12 वीं परीक्षा में नाकारे छात्रों को टॉपर घोषित किये जाने से मचे हड़कम्प के बीच नौकरशाही डॉट कॉम को पता चला है कि बिहार बोर्ड अध्यक्ष लालकेश्वर प्रसाद सिंह के घर व रिश्तेदारों के दामन पर भी भ्रष्टाचार के गंभीर दाग हैं.
इर्शादुल हक, सम्पादक, नौकरशाही डॉट कॉम
बोर्ड अध्यक्ष की पत्नी ऊषा सिन्हा पटना के गंगा देवी महिला कॉलेज की गैरकानूनी तौर पर प्राचार्या बनाये जाने की आरोपी हैं.
नौकरशाही डॉट कॉम को यह भी पता चला है कि उनकी पत्नी विजिलैंस के केस संख्या 39/14 में आरोपी हैं.
गौरतलब है कि लालकेश्वर सिंह के समधी अरुण कुमार मगध विश्वविद्यालय के तत्कालीन वायस चांसलर के बतौर ऊषा सिन्हा को गंगा देवी कालेज का प्रभारी प्रिंसिपल बनाया था. दस्तावेजी जानकारी यह बताती है कि लालकेश्वर प्रसाद सिंह की पत्नी ऊषा सिन्हा को बिना किसी वैकेंसी के प्रिंसिपल बनाया गया था. ये अरुण कुमार वहीं हैं जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार का आरोप है और वह जेल भी जा चुके हैं.
कुलपति समधी भी जा चुके हैं जेल
इस मामले में एक पुलिस अफसर ने जब कानूनी कार्रवाई शुरू की तो विश्वविद्यालय और शिक्षा जगत में हड़कम्प मच गया था. लेकिन ऊंचे रसूख के चलते इस जांच व इससे जुड़ी कार्रवाई को बाधित कर दिया गया. इसी बीच उस पुलिस अफसर को ट्रांस्फर कर दिया गया. समझा जाता है कि उस अफसर को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया क्योंकि वह भ्रष्टाचारियों के नेकसस को बेनकाब करने के करीब पहुंच चुके थे.
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लालकेश्वर प्रसाद सिंह शिक्षा जगत के प्रभावशाली नामों में से एक है. आरोप है कि उन्होंने अपने रसूख और अपने समधी अरुण कुमार के रसूख का भरपूर फायदा उठा कर पत्नी ऊषा सिन्हा को गंगा देवी कालेज का प्रिंसिपल तक बनवा दिया.
लेकिन अब जब लालकेश्वर प्रसाद सिंह के बिहार बोर्ड के अध्यक्ष रहते इंटर परीक्षा में टॉपर घोटाला का पर्दा फाश हो चुका है तो इस मामले में उनकी भूमिका भी संदेह के घेरे में है.
एक ही मामले की जांच के लिए दो कमेटी पर सवाल
उधर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने साफ कहा है कि इस मामले में जो कोई भी दोषी होगा, उसे बख्शा नहीं जायेगा. दूसरी तरफ शिक्षा मंत्री अशोक चौधरी भी इस ममले में आहत हैं. उन्होंने इस घोटाले को बिहार की बदनामी करार दिया है और इस ममले की जांच का आदेश दिया है.
लेकिन उधर बोर्ड अध्यक्ष ने भी बोर्ड की तरफ से अलग जांच कमेटी बनायी है. एक ही मामले के लिए दो जांच कमिटी के गठन पर भी सवाल उठ रहे हैं. सवाल उठ रहा है कि अगर सरकार ने जांच कमेटी गठित की है तो ऐसे में बोर्ड द्वारा स्वतंत्र रूप से जांच करवाने का क्या तुक है.
ध्यान रहे कि टॉपर घोटाला सामने आने पर बोर्ड ने दो टापरों की फिर से परीक्षा ली और उन्हें अयोग्य करार देते हुए उनका रिजल्ट रद्द कर दिया गया.