एक ईमानदार अधिकारी को अपने करियर के 20 सालों में कितनी बार शंटिंग या ट्रांस्फर रूपी सजा का शिकार होना पड़ सकता है. हरियाणा में आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को घोटालेबाजों की पोल खोलने की कीमत 43 बार ट्रांस्फर ट्रांस्फर के रूप में चुकानी पड़ी है.

हद तो यह है कि दर्जनों पदों से वह मात्र दो से तीन महीने में तबादला कर दिये गये हैं. वैसे पिछले 20 सालों में खेमका कहीं भी 9 महीने से अधिक नहीं रहने दिये गये हैं.

इस बार उन्हें कंसोलिडेशन्स ऑफ़ होल्डिंग्स ऐंड लैंड रिकॉर्ड्स के महानिदेशक पद से महज 51 दिनों में हटा दिया गया है. उन्होंने इस छोटे से अर्से में भूखंडों के खरीद फरोख्त में सैकड़ो करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश किया है.

इस मामले में रियल स्टेट की एक नवसृजित कम्पनी को लाभ पहुंचाने का खेल खेला गया है, जिसके बारे में बताया जाता है कि यह कम्पनी एक राजनेता के रिश्तेदार की है.

इस घोटाले को उजागर करने के बाद अब अशोक खेमका को हरियाणा बीज निगम के प्रबंध निदेशक के उस पद पर भेजा गया है जिस पर फिलहाल उन से 12 साल जुनियर अधिकारी तैनात थे.

अपने हालिया ट्रांस्फर से खेमका इतने आहत हुए हैं कि उन्होंने आक्रोश में आकर राज्य के मुख्यसचिव को एक पत्र लिख कर अपने साथ हो रही नाइंसाफी की शिकायत की है.

खेमका ने मुख्यसचिव को लिखा है कि ज़मीन घोटाले का पर्दाफाश करने का हौसला दिखाने की सजा के रूप में उन्हें ट्रांस्फर कर दिया गया है. खेमका को इस से पहले भी हरियाणा राज्य इल्कट्रानिक विकास नगिम से भी महज 49 दिनों में ट्रांस्फर कर दिया गया था. यहां भी खेमका ने कुछ चुनिंदा कम्पनियों को बिना टेंडर प्रकाशित किये शाफ्टवेयर कम्पनियों को काम सौंप दिया गया था.

इस पत्र में खेमका ने लिखा है कि आईएएस रेगुलेशन एक्ट 2010 के अनुसार किसी अधिकारी को सामान्य स्थिति में दो वर्ष का कार्यकाल पूरा करने का प्रावधान है पर उनके मामले में लगातार इस प्रावधान का उल्लंघन किया जाता है.

खेमका ने मुख्यसचिव को लिखे पत्र में साफ कहा है कि उनको बार बार पद से हटाना और जूनियर के पदों पर भेजना एक सजा की तरह है. यह मुझे आहत करने वाला है और मुझे पता है कि उनके साथ ऐसा इसलिए किया जाता है कि वह राजनेताओं और कार्पोरेट जगत के घोटाले को रोकने का प्रयास करते रहे हैं.

जांच के दौरान अशोक खेमका ने पाया था कि कैसे पंचायतों की सैकड़ों एकड जमीन को गलत तरीके से दाखिल-खारिज कराकर सीधे रियल स्टेट की कम्पनी को निर्धारित मूल्यों के बजाये औने-पौने में दे दिया गाया. जबकि ये भूखंड गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे शहरों के हाईवे पर स्थित हैं जहां ये कम्पनी बड़े मॉल और अपार्टमेंट बनाने में लगी है

खेमका ने अपने पत्र में अपना यह दर्द भी उजागर किया है कि कहीं से दो महीने तो कहीं से महज तीन महीने में हटा देने के कारण उनके वेतन का नियमित भुगतान भी नहीं हो पाता जिससे उन्हें आर्थि कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है. साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि इस तरह के भ्रष्टाचार को उजागर करने के कारण उनकी जान को भी खतरा है.

By Editor


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