भारतीय नौकरशाही में अशोक खेमका का नाम इसलिए भी चर्चित है कि उन्होंने अपने 22 साल के करियर में 19 तबादले झेले हैं.
लेकिन अब नौकरशाहों को राजनीतिक नेतृत्व गेंद की तरह अपनी मर्जी से लुढ़का नहीं सकेंगा. सुप्रीमकोर्ट ने इस सबंध में एक कड़ा फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था उस पीआईएल के बाद दी है जिसमें देश के 83 रिटार्यड नौकरशाहों ने दायर की थी. इनमें पूर्व कैबिनेट सचिव टीआरएस सुब्रमणियम समेत कई नौकरशाहोंने अदालत से अपील की थी कि नौकरशाही को राजनीतिक दबाव से निजात दिलायी जाये.
अपने करियर के संबंध में नौकरशाहों की सबसे बड़ी चिंता यह रहती है कि राजनीतिक नेतृत्व जब चाहे उन्हें गेंद की तरह यहां से वहां लुढ़काता रहता है.
यह बहस पिछले कई दशकों से चल रही है कि एक नौकरशाह अपे काम को ठीक से तब तक नहीं कर पायेगा जबतक कि उन्हें निश्चित अवधि तक एक पद पर रहने की स्वतंत्रता मिले. लेकिन राजनीतिक नेतृत्व ऐसा नहीं होने देता. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसा फैसला दिया है जिससे आईएएस, आईपीएस, राज्य सेवा के अधिकारियों के लिए बड़ी उम्मीद जगी है.
कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट के एक बेंच ने कहा है कि नौकरशाहों के लिए फिक्स्ड टर्म उके अंदर प्रोफेश्नलिज्म, कार्यक्षमता और सुशासन को बढ़ावा देने के लिए जरूरी है. हाईकोर्ट ने यहां तक कहा है कि नौकरशाही के काम कार्यनिष्पादन में सबसे बड़ी बाधा राजनीतिक दबाव है. इसी बात के मद्देनजर अदालत ने तमाम राज्य सरकारों और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे तीन महीने के अंदर एक आदेश पारित करें जो सिविल सेवा के अधिकारियों के लिए निर्धारित अवधि पूरी करने संबंधी हो.
देश की सबसे बड़ी अदालत ने नौकरशाहों को यह भी निर्देश दिया है कि वह राजनीतिक नेतृत्व के मौखिक निर्णयों को लिखित रिकार्ड के रूप में संरक्षित किया करें ताकि जरूरत पड़ने पर वह इससे पीछ न हट सकें. कोर्ट ने कहा है कि मौखिक निर्णयों को लिखने से काम में पार्दशिता आयेगी और समय पड़ने पर लोग इससे संबंधित सूचना को प्राप्त भी कर सकेंगे.
आईएएस अशोक खेमका और आईएएस दुर्गाशक्ति नागपाल के साथ संबंधित राज्यसरकारों के व्यवहार के आलोक में यह फैसला काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. आपको याद होगा कि हरियाणा कैडर के आईएएस अशोक खेमका को डीएलएफ- रॉबर्ट वाड्रा जमीन डील को रद्द करने के बाद उन्हें कई बार ट्रांस्फर कर दिया गया था. इसी तरह दुर्गाशक्ति नागपाल को एक घटना के बाद तुरंत उत्तर प्रदेश सरकार ने हटा दिया था.