प्रेम और ज्ञान का मार्ग देने वाले मध्य काल के महान संत कवि थे कबीर :प्रो गुलाब चंद्र 

जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कविसम्मेलन,

पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति का हुआ अभिनंदन 

पटना,२८ जून। मध्यकाल के महान संतकवि थे कबीर। वे प्रेम और ज्ञान के पथप्रदर्शक थे। कबीर ने हमें सिखाया कि माया और मोह से ग्रस्त व्यक्ति न तो स्वयं का भला कर सकता है न समाज का। सुखी और परोपकारी वही हो सकता हैजो माया और मोह से दूर रहे । सच्चा और अच्छा हो। वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। अपनी रचनाओं में उन्होंने यह सीख दी किहम जिस व्यवहार की अपेक्षा अपने लिए करते हैंवही व्यवहार औरों के साथ करे। हम प्रेम देंगे तभी हमें प्रेम मिलेगा। 

यह बातें आज यहाँ हिंदी साहित्य सम्मेलन मेंसंतकवि की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि सम्मेलन का उद्घाटन करते हुएपाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो गुलाबचंद्र राम जायसवाल ने कही। उन्होंने कहा कि,हिंदी भाषा का विकास कर हीं हम सच्चे अर्थों में भारत का विकास कर सकते हैं। जब हम हिंदी की प्रतिष्ठा संपूर्ण भारत वर्ष में बढ़ाएँगे,तभी हम सुसंक्रित और समृद्ध भारत बना सकेंगे। इस अवसर पर सम्मेलन अध्यक्ष ने प्रो जायसवाल को पुष्पहार तथा वंदनवस्त्र प्रदान कर अभिनंदन किया। साहित्य सम्मेलन में यह उनका प्रथम आगमन था। 

अपने अध्यक्षीय संबोधन में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा किकबीर ने विश्व मानवता को अपना इहलोकऔर परलोकदोनों हीं सुधारने के ज्ञान और मार्ग प्रदान किए। किंतु मनुष्यों ने कबीर के दोहों को रट तो लियाउन पर व्याख्यान और उपदेश भी दिए,पर उन पर अमल नहीं किया। कबीर ने जिस वितराग और त्याग कोसार्थक जीवन का आधार और सोपान बतायाहमने उसे अपना ज्ञान प्रदर्शित करने का साधन समझाआचरण योग्य नही माना। आज वासनाओं में डूबा संसार उसी पाखंड का परिणाम है। 

सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्तडा शंकर प्रसादडा मधु वर्मासम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेवसाहित्यमंत्री डा शिववंश पाण्डेयडा विनोद कुमार मंगलमतथा प्रो वासकीनाथ झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

इस अवसर पर आयोजित कविसम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने अपनी वाणीवंदना से किया। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र करुणेशने कबीर के उस परम दार्शनिक गीत झिनीझिनी भीनी चदरिया‘ का सस्वर पाठ किया।” डा शंकर प्रसाद ने अपनी पीड़ा इस तरह से व्यक्त की कि, ‘पूछता जा मेरी दहलीज़ से दूर चले जाने वालेक्या गुज़रता हैउन पर जो हैं तेरी जान पे मरने वाले। डा कल्याणी कुसुम सिंह ने घर छूटने की पीड़ा को इन पंक्तियों से अभिव्यक्ति दी कि, “ घर क्या छूटावनवास हो गयाजीवन का जीन संत्रास हो गया

वरिष्ठ शायर नाशाद औरंगाबादी का कहना था – “ ये किस समाज की तहज़ीब है किआपस मेंजो रामराम नहो और दुआ सलाम न होवहाँ बरसती है लानत खुदा की रोजोसब,बड़े बुज़ुर्गों का जिस घर में ऐहतराम न हो

व्यंग्य के चर्चित कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ने आज की राजनीति पर प्रहार करते हुए कहा कि, “कहते हो जिस लाठी से आज़ादी मिलीउसी गांधी के बंदर होलगता है जैसे हिंदुस्तान नहीं,तुम पाकिस्तान के अंदर हो। कवि सुनील कुमार दूबे ने कहा – “ नहीं ख़ज़ाना पास कोईपर एक वसीयत करता हूँजब सब दरवाज़े बंद मिलेलो दिल की चाभी देता हूँ

कवयित्री पूनम आनंद ने कहा – “सृष्टि के बीज सृजन का सम्मान है माँ/हौसलों से करे रौशन चिराग़ अंधेरों में एक सूरज है माँ

डा सुधा सिन्हाडा मेहता नगेंद्र सिंहडा सागरिका रायबच्चा ठाकुरडा वीना राय,जय प्रकाश पुजारी,वारिस इस्लामपुरी,डा आर प्रवेशडा विनय कुमार विष्णुपुरी,कौसर कोल्हुआ कमालपुरी,विजय आनंदप्रभात कुमार धवनशंकर शरण आर्यरवींद्र कुमार सिंहअर्जुन प्रसाद सिंहरवि घोषबाँके बिहारी सावसच्चिदानंद सिन्हाराज किशोर झा तथा लता प्रासर ने भी अपनी रचनाओं से ख़ूब तालियाँ बटोरी।

मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवादज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। 

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