व्हाट्सएप्प पर ज़ारी एक तस्वीर के गोमांस होने के संदेह में अभी कुछ ही दिनों पहले आधी रात को झारखण्ड के जामताड़ा जिले के दिघारी गांव के बाईस वर्षीय मिन्हाज़ अंसारी के घर पहुंचकर नारायणपुर थाने के दारोगा हरीश पाठक ने उसे गिरफ्तार किया और पीटते हुए थाने ले गया।
ध्रुव गुप्त
ख़बर के अनुसार पुलिस हिरासत में मोबाइल की छोटी-सी दुकान चलाकर अपने मां-बाप, पांच भाईयों तथा पत्नी और आठ महीने की बेटी का पेट पालने वाले मिन्हाज़ को थाने की पुलिस ने गोरक्षक गुंडों के साथ मिलकर इतना पीटा कि अस्पताल ले जाते वक़्त रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। शोर मचने पर पहले तो पुलिस ने मिन्हाज़ के साथ पुलिस हिरासत में किसी भी ज्यादती से इनकार किया, लेकिन जब मीडिया में मिन्हाज़ के चेहरे और देह के दूसरे हिस्से के जख्म उजागर हुए तो दारोगा पाठक के खिलाफ़ हत्या का मुकदमा दर्ज कर उन्हें निलंबित कर दिया गया।
पुलिस की इस अमानवीय कार्रवाई को लेकर मुसलमानों में ही नहीं, हर मज़हब के लोगों में और हर तरफ आक्रोश है। गौरतलब है कि इसी साल मार्च में भी झारखण्ड के लातेहार जिले में गोरक्षक गुंडों द्वारा दो मुस्लिम पशु व्यवसायियों की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।
लगता है कि झारखण्ड धीरे-धीरे धार्मिक उन्मादियों का गढ़ और मानवता का कत्लगाह बनता जा रहा है।
ज़ाहिर है कि इन हत्याओं के पीछे उन्मादियों का गाय प्रेम नहीं, देश के मुसलमानों के प्रति उनकी रग-रग में भरी नफ़रत ही है। वरना क्या वज़ह है कि दुनिया में गोमांस के सबसे बड़े निर्यातक इस देश में चलने वाले सैकड़ों बूचड़खानों के विरोध में कभी कोई आवाज़ नहीं उठती जिनमें कई तो सरकारी संरक्षण और अनुदान के बूते चल रहे हैं।
उम्मीद है कि झारखण्ड की पुलिस दरिन्दे दारोगा पाठक और उसके साथी गोरक्षक गुंडों को गिरफ्तार कर प्राथमिकता के आधार पर केस में चार्जशीट और ट्रायल कराएगी ताकि इन दरिंदों को फांसी के फंदे तक पहुंचा कर देश के सांप्रदायिक गुंडों को एक कड़ा सन्देश दिया जा सके।
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