सारण लोकसभा क्षेत्र का अस्तित्व 1952 में पहली बार आया था। पहले लोकसभा में कांग्रेस के सत्येंद्र नारायण सिन्हा निर्वाचित हुए थे। 1957 में सारण की जगह छपरा अस्तित्व में आया। लेकिन 2008 के परिसीमन में छपरा लोकसभा क्षेत्र विलोपित हो गया और उसकी जगह पर सारण अस्तित्व में आया। परिसीमन के बाद 2009 में हुए चुनाव में लालू यादव इस सीट से चौथी बार निर्वाचित हुए। इससे पहले लालू यादव 1977, 1989 और 2004 में निर्वाचित हुए थे।
वीरेंद्र यादव के साथ लोकसभा का रणक्षेत्र – 10
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सांसद — राजीव प्रताप रुडी — भाजपा — राजपूत
विधान सभा क्षेत्र — विधायक — पार्टी — जाति
मढ़ौरा — जितेंद्र कुमार राय — राजद — यादव
छपरा — सीएन गुप्ता — भाजपा — तेली
गरखा — मुनेश्वर चौधरी — राजद — पासी
अमनौर — शत्रुघ्न तिवारी — भाजपा — भूमिहार
परसा — चंद्रिका राय — राजद — यादव
सोनपुर — रामानुज प्रसाद — राजद — यादव
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2014 में वोट का गणित
राजीव प्रताप रुडी — भाजपा — राजपूत — 355120 (42 प्रतिशत)
राबड़ी देवी — राजद — यादव — 314172 (37 प्रतिशत)
सलीम परवेज — जदयू — मुसलमान — 107008 (13 प्रतिशत)
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लालू यादव की सत्ता यात्रा
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1974 के जेपी आंदोलन ने प्रदेश के छात्रों को राजनीति में धकेल दिया था। छात्रों की ताकत पर शुरू हुए आंदोलन ने अनेक छात्रों को विधान सभा और लोकसभा की यात्रा करवाया। राज्य के कम से कम 24 छात्र नेता विधान सभा के लिए चुने गये। 1977 के छात्र विधायकों में अभी कई सत्ताशीर्ष पर हैं। लालू यादव एकमात्र छात्र नेता थे, जिन्होंने लोकसभा चुनाव लड़ा और संसदीय यात्रा की शुरुआत लोकसभा की। हालांकि 1980 के लोकसभा चुनाव में उन्हें छपरा में लोकसभा का चुनाव हार गये, लेकिन सोनपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित हुए। 1985 में सोनपुर से दूसरी बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। उसी टर्म में वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष निर्वाचित हुए थे। 1989 में दूसरी बार लालू यादव छपरा से निर्वाचित हुए। 2004 में तीसरी बार छपरा से निर्वाचित हुए थे और रेलमंत्री बने थे। 2004 में लालू यादव छपरा और मधेपुरा दोनों जगहों से निर्वाचित हुए थे। उन्हें जब एक सीट खाली करने की नौबत आयी तो उन्होंने मधेपुरा सीट छोड़कर छपरा सीट का प्रतिनिधित्व करते रहे। 2009 में वे चौथी बार छपरा से निर्वाचित हुए। इसी टर्म में उन्हें कोर्ट ने चारा घोटाला मामले में सजा सुनायी। इसके बाद उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त हो गयी। अक्टूबर 2013 में उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त हो गयी। सजा होने के बाद वे किसी भी प्रकार का चुनाव लड़ने के अयोग्य घोषित कर दिये गये। इस प्रकार छपरा उनके राजनीतिक उदय से अस्त तक का गवाह साबित हुआ।
सामाजिक बनावट
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सारण लोकसभा क्षेत्र यादव और राजपूत प्रभाव वाला है। एकाध विधानसभा में भूमिहारों की अचछी आबादी है। सारण में साढ़े लाख तीन से अधिक यादव वोटर होंगे, जबकि राजपूत वोटरों की संख्या करीब 3 लाख होगी। मुसलमान वोटरों की संख्या करीब 2 लाख होगी। इस क्षेत्र में यादव के खिलाफ कुर्मी और कुशवाहा की गोलबंदी का लाभ भाजपा को मिलता रहा है। बनिया वोटरों की एकतरफा वोटिंग भाजपा के पक्ष में होता है। ब्राह्मण और भूमिहार फिलहाल भाजपा के ‘जन्मजात’ वोटर हैं। इन दो जातियों का वोट भाजपा को ही मिलता है। लेकिन भाजपा के राजपूत उम्मीदवार के खिलाफ भी राजपूतों एक बड़ा वोट लालू यादव को मिलता रहा है। यह उनके व्यक्तिगत प्रभाव का असर है। इसलिए लालू यादव 1989 के बाद छपरा में कभी नहीं हारे।
लाठी और तलवार से आगे नहीं बढ़ा छपरा
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1957 से लगातार छपरा से यादव और राजपूत ही जीतते रहे हैं। इन्हीं दो जातियों की राजनीति रही है छपरा में। सभी प्रमुख पार्टी इन्हीं दो जातियों को टिकट भी देती रही हैं। जातीय समीकरणों के उलटफेर के कारण जीत का अंतर घटता-बढ़ता रहता है। कई बार उम्मीदवारों के व्यक्ति संपर्क भी बड़ी भूमिका का निर्वाह करता है और वोटरों को प्रभावित करता है।
भूमिहारों की चांदी
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लालू यादव की राजनीति भूमिहार विरोध के नाम पर ताकत हासिल करती रही है, जबकि लालू राज में भूमिहारों का बड़ा तबका सत्ता का लाभ उठाता रहा है। दो-तीन साल पहले लालू यादव अपने जन्मदिन के मौके पर कुछ पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत कर रहे थे। उसमें हम भी शामिल थे। वे अपने संघर्षों की कहानी सुना रहे थे। इस दौरान छपरा की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मढ़ौरा में रेल फैक्ट्री खोलवा दिया। उस इलाके में अधिक जमीन भूमिहारों की है। फैक्ट्री के कारण जमीन का भाव बढ़ गया और इसका सबसे ज्यादा फायदा भूमिहारों ने उठाया।
कौन-कौन हैं दावेदार
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सारण लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी अब चुनाव नहीं लड़ेगी, यह तय है। तेज प्रताप यादव और उनकी पत्नी को भी फिलहाल लोकसभा चुनाव में रुचि नहीं है। राजद सूत्रों की मानें तो तेजस्वी यादव ही छपरा में लालू यादव का उत्तराधिकारी बनेंगे यानी सारण सीट से लोकसभा चुनाव लडेंगे। लोकसभा में जाने से उनका राजनीतिक कद भी बढ़ेगा और राष्ट्रीय राजनीति को समझने का मौका भी मिलेगा। लालू यादव भी सीएम बनने से पहले छपरा के सांसद ही थे। लोकसभा चुनाव में केंद्र सरकार बदलती है तो सरकार में शामिल होने का मौका भी मिल सकता है। जहां तक विधान सभा की राजनीति का सवाल है तो 2020 में राजद गठबंधन को सत्ता मिलती है तो मुख्यमंत्री बनने में कोई बाधा भी नहीं है। उधर एनडीए में भाजपा और जदयू के बीच सीट का बंटवारा अभी लटका हुआ है। भाजपा में राजीव प्रताप रुडी की उम्मीदवारी पर संकट बरकरार है। पिछले दिनों सुशील मोदी की पुस्तक ‘लालू लीला’ के लोकार्पण पर राजीव प्रताप रुडी ने जिस तरह से सुशील मोदी पर तंज कसा था, उससे स्पष्ट है कि रुडी अपनी सीट को लेकर आश्वस्त नहीं हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे रुडी को नरेंद्र मोदी सरकार में राज्य मंत्री के पद से संतोष करना पड़ा। बाद में आरके सिंह को सरकार में शामिल करने के लिए राजीव प्रताप रुडी की ‘राजनीतिक बलि’ चढ़ा दी गयी। आरके सिंह आरा से सांसद राजपूत जाति के हैं और अभी केंद्र सरकार में ऊर्जा राज्यमंत्री हैं। छपरा सीट के प्रबल दावेदारों में महाराजगंज के भाजपा सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल भी हैं। इस सीट पर जदयू भी अपना दावा कर सकता है। किसी नयी संभावना के लिए फिलहाल एनडीए में सीटों के बंटवारे तक इंतजार करना होगा।