अगर आप नहीं जानते तो जानिये कि गणित के पेचीदा सूत्रों को चुटकियों में सुलझाने वाले बिहार के गणितज्ञ वशिष्ट नारायण सिंह अपनी किस हसरत को पूरी करने के नाम पर ही मचल जाते हैं. पढ़िये अधूरी हसरत.
रजनीश उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
आज (शनिवार को) सुबह-सुबह अयोध्या जी का फोन आया. वे महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह के छोटे भाई हैं. हाल-चाल की औपचारिकता के बाद उन्होंने भारी मन से अपने मन की पीड़ा बतायी. बोले – ‘अखबार में पढ़नी हं कि आज साइंस कॉलेज के स्थापना दिवस बा. ओही कॉलेज में भईया पढ़ल रहन. का कॉलेज के ना चाहत रहे कि उनका एक बार बोलाइत. सरकार त वशिष्ठ बाबू के भुला ही देलक, समाज के कुछुओ जिम्मेवारी बा कि ना.’
मैं सन्न रह गया.
अयोध्या जी के सवाल का कोई जवाब नहीं था मेरे पास. वशिष्ठ बाबू इन दिनों पटना के अशोक राजपथ स्थित एक अपार्टमेंट में अपने परिवार के साथ रह रहे हैं. सरकार और राजनेताओं ने भले ही उन्हें भुला दिया हो, उनका परिवार उनके साथ खड़ा है. अयोध्या जी तो 24 घंटे उनकी देखरेख में लगे रहते हैं. कभी-कभार उनसे मिलने जाता रहा हूं. याद आया पिछली बार जब गया था, तो अयोध्या जी ने कहा था कि भईया कभी-कभी साइंस कॉलेज जाने की जिद करने लगते हैं. तब मैंने यूं ही बात-बात में वशिष्ठ बाबू से पूछा था – ‘साइंस कॉलेज चलम का? वे बोले- हं हो, जाये के बा ओहीजा.’
तो ऐसे हैं वशिष्ठ नारायण सिंह
इनकी तीक्ष्ण बुद्धि से प्रभावित पटना युनिवर्सिटी ने उन्हें मात्र 20 वर्ष की उम्र में मास्टरर्स की उपाधि दे दी. पीएचडी करने के बाद उन्होंने अमेरिका के नासा में नौकरी की. 1969 में कैलिफोरनिया युनिवर्सिटी से पीएचडी की डिग्री हासिल की. 1973 मैं देश लौटने के बाद इंडियन इंस्टिच्यूट कानपुर में शिक्षण कार्य किया. सिजोफ्रेनिक होने के कारण वह 1988 में अचानक लापता हो गये. पांच सालों के बाद 1992 में उन्हें सिवान में पाया गया. फिलहाल बीनए मंडल युनिवर्सिटी में गेस्ट फैकेल्टी भी हैं.
शनिवार को साइंस कॉलेज का स्थापना दिवस धूम-धाम से मना. किसी ने वशिष्ठ बाबू का नाम भी नहीं लिया. पता नहीं पटना यूनिवर्सिटी के कड़क वीसी को वशिष्ठ बाबू के बारे में कितनी जानकारी है, लेकिन शिक्षकों को तो पता होगा. नहीं है तो कम से कम पता करना चाहिए. वशिष्ठ बाबू ने 1962 में साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया था और 20 साल की उम्र में उन्होंने यहीं से पीजी किया. इतनी कम उम्र में पीजी करने वाले वह पहले भारतीय थे और उनके लिए साइंस कॉलेज में विशेष तौर पर परीक्षा का आयोजन किया गया था. यहीं उनकी मुलाकात प्रो केली से हुई थी, जो उन्हें अमेरिका ले गये.
वशिष्ठ बाबू पटना में इन दिनों जहां रहते हैं, वहां से साइंस कॉलेज की दूरी करीब ढाई किलोमीटर होगी. क्या उनकी अपने पुराने कॉलेज में घूमने, वहां के शिक्षकों-छात्रों से मिलने की उनकी इच्छा का सम्मान नहीं किया जा सकता? वे कॉलेज जाते तो छात्रों को गौरव बोध होता. साथ ही उन्हें एक सबक भी मिलता कि प्रतिभाओं को सहेजने का सऊर न हो पाने का कितना गहरा असर होता है. इसी का तो नतीजा है कि तीक्ष्ण बुद्धि का धनी, गणित के कठिन सूत्र को चुटकियों में सुलझाने वाला एक महान गणितज्ञ अपनी दुनिया में जी रहा है, पूरी दुनिया से कटा हुआ – सिजोफ्रेनिया से पीड़ित
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