बिहार सरकार के आपदा प्रबंध विभाग के प्रधान सचिव व्यासजी मिश्र ने कहा है कि कोसी में बाढ़ का खतरा फिलहाल टल गया है, लेकिन इसकी आंशका को पूरी तरह से निराधार नहीं बताया जा सकता है। उधर केंद्रीय जल आयोग ने भी खतरा टलने के संकेत दिए हैं। इस बीच कोसी में बाढ़ की आशंका को देखते हुए राहत और बचाव के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। बाढ़ की आशंका को देखते हुए राज्य व केंद्र सरकार अभूतपूर्व इंतजाम किए हैं। अब लगता है जैसे कोसी में ‘राहत की बाढ़’ आ गयी है।
बिहार ब्यूरो प्रमुख
राज्य सरकार का दावा है कि बाढ़ प्रवण नौ जिलों में 154 राहत शिविर लगाए हैं, जिसमें करीब 70 हजार लोग पहुंच चुके हैं। पशुओं के लिए 32 शिविर लगाए गए हैं। एनडीआरएफ की 15 और एसडीआरएफ की 4 टीमें तैनात की गयी हैं। इसके साथ 29 एम्बुलेंस और 107 डाक्टर तैनात किए गए हैं। केंद्र की ओर से भी राहत के व्यापक इंतजाम किए गए हैं। दिल्ली से मेडिकल टीम बिहार पहुंच चुकी है। चार सैन्य हैलीकॉप्टर भी लाए गए हैं। मालवाहक विमान भी लाया गया है।
कुसहा त्रासदी की जांच के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि यह त्रासदी मानवनिर्मित थी और अधिकारियों की लापरवाही, उनकी अक्षमता और निर्माण प्रक्रिया में इस्तेमाल की गयी घटिया सामग्री के कारण बांध टूटा था। यह संयोग रहा कि जिस दिन यह रिपोर्ट विधानसभा में पेश की गयी, उसी दिन कोसी में फिर से बाढ़ की आशंका की खबरें आने लगीं। इसका असर हुआ कि प्रशासन पूरी तरह सतर्क हो गया। राहत व बचाव के नाम पर कोई भी चूक की शिकायत सुनने को प्रशासन तैनात था। कोसी की एक धारा भूस्खलन के कारण हो जाने के बाद जमा पानी छोड़े जाने के बाद स्थिति भयावह होने की आशंका जतायी गयी थी। लेकिन अब सब कुछ सामान्य बताया जा रहा है।
दरअसल राहत के नाम पर केंद्र व राज्य सरकार के बीच जमकर राजनीति हुई। बिहार के मुख्य सचिव बाढ़ प्रवण जिलों के डीएम से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर रहे थे तो केंद्रीय कैबिनेट सचिव भी बैठक दर बैठक किए जा रहे थे। बिहार के सांसद व मंत्रियों के बीच श्रेय लेने की होड़ लग गयी। इस कारण जरूरत से ज्यादा राहत व बचाव का अभियान चलाया गया। राहत कार्यों के लिए पहुंचे अधिकारियों के बीच समन्वय का भी अभाव रहा। जिला प्रशासन, आपदा प्रबंधन विभाग और केंद्र सरकार अपने-अपने स्तर पर प्रयासरत थे। इस कारण कोसी क्षेत्र में ‘राहतों की बाढ़’ आ गयी। इसके बाद भी राहत शिविर में रह रहे लोगों की अपनी शिकायत थी। खाने से लेकर पानी तक का संकट।
अब जबकि खतरा टल सा गया है। तैयारियों को लेकर प्रशासन की सतर्कता हर जगह दिखी। अधिकारी भी हर जगह तैनात रहे। हालत यह रही कि राहत के लिए नदी में उतारा गया मोटरबोट पानी के अभाव में बंद हो जा रहा था। बाढ़ को लेकर अफवाह भी चर्चा में रही। इसके बावजूद आम लोग धैर्य के साथ प्रशासन का सहयोग करते रहे और प्रशासन भी अपने स्तर पर जुटा रहा। हालांकि यह भी सच है कि कोसी में बाढ़ नियति है। कुसहा जैसी त्रासदी संयोग था और ऐसी त्रासदी कह कर नहीं आती है। और जब आती है तो कुछ करने का मौका भी नहीं देती है। कुसहा इसका सबसे बड़ा व जीवंत प्रमाण है और कोसी जांच रिपोर्ट भी इस बात का प्रमाण है कि प्रकृति से ज्यादा खतरना है मानवीय चूक और अधिकारियों की लापरवाही।
(यह तसवीर सुपौल से अभिनव मलिक ने भेजी है। सुपौल के बेरिया मंच बांध के पास नदी में पानी के अभाव में नहीं चल पा रहा वोट)