पीएम पूरे रंग में हैं. यह बात सोलह आने सच साबित होती जा रही है पीएम इतने रंग में हैं इस बार कि आईबी और रॉ के डायरेक्टर उनकी ही पसंद के बनने हैं. इसमें खास बात क्या है? खास बात यह है कि पिछले कुछ साल से व्यवस्था बदली हुई है और आईबी चीफ सीधे पीएम को रिपोर्ट नहीं कर रहे थे। वे सुरक्षा सलाहकार को रिपोर्ट कर रहे थे. अब मंगलवार को सीबीआई चीफ के लिए पैनल बनना है, जिसके लिए चार नाम चल रहे हैं. चलिए वे नाम भी बता देते हैं. ये नाम हैं- रंजीत सिन्हा, एनके सिन्हा, नीरज कुमार और वीके गुप्ता. डीजी-बीएसएफ यूके बंसल और डीजी-सीआईएसएफ राजीव भी इस कतार में हैं. यानी अगला सीबीआई चीफ या तो कायस्थ होगा या फिर वैश्य.

डा. भरत अग्रवाल

पिक्चर अभी बाकी है

लेकिन पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त. सुब्रह्मण्यम स्वामी ने सीवीसी को एक चिट्ठी लिखी है, अगले सीबीआई डायरेक्टर के सिलेक्शन के बारे में. हमने उस चिडिय़ा से सुना है, जो उस दिन उसी खिड़की के पास से उड़ रही थी।.

पहले मंत्री के खास, अब संतरी के

एक बिजनेस घराना, जो शिपयार्ड वगैरह के बिजनेस में है, आजकल किंगफिशर की गति को प्राप्त हो रहा है. दिक्कत सिर्फ किल्लत की नहीं है. दिक्कत यह भी है कि वो घराना पहले वित्त मंत्री का चहेता होता था. आजकल वित्त मंत्रालय की एक जांच एजेंसी का चहेता है.

ऐसे बची न्यायिक जांच

कोयले के घपले की जांच का काम जस्टिस एसएच कापडिय़ा को सौंपना लगभग तय हो गया था, लेकिन ऐसा दो कारणों से हो नहीं हो सका। उनमें से एक यह था कि जांच अलग-अलग स्तर के मुकदमों पर चल रही है और उन्हें केंद्रीकृत करना ठीक नहीं रहेगा.

इमोशनल नेताजी

दिल्ली बीजेपी के एक नेता हैं. थोड़े बहुत हैं, और थोड़े बहुत बनने की फिराक में हैं. भाई ने सूरजकुंड में हुई बीजेपी की मीटिंग में जमकर भाषण दिया. कह डाला कि अध्यक्ष बनने के पहले उन्होंने नितिन गडकरी का नाम तक नहीं सुना था. जब मुंबई गए तो जाकर पता चला कि गडकरी यहां मंत्री रह चुके हैं और उन्होंने तब कई पुल और सड़कें बनवाई थीं. समझ में नहीं आया कि जनाब तारीफ कर रहे थे या बुराई.

अति-मैनेजमेंट

इनकी टक्कर के ही दिल्ली बीजेपी के एक और नेता हैं। पार्टी के एक प्रकोष्ठ का काम देखते हैं। नेताजी ने अपने प्रकोष्ठ का काम दिखाने के लिए एक सीडी बनवाई और बड़े नेताओं के सामने दिखाने का कार्यक्रम रखा। सीडी चल ही नहीं सकी और खुद नितिन गडकरी ने कहा कि छोड़ो रहने दो। लेकिन नेताजी कहां मानने वाले थे। उन्होंने सीडी दिखाकर ही दम लिया। लेकिन सीडी चलते ही मंच पर बैठे तमाम नेताओं का दम फूलने लगा। जानते हैं क्यों? सीडी में येदियुरप्पा का गुणगान था और मंच पर शेट्टार बैठे थे। सीडी में रमेश पोखरियाल का गुणगान था और मंच पर खंडूरी बैठे थे। इसीलिए कहते हैं कि अति-मैनेजमेंट गड़बड़ी करा देता है।

फोटो की जय

सरकार से किसी योजना की मंजूरी मिलने में दिक्कत इसलिए आती है क्योंकि मंजूरी लेने के लिए कोई योजना नहीं बनाई गई होती है। अच्छी योजना कैसी होती है? हम बताते हैं। आप प्रजेंटेशन बनाएं। पहले पन्ने पर राजीव गांधी का फोटो लगाएं। और योजना का नाम राजीव गांधी के नाम पर रखें। गारंटी है, योजना को बिना सवाल-जवाब मंजूरी मिल जाएगी। हम मजाक नहीं कर रहे हैं। यकीन न हो तो वित्त मंत्रालय वालों से पूछ लें। न पूछना चाहें, तो चंद दिन रुक जाएं। नोटिफिकेशन जारी होने ही वाला है।

अफसर तो अफसर ही है

एक हैं संजय मित्रा साब। 1982 बैच के आईएएस अफसर हैं। पिछले साल तक मनमोहन सिंह के पीएमओ में संयुक्त सचिव होते थे। आजकल ममता बनर्जी सरकार के मुख्य सचिव हैं। यह अलग बात है कि आजकल ममता बनर्जी और मनमोहन सिंह में बहुत अच्छे रिश्ते नहीं हैं।

कड़वे सेब

इसका मतलब यह नहीं है कि कांग्रेस ममता के लिए नरम है. इस चुटकुले पर गौर फरमाइए- ‘(कंप्यूटर कंपनी) एप्पल भारत में अपने स्टोर खोलने जा रही है. ममता ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है, क्योंकि इससे लाखों फल बेचने वालों के रोजगार पर असर पड़ेगा. अब समझ गए न आप, कड़वाहट कितनी गहरी है.

(दैनिक भास्कर से साभार)

By Editor


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