर यादव जाति के होंगे। राजपूत व मुसलमानों की संख्या पौने दो-दो लाख होगी। भूमिहार वोटर की संख्या करीब डेढ़ लाख होगी। अनुसूचित जाति में सर्वाधिक वोटर मुसहर जाति के होंगे, जिनकी संख्या करीब 2 लाख होगी। गया शहर विधान सभा क्षेत्र कहारों की संख्या काफी ज्यादा है। इस सीट से कहार जाति के प्रेम कुमार कई बार से लगातार निर्वाचित हो रहे हैं।
दो पूर्व सांसदों की हत्या
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गया में दो पूर्व सांसदों की हत्या भी हो गयी थी। ईश्वर चौधरी की हत्या सांसद रहते हुए हई थी, जबकि पूर्व सांसद राजेश कुमार की हत्या भी राजनीतिक रंजिश में कर दी गयी थी। नक्सल प्रभावित गया लोकसभा क्षेत्र में दोनों हत्याओं में नक्सलियों हाथ बताया गया। चुनाव के दौरान भी नक्सलियों की भूमिका प्रभावी मानी जाती है। चुनाव में मतदान बहिष्कार के लिए बूथों का चयन भी उम्मीदवार विशेष के राजनीतिक लाभ-हानि के हिसाब से किया जाता है।
जीतनराम मांझी का कार्यक्षेत्र
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पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी का कार्यक्षेत्र गया जिला ही रहा है। वे गया जिले के कई विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव लड़े और निर्वाचित हुए। 2010 में वे जहानाबाद जिले के मखदुमपुर विधानसभा से निर्वाचित हुए, लेकिन 2015 में फिर गया जिले के ही इमामगंज से निर्वाचित हुए। वे फिलहाल हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और लालू यादव के महागठबंधन के साथ हैं। जीतनराम मांझी वही हैं, जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में पराजित होने के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस्तीफा देकर जीतनराम मांझी को अपना उत्तराधिकारी बनाया था। लेकिन वे नीतीश कुमार के ‘विश्वास’ पर लंबे समय तक खरे नहीं उतर सके। नौ महीने में नीतीश कुमार ने उनको सीएम के पद से विदाई दे दी थी। इसके बाद मांझी लगातार नीतीश विरोधी मोर्चे के साथ रहे हैं। भाजपा के साथ नीतीश के जाने के कारण मांझी एनडीए छोड़कर लालू यादव के महागठबंधन में शामिल हो गये और अब उन्हें गया से महागठबंधन के अकेले उम्मीदवार बताया जा रहा है।
कौन-कौन हैं दावेदार
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गया लोकसभा के लिए महागठबंधन के एकमात्र उम्मीदवार जीतनराम मांझी को ही माना जा रहा है। वे पार्टी के लिए कई सीटों पर अपनी दावेदारी जता रहे हैं, लेकिन अपने लिए गया को रिवर्ज रखना चाहते हैं। मांझी गया से खुद लड़ेंगे या बेटा को टिकट दिलवाएंगे, अभी तय नहीं है। लेकिन यह माना जा रहा है कि गया निर्विवाद रूप से मांझी के कोटे में ही रहेगा। भाजपा के सांसद फिलहाल हरि मांझी हैं और 2009 में भी वही निर्वाचित हुए थे। लेकिन माना जा रहा है कि भाजपा नेतृत्व उनसे संतुष्ट नहीं है। वैसी स्थिति में भाजपा अपना उम्मीदवार भी बदल सकती है। इस सीट पर भाजपा कई बार जीतती रही है। इस कारण यह सीट भाजपा के पास ही रहेगी, यह तय है। इसमें जदयू कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहता है।