12वीं कक्षा टॉपर घोटले में जांच के नतीजे जो भी आयें और जिसकी भी गर्दन फंसे पर जिस तरह से बिहार बोर्ड अध्यक्ष एक गलती के बाद दूसरी गलती कर रहे हैं, उससे यह लगने लगा है कि वह अब बच नहीं पायेंगे.
इर्शादुल हक, एडिटर, नौकरशाही डॉट कॉम
पिछले दिनों बिहार बोर्ड की 12वीं परीक्षा का रिजल्ट घोषित किया गया. इसमें टॉप करने वाले छात्रों की योग्यता का पोल मीडिया ने खोल दिया. उसके बाद बोर्ड ने टॉपर्स की फिर से टेस्ट लेने की घोषणा की. कुछ छात्र शामिल हुए तो वह बिल्कुल नाकारे निकले. जिसके बाद बोर्ड ने उनका रिजल्ट रद्द कर दिया.
यह भी पढ़ें- बोर्ड अध्यक्ष की पत्नी पर है विजिलैंस केस
इस घटना के बाद बारी आयी बोर्ड के अंदर चल रहे उस भ्रष्टाचार की जिसके चलते नाकारों को टापर घोषित कर दिया गया. आइए हम आपको उन पांच कारणों को बताते हैं जिससे इस बात का संदेह काफी प्रबल हो जाता है कि बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह दूध से धुले नहीं है. और वह इस भ्रष्टाचार के मकड़जाल में शामिल हों, न हों पर इसके पर्दे के पीछे की कहाने से वे जरूर परिचित हैं. और किसी न किसी स्तर पर भ्रष्टाचारियों को बचा रहे हैं.
प्वायंट नम्बर एक-
प्वायंट नम्बर एक का जिक्र करने से पहले यह याद दिला दें कि बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी गंगादेवी कालेज की प्रिंसिपल हैं और उनके खिलाफ विजलैंस का केस है. आरोप है कि उन्हें बिना वैकेंसी के प्रिसिपल बना दिया गया था. और जिस व्यक्ति ने उन्हें प्रिंसिपल बनाया वह कोई और नहीं बल्कि मगध विश्वविद्यालय के वीसी अरुण कुमार थे, जो लालकेश्वर प्रसाद सिंह के समधी भी हैं. भ्रष्टाचार के आरोप में अऱुण कुमार जेल की हवा खा चुके हैं.
यह भी पढ़ें- टापर घोटाला: बोर्ड अध्यक्ष की राजनीतिक महत्वकांक्षा में दफ्न हो सकते हैं कई राज
अब बोर्ड के टापर घोटाला की बात. घोटाले की बात जब सार्वजनिक हो गयी तो शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी ने जांच के लिए एक कमेटी गठित की. लेकिन बोर्ड अध्यक्ष ने अलग से इस मामले में जांच कमेटी की घोषणा कर दी. और तो और बोर्ड अध्यक्ष की ढिटाई देखिए कि अपनी सरकार के मंत्री द्वारा जांच कमेटी गठित किये जाने के बाद न सिर्फ अलग से जांच कमेटी बनायी, बल्कि इस कमेटी के गठन की तारीफ बैक डेट में दिखाई गयी. बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर सिंह के इस फैसले ने खुद लालकेश्वर प्रसाद सिंह की ईमानदारी को कटघरे में ला दिया है. एक तो सरकार के समानांतर जांच कमेटी बनायी बल्कि इस कमेटी के गठन की तारीख भी झूठी बतायी गयी.
प्वायंट नम्बर दो-
भ्रष्टाचार की जांच के लिए जब शिक्षा मंत्री ने, विभाग के सबसे बड़े और सबसे जिम्मेदार की हैसियत से जांच करवाने का ऐलान कर ही दिया था तो बोर्ड के अध्यक्ष ने खुद भी पहल करके न्यायिक जांच कमेटी बना कर सरकार के समानांतर सत्ता खड़ी करने की कोशिश की. यह दर असल सत्ता के टकराव और शक्ति की सीमा के उल्लंघन का मामला है. बोर्ड अध्यक्ष ने इस मामले में सरकार से कोई मश्विरा किये बिना जांच कमेटी अपनी तरफ से बनायी. इसलिए इस में संदेह की बड़ी संभावना है.
प्वायंट नम्बर तीन-
न्यायिक जांच के लिए कमेटी गठित करने के फैसले में की गयी जल्दबाजी के चलते कई तकनीकी पहलुओं को नजर अंदजा कर दिया गया. इस मामले में राज्य सरकार ने कुछ सवाल खड़े किये हैं. इसमें पहला सवाल यह है कि अध्यक्ष ने किस हैसियत से अपने हस्ताक्षर से कमेटी गठित कर दी? एक अन्य सवाल यह है कि बोर्ड द्वारा गठित जांच समिति के तीनों सदस्य सेवानिवृत्त हैं. उन्हें सरकार की अनुमति के बिना कैसे काम सौंपा गया.,
इन गंभीर सवालों के खड़े हो जाने के बाद अब ऐसा लगने लगा है कि बोर्ड अध्यक्ष को इस्तीफा देना पड़ेगा. संभव है कि जांच के घेरे में खुद बोर्ड अध्यक्ष भी आ सकते हैं.