एक प्रशासक की डायरी का पन्ना जो बता रहे हैं कि सर्जिकल स्ट्राइक मनमोहन ने भी किया था लेकिन वह चुप रहे लेकिन मोदी ने शोर किया. मनमोहन की खामोशी मोदी के शोर से जरूरी थी. आप भी पढ़िये.manmohan-modi-_647_060915023629

नोट- वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी ने यह पेज सार्वजनिक किया है लेकिन उस प्रशासक का नाम नहीं बताया है.

(एक प्रशासक की डायरी का पन्ना: पढ़ने को मिला था, नाम न देने की शर्त पर यहाँ साझा करता हूँ!)

1. जब देश जान चुका है कि भारत पाकिस्तान से डरता नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक से अभी मुँहतोड़ जवाब दिया गया है और पहले भी। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब भी अकधिक बार ऐसे ही धावा बोला गया था।
लेकिन सवाल मन में यह आता है कि तब मनमोहन सिंह आख़िर चुप क्यों रहे?


2. उस वक़्त भी जब-जब ऐसी सर्जिकल स्ट्राइक हुई, तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा से सरकार ने जानकारी साझा की थी। इस जानकारी के बावजूद भाजपा नेता मनमोहन सिंह पर लगातार वार करते रहे, उन्हें कायर तक कहा।


3. सवाल फिर वही है – कि पाकिस्तान को सबक़ सिखाने के बावजूद मनमोहन सिंह चुपचाप भाजपा के हाथों अपमान क्यों सहते रहे?
4. क्या यह सिर्फ़ संचार कौशल न होने का मामला था या जनता से संवाद स्थापित करने की नाकामी थी? या फिर सोच-विचार कर चुप रहने का सायास फ़ैसला था?


5. हम लोग, जो उस वक़्त की सरकार की अंदरूनी जानकारी रखते हैं, जानते हैं कि ये मनमोहन सिंह का दो-टूक फ़ैसला था कि देशहित में हमें चुप रहना चाहिए।


6. दरअसल, देशभक्ति चिल्लाने, ललकारने और सफलता मिलने पर अपनी पीठ ख़ुद ठोकने का नाम नहीं होती।
7. देश की ख़ातिर अक्सर चुपचाप क़ुरबानी देनी पड़ती है और उफ़्फ़ तक न करते हुए बहुत कुछ सह जाना पड़ता है।
8. ऐसे बहुत लोग हैं जो ज़िम्मेदारी के पदों पर रहे हैं, ज़ाहिर है वे वे बहुत कुछ जानते हैं, लेकिन देशहित में चुप हैं, चुप रहेंगे।
9. मनमोहन सिंह की समझ यह थी कि युद्धोन्माद पैदा होने से भारत विकास के रास्ते से भटक जाएगा, हमारी तरक़्क़ी रुक जाएगी ।
10. इसीलिए उन्होंने पाकिस्तान को सर्जिकल स्ट्राइक कर सबक़ दिया, लेकिन इसकी चर्चा नहीं की ।


11. इस नीति के चलते पाकिस्तान को यक़ीनन सबक़ मिला। 2010 के बाद कोई बड़ी आतंकवादी घटना नहीं हुई। कश्मीर में माहौल इस तरह सामान्य हुआ कि घाटी में पर्यटकों की बहार आ गयी । लेकिन ढोल न पीटकर युद्धोन्माद से बचा गया, आपसी तनाव भी नहीं बढ़ा और विकास की यात्रा में कोई रुकावट नहीं आने पाई। ख़ुद कुछ नुक़सान उठाया, लेकिन देश को बचाते रहे।
12. भारतीय लोकज्ञान में नीलकंठ की परम्परा सभी जानते हैं, जब शिव ने सृष्टि की रक्षा के लिए विष अपने गले उतार लिया था।
13. नीलकंठ की ज़रूरत हमें आज भी है, आगे भी रहेगी।


14. मोदीजी को इसे समझना होगा। वे इस देश का नेतृत्व हैं। पाकिस्तान को एक सबक़ वे सिखा चुके। ज़रूरत हुई तो और भी सिखाएँ। लेकिन भारत की प्रगति को बरक़रार रखना भी उनकी ही ज़िम्मेदारी है।
15. जुनून भी कभी ज़रूरी हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान को यह सुकून नहीं मिलना चाहिए कि उसने भारत के विकास-रथ को रोक दिया। ऐसा हुआ तो अंततः वह अपने मक़सद में कामयाब माना जाएगा ।


16. यह हमेशा याद रखें की भारत पिछले सत्तर साल में न टूटा है, न डरा है, न विफल हुआ है। 17. भय की भाषा बोलना और भय जगाना कमज़ोरी की निशानी है। मज़बूत राष्ट्र चुपचाप जवाब देते हैं और अपने रास्ते पर आगे बढ़ते हैं।

‘मजाज़’ का शे’र है –
दफ़्न कर सकता हूँ सीने में राज़ को
और चाहूँ तो अफ़साना बना सकता हूँ।

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427