सामाजिक कार्यकर्ता तिस्ता सितलवाड़ ने पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि नव उदारवाद और साम्प्रदायिकता एक नये चेहरे के साथ चुनौती बन कर खड़ा है इसके लिए देश को एकजुट होने की जरूरत है.
उन्होंने कहा कि देश में इमरजेंसी जैसे हालात हैं और उन्होंने उम्मीद जताई कि जिस तरह से देश 80 के दशक में इमरजेंसी का सामना करने में सफल रहा था उसी तरह इसबार भी सफल होगा. उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में देश में बिखरी जनवादी, सामाजिक न्यायवादी और दलितवादी शक्तियों को एकजुट होना पड़ेगा. तिस्ता ने कहा कि पिछले ढ़ाई साल में देश की स्थिति काफी बिगड़ती गयी है लेकिन पारम्परिक विरोध के स्वर में बहुत मजबूती नहीं आयी है.
हालांकि उन्होंने इस बात पर संतोष जताया कि साम्प्रदायिक नव उदारवादी और फासिस्ट शक्तियों का सामना करने में छात्र आंदोलनों से जुड़े लोग काफी मुखर हैं. उन्होंने कहा कि हैदराबद, जेएनयू में छात्रों के मजबूत आंदोलन ने देश में आशा का संचार किया है. उन्होंने कहा कि लखनऊ और बनारस में भी छात्रों ने मजबूती से ऐसी शक्तियों के खिलाफ प्रतिवाद किया है.
इस अवसर पर जेएनयू के प्रोफेसर सुबोध मालाकार ने कहा कि मौजूदा समय में देश आर्थिक आतंकवाद का शिकार है. उन्होंने नोटबंदी के फैसले की तरफ इशारा करते हुए कहा कि जिस देश में लोगों को अपने ही पैसे को पाने की आजादी छीन ली गयी है वह आर्थिक आतंकवाद नहीं तो और क्या है. मालाकार ने कहा कि फासिस्ट शक्तियां जब हर मोर्चे पर विफल होती हैं तो वह राष्ट्रवाद का नारा देती हैं और लोगों को राष्ट्र की भावना के नाम पर अपनी खामियों और विफलताओं को गुमराह करती हैं.
जनशक्ति भवन में आयोजित इस कार्यक्रम का संचालन अनीश अंकुर ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन तलाश पत्रिका की सम्पादक मीरा दत्ता ने किया.