यह बिहार के मुसलमानों में एक लम्बी लड़ाई की सगुबुगाहट थी क्योंकि आम तौर पर ऐसा नहीं होता कि अलग-अलग विचारधारा का बौधिक वर्ग एक साथ बैठे.
पर बिहार के अलग-अलग सामाजिक संगठनों, राजनीतिक दलों से जुड़े सियासी रहनुमाओं और मजहबी संगठनों से जुड़े उलेमा ने शनिवार को पटना में लगातार छह घंटे तक ब्रेनस्टार्मिंग सेशन में भाग लिया. गोलमेज कांफ्रेस के बतौर आयोजित ‘राजनीति और मुसलमान’ विषय पर आयोजित इस गंभीर बहस का नेतृत्व बिहार के पूर्व मंत्री जमशेद अशरफ ने किया.
बिहार में दो करोड़ मुसलमानों की आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक बदहाली पर केंद्रित इस मंथन में खुले रूप में विचार किया गया. यह महसूस किया गया कि बिहार के मुसलमानों को अपने राजनीतिक वजूद का एहसास पूरे देश को कराने की जरूरत है. राजनित में भिखमंगी की जगह नेतृत्व विकास पर जोर देने की जरूरत पर बल दिया गया.
इस अवसर पर किसने क्या कहा
जमशेद अशरफ, पूर्वमंत्री
मैंने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए नीतीश सरकार के मद्यनिषेध मंत्री की कुर्सी को लात मारी. अब हम बिहार के दो करोड़ मुसलमानों की आवाज को बुलंद करने, उनके राजनीतिक, शैक्षिक विकास के लिए पूरा जीवन समर्पित करने को तैयार हैं. एक बड़ी आबादी बदहाली की शिकार है. मैं अपने जमीर की आवाज पर बिहार के मुसलमानों के लिए कुछ करा चाहता हूं. अब एक बड़ी शुरुआत होनी चाहिए. हमें मुसलमानों को उनकी ताकत का एहसास कराना होगा. एक ऐसे नेतृत्व वर्ग का निर्माण होना चाहिए जिनके मुंह में जुबान हो. जो अपनी बात कह सकें और अपने अधिकार ले सकें. राज्य के बजट में मुसलमानों के लिए निर्धारण जब तक नहीं होगा तबह तक मुसलमानों के हालात में सुधार नहीं होगा.
अहमद जावेद, स्थानीय सम्पादक, इंकलाब
राजनीति को फुलटाइम जाब के रूप में लेकर मुसलमानों को आगे आने की जरूरत है. राजनीतिक दलों की जी हुजूरी करने की परम्परा के बरअक्स अपने नेतृत्व को बढ़ावा देना चाहिए. इस राज्य में गुलाम सरवर, शाह मुश्ताक जैसे प्रभावीशाली नेताओं की परम्परा को मजबूत करने की जरूरत है जब उनके दौर में सरकारें मुस्लिम नेतृत्व को इग्नोर करने का साहस नहीं कर सकती थीं.
खुर्शीद हाशमी, ब्यूरो प्रमुख इंकलाब
कौम की खिदमत के जज्बे के तहत राजनीति में मुसलमानों को आना चाहिए. जब तक मुस्लिम नेतृत्व सशक्त नहीं होगा तबतक मुसलमानों के राजनीतिक अधिकार नहीं मिलने वाले.
आजमी बारी, कांग्रेस नेता
मुसलमान जात-पात और फिरकाबंदी में बंटे हैं. राजनीतिक दलो मजहबी संस्थाओं के उलेमा को सियासी पद देकर उनका जमीर खरीद लेते हैं. हमें ऐसे मजहबी संस्थों से जुड़े लोगों का बहिष्कार करना होगा.
एस.ए शाद, वरिष्ठ पत्रकार, दैनिक जागरण
इसमें संदेह नहीं कि मुसलमानों के अंदर आपसी विवाद पर खुल कर बहस होनी चाहिए. सिर्फ राजनीति के बजाये मुसलमानों के शिक्षा और रोजगार जैसे गंभीर मुद्दों पर काम करने की जरूरत है. आपसी विरोधाभास पर भी खुल कर बहस होनी चाहिए और ठोस नतीजे पर पहुंचने की कोशिश करनी चाहिए.
नूर आलम, सामाजिक कार्यकर्ता
हमें लांग टर्म रणनीति पर काम करने की जरूरत है. नयी पीढ़ी में नेतृत्व क्षमता के विकास के लिए हमें दीर्घकालिक योजना बनानी पड़ेगी. नयी पीढ़ी के युवाओं पर ध्यान केंद्रित कर हम अगली पीढ़ी के लिए नयी लीडरशिप विकसित कर सकते हैं.
इर्शादुल हक, सम्पादक नौकरशाही डॉट इन
भारत में धर्म के नाम पर राजनीति मुस्लिम समाज के लिए घातक है. अगर मुसलमान धार्मिक समुह के रूप समें सियासत को आगे बढ़ायेंगे और मजहब के नाम पर संगठित होंगे तो इससे साम्प्रदायिकता का विनाशकारी परिणाम सामने आयेगा. आप अगर अल्लाह अकबर का नारा देंगे तो जय श्री राम के नारे को भी आपको जस्टिफाई करना पड़ेगा. हां सेक्युलरिज्म को सशक्त करने के लिए मुसलमानों को मजबूती से काम करने की जरूरत है. सियासत के साथ साथ मुसलमानों को शिक्षा, स्वास्थ्य और तकनीक व विज्ञान के क्षेत्र में आगे आने की जरूरत है.
इस कार्यक्रम के आयोजन में उर्दू के वरिष्ठ पत्रकारों की टीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. फारूकी तंजीम के वरिष्ठ पत्रकार सेराज अनवर और अशरफ अस्थानवी के प्रयासों से आयोजित इस बैठक में बिहार के अनेक जिलों के सामाजिक संगठन के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. इनमें उलेमा काउंसिल, जमायत इस्लामी, अल्पसंख्यक गोलबंद मोर्चा इमारत शरीआ समेत अनेक संगठन से जुड़े प्रतिनिधि शामिल थे.
इस बैठक के नतीजों पर गौर करने के बाद एक एक्शन प्लान बनाने की घोषणा की गयी.