अखिलेश यादव के इस बयान से राज्य की नौकरशाही में उबाल आ गया है जिसमें उन्होंने कहा था कि नौकरशाही गहरे भ्रष्टाचार में डूबी है.अनेक नौकरशाहों ने अखिलेश यादव को घेरते हुए कहा है कि सच्चाई यह है कि सरकार भ्रष्टाचार से निपटने में नाकाम रही है.
कुछ वरिष्ठ नौकरशाहों का कहना है कि मुख्यमंत्री के ऐसे बयान से अधिकारियों के मनोबल पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा. एक अधिकारी का कहना है, “मुख्यमंत्री अगर कह रहे होतें हैं कि नौकरशाह भ्रष्ट हैं तो वह यह भी स्वीकार कर रहे होते हैं कि उनकी सराकर इस से निपटने में नाकाम रही है. मतलब साफ है कि सराकर भ्रष्टाचार के प्रति गंभीर नहीं है”.
उनका कहना है कि जब कोई सात महीने पहले असेम्बली चुनाव हो रहे थे तो खुद अखिलेश यादव ने वादा किया था कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आयेगी तो मायावती के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच के लिए एक आयोग का गठन करेगी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया गया.
इन नौकरशाहों के पास अपनी बात की प्रमाणिकता के अनेक तथ्य भी हैं. एक अधिकारी कहते हैं, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) घोटाले के आरोपी अधिकारी प्रदीप शुक्ला को तब निलंबित किया गया जब अदालत ने हस्तक्षेप किया. हालांकि शुक्ला ने अनेक महीने जेल की सलाखों के भीतर गुजारा.
ये अधिकारी ऐसा एक और उदाहरण पेश करते हैं.राज्य के उद्योगिक विकास निगम के मुख्य अभियंता अरुण कुमार मिश्र, जो सौकरोड़ रुपये के घोटाले के आरोपित थे, के निलंबन को वापस ले लिया गया. सरकार के इस फैसले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उससे जवाब तक तलब कर लिया है.
इन अधिकारियों का कहना है कि सरकार 200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामले की जांच करवा रही है और इस संबंध में अनेक अधिकारियों पर चार्जशीट दायर किया गया है पर उनके खिलाफ कार्वाई करने की बात आती है तो वह कुंडली मार कर बैठ जाती है.
ऐसे में नौकरशाही पर सीधा आरोप लगा देने मात्र से सरकार अफनी जिम्मेदारियों से नहीं बच सकती. इनका कहना है कि जब तक सरकार भ्रष्टाचार को गंभीरता से नहीं लेगी तब तक ऐसे बयान देने से ईमानदार नौकरशाहों के मनोबल को तो कमजोर किया जा सकता है पर भ्रष्टाचार पर नियंत्रण नहीं किया जा सकता.