अकील को पुलिस ने छत से फेक कैसे मार डाला
वसीम अकरम त्यागी
बुलंदशहर के खुर्जा थाना क्षेत्र के मुंडाखेड़ा में गोश्त विक्रेता आकिल को पकड़ने के लिए पुलिस की टीम उनके घर गई थी। पुलिस ने आकिल को छत से नीचे फेंक दिया जिससे इलाज के दौरान आकिल की जान चली गई। आकिल के मासूम बच्चे अपने पिता की मौत के चश्मदीद गवाह हैं। आकिल की पत्नी शहाना के मुताबिक़ आकिल कुरैशी यूपी के बुलंदशहर में कुछ गौहत्या मामले में आरोपी थे।
23 और 24 मई की दरम्यानी रात को तक़रीबन एक बजे उनके घर पर पुलिस आई थी। “मैं छत पर थी, डर से कांप रही थी, मेरे सामने उन्होंने आकिल को लात मारी और छत से धक्का दे दिया, उन्होंने मुझे गाली दी और कहा कि मुझे भी फेंक देंगे। उसके बाद वो चले गए। मेरे बच्चे बहुत छोटे हैं, मैं अब क्या करूं, क्या आप मुझे बता सकते हैं कि मैं क्या करूं?” शहाना आगे बतातीं हैं कि “तीन पुलिसवाले आए थे, वो मेरे पति से पैसे मांगने लगे। वो मीट बेचते हैं, इसलिए वो पुलिसवाले हर एक हफ्ते, 15 दिन या महीने में पैसा लेने आ जाते हैं। मेरे पति डरे होते थे और पैसे देते थे और मुझे ठीक से बताते भी नहीं थे। जब मैं उनसे पूछती थी कि क्यों पैसे देते हैं तो साफ जवाब नहीं देते थे।
ऐसे हुई घटना
शहाना बताती हैं कि लॉकडाउन की वजह से खाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं थे और मीट की दुकान भी बंद थी। “तो जब इस बार उन्होंने 5000 रुपये मांगे तो मेरे पति ने कहा वो अगली सुबह दे देंगे। वो गुस्सा हो गए और उनका कालर पकड़ लिया और कहा कि पैसे अभी चाहिए। आकिल ने फिर वही बात दोहराई। उन्होंने आकिल को मारा, लात मारी और छत से नीचे फेंक दिया। मैंने देखा।” यही आरोप आकिल की बेटियां भी दोहराती हैं, जो उस समय छत पर ही मौजूद थीं।
परिवार 24 से 27 मई के बीच आकिल को तीन अस्पताल लेकर गया था। 27 को दिल्ली के एक अस्पताल में आकिल की मौत हो गई। आकिल के कजिन भाई ताहिर कहते हैं कि वो पुलिस स्टेशन में शिकायत करने गए थे लेकिन कोई सुनवाई न होने पर वो 29 मई को एसपी क्राइम से मिले। अधिकारी ने कहा कि जांच की जाएगी। पुलिस इन आरोपों को खारिज कर रही है, जबकि आकिल का परिवार और उनके छोटे-छोटे मासूम बच्चे अपने पिता के साथ हुई दरिंदगी के चश्मदीद गवाह हैं।
पुलिस द्वारा दूसरी हत्या
सप्ताह भर में यह दूसरी घटना है जिसमें यूपी पुलिस पर हत्या का आरोप लगा है। इससे पहले उन्नाव के बांगरमऊ के सब्जी विक्रेता मोहम्मद फैसल को लाॅकडाउन तोड़ने के आरोप में थाना लाया गया, थाने में फैसल को इतना पीटा कि उसकी जान चली गई। आपको याद होगा कि बीते वर्ष अमेरिका में एक काले समुदाय के जाॅर्ज फ्लाॅयड नामी शख्स की पुलिस कस्टडी में मौत के बाद पूरे अमेरिका में उबाल आ गया था। इस घटना पर शर्मिंदगी ज़ाहिर करते हुए अमेरिकी पुलिस को घुटनों के बल गिरकर अपने देश की जनता से माफी मांगनी पड़ी थी। लेकन भारत में ‘कस्टोडियन किलिंग’ कोई एक घटना नहीं है बल्कि यहां घटनाओं के सिलसिले हैं। ये घटनाएं इतनी ज्यादा दोहराई गईं हैं कि सब सामान्य लगने लगीं हैं।
ये घटनाएं क्यों होती हैं? इसके पीछे पुलिस की सांप्रदायिक एंव कुंठित मानसिकता तो है ही लेकिन इसके अलावा और भी कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण वर्दी का रुआब है, जिसे भारतीय समाज ने इस तरह बना दिया कि वर्दी पहनकर ‘कुछ भी करने’ की आज़ादी है। मसल किसी के भी हिंसा की जा सकती है, थप्पड़, लाठी, डंडा मारने की भी आज़ादी है। अक्सर कहावत है कि पुलिस की मार और बरसात में फिसलन की शिकायत नहीं करनी चाहिए, इसी मानसिकता ने वर्दी पहने शख्स के भीतर की मानवता को समाप्त कर दिया है। जिसकी वजह से आए दिन ग़रीब, मजदूर लोग पुलिस की गालियों का सामना करते हैं, लाठी, डंडा, चांटा खाते हैं, बिना कोई अपराध किए भी प्रताड़ित होते रहते हैं। दूसरा कारण सांप्रदायिक कुंठा है, यह कुंठा मीडिया सोशल मीडिया के माध्यम से मुसलमानों के खिलाफ फैलाए गए ज़हर के कारण बनी है। इस ‘स्टीरियोटाईप’ सांप्रदायिक ज़हर ने मुसलमान को ‘देशद्रोही’ बनाकर पेश किया है।
देश में अक्सर पुलिस सुधार की बातें होती रहती हैं, मगर ये बातें सिर्फ बातें ही हैं। पुलिस सुधार की सबसे ज्यादा जरूरत उत्तर प्रदेश में है क्योंकि इसी राज्य में पुलिस पर सबसे ज्यादा कस्टोडियन किलिंग के मामले दर्ज हैं। मुसलमानों के प्रति उत्तर प्रदेश पुलिस का जो रवैया रहा है वह किसी से छुपा नहीं है, अगर यह कह दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यूपी पुलिस और बजरंग दल में कोई खास अंतर नहीं रहा है। अब यूपी पुलिस को सबसे पहले बजरंग दल वाली मानसिकता से बाहर निकलना होगा। यूपी के डीजीपी को चाहिए कि जिस थाने में भी कस्टोडियन किलिंग का मामला सामने आए तो आरोपित थाने को सस्पेंड कर दिया जाए। और कस्टोडियन किलिंग के आरोपी पुलिसकर्मियों को नौकरी से बर्खास्त करते हुए उन पर हत्या का मुकदमा दर्ज किया जाए। इसके अलावा पीड़ित परिवार को भारी मुआवज़ा दिया जाए, साथ ही उस मुआवजे की रक़म कस्टोडियन किलिंग के दोषी से वसूली जानी चाहिए। जब तक ऐसा नही होगा, तब पुलिस की ज़ेरेहिरासत लोग अपनी जान गंवाते रहेंगे, और लोकतंत्र, पुलिसतंत्र में तब्दील होता जाएगा।