हमारा मुल्क हिंदुस्तान शायद दुनिया का ऐसा तन्हा मुल्क है जहां औरतों को देवी के रूप में माना जाता है. महिलाओं ने दुर्गा, सरस्वती और लक्मी के रूप में अपनी मेहनत के बूते कामयाबी की ऊंचाइयां तय की हैं और कामयाबी का परचम लहराया है.
मौजूदा दौर में ऐसी बेशुमार महिलायें हैं जिन्होंने तमाम बाधाओं को पार करके कामयाबी के शिखर पर अपना मुकाम बनाया है.
लेकिन आज एक बड़ा सवाल दिल दहलाने वाला सामने है. वह है महिलाओं की सेक्युरिटी का सवाल. आज हम आय दिन ऐसी घटनाओं से रू बरू होते हैं जिसे सुन कर हमरा दिल दहल जाता है. और हमें यह लगने लगता है कि क्या यह वही हिंदुस्तान है जहां ख्वातीन की आबरू की हिफाजत के लिए पूरा परिवार ही नहीं बल्कि पूरा समाज एक साथ सामने आ जाता था.
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यह भी एक सच्चाई है कि दुनिया के तमाम धर्म ख्वातीन को बरारबरी का हक देते हैं. इसी आधार पर दुनिया के आलमी अंजुमन यूएनओ ने महिला अधिकारों को महत्वपूर्ण तौर पर रेखांकित किया है.
यह भी संतोष की बात है कि दुनिया की हर कौम इस बात के महत्व को समझती है और उस पर अमल भी करती है. लेकिन यह बात भी माननी पड़ेगी कि आज भी जिहालत और शरारत का मिजाज रखने वाले लोगों की संख्या इतनी काफी है कि कभी कभी ख्वातीन की सेक्युरिटी खतरे में पड़ जाती है और बड़ी तादाद में ऐसी दरिंदे हैं जो औरतों की आजादी और उनकी अस्मिता को कुचलने का प्रयास करते हैं.
ऐसी स्थिति में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि देश के तमाम मजहबों के बौद्धिक वर्ग को एक साथ मिल कर महिला अधिकारों के प्रति प्रयास करना होगा.
कुरान से लें सबक
इसके लिए एक व्यापक अभियान चलाना होगा और कोई ऐसी तरकीब खोजनी होगी कि इन दरिंदों के खिलाफ व्यापक जनमत तैयार हो.
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यह सच है कि देश का कानून ऐसे दरिंदों के खिलाफ मजबूत है लेकिन ऐसे गंभीर मामले में जब तक समाज के विभिन्न मतों और मजहबों के लोग एक साथ खड़े नहीं होंगे तब तक इन दरिंदों को सबक सिखा पाना संभव नहीं है.
ऐसे लोग जो मानसिक रूप से आपराधिक छवि रखते हैं वे कानून के शिकंजे से बचने के तमाम रास्ते खोजते हैं लेकिन ऐसे दरिंदों के खिलाफ एकजुट हो कर समाज को खड़े होने और उन्हें सबक सिखाने की जरूरत है. ताकि हम मुल्क में अमन का माहौल कायम कर सकें.
जहां तक मुसलमानों का ताल्लुक है, उन्हें तो कुरान में ऐसी तालीम दी गयी है कि वे मुजरिमों के खिलाफ उठ खड़े हों. इस सिलसिले में अल्लाह के रसूल, पैगम्बर मोहम्मद साहब ने तो यहां तक कहा है कि तुममें से कोई अगर जुल्म देखे तो उसे अपने हाथ से रोक दे. और अगर हाथ से रोकने की ताकत नहीं तो उसे जुबान से बुरा कहे और अगर जुबान से भी बुरा कहने की पोजिशन में न हो तो कमसे कम उसे दिल से बुरा समझे.
लिहाजा यह जरूरी है कि तमाम मजहबों के लोग अपने सार्वजनिक आयोजनों में या अन्य कार्यक्रमों में ऐसे मुजरिमों के खिलाफ समाज के अंदर जागरूकता और बेदारी लायें ताकि समाज का हर व्यक्ति ऐसे घिनावने लोगों के खिलाफ उठ खड़ा हों.
इसी तरह मॉडर्न एजुकेशन सिस्टम मेंं जो लोग लगे हैं उनकी भी जिम्मेदारी है कि नयी पीढ़ी को इस बात की तरबियत दें कि वे भी ऐसे लोगों के खिलाफ खड़े हों और एक शांति और भाईचारे का माहौल बने और एक अच्छे समाज का निर्माण संभव हो सके.