नीतीश कुमर के मुख्यमंत्री बने अभी दस दिन ही हुए हैं कि राजद और जद यू के बीच विवाद बढ़ने लगे हैं. नीतीश कुमार ने जिस राष्ट्रीय जनता दल के संग मिल कर जीतन राम मांझी का तख्ता पलटा अब उन्हीं को जनता परिवार में वापस लाने को ले कर शह और मात का खेल शुरू हो गया है.
जानकारों का मानना है कि यह विवाद नीतीश सरकार के विश्वास मत प्राप्त करने तक और गंभीर रूप ले सकता है. इसकी शुरूआत राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठतम नेताओं में से एक रघुवंश प्रसाद सिंह के उस बयान से हो गयी है जिसमें उन्होंने कहा है कि जनता परिवार का विलय तब तक बेमानी है जब तक कि जीतन राम मांझी और उनके सहयोगी मंत्री रहे नेताओं को वापस जनता परिवार में शामिल नहीं कर लिया जाता.
भले ही कुछ लोग इसे रघुवंश प्रसाद सिंह के निजी बयान के रूप में लें, लेकिन सच्चाई तो यह है कि इसके पीछ लालू प्रसाद की भी स्वीकृति प्राप्त है. क्योंकि जब रघुवंश के इस बयान पर पूछा गया कि मांझी के बारे में क्या यह उनकी निजी राय है तो रघुवंश ने कहा कि लालू प्रसाद पहले ही मांझी को जद यू परिवार में शामिल करने की बात पर अपनी राय दे चुके हैं.
पढ़ें- हर सवाल का जवाब देना जरूरी नही
रघुवंश के इस बयान को इस लिए भी काफी गंभीर माना जा रहा है कि आगामी 11 मार्च को नीतीश सरकार को असेम्बली में बहुमत साबित करना है. इसके लिए नीतीश को राजद के 24 एमएलए की हिमायत लेने का सवाल है.
राजद और जद यू के बीच सब कुछ ठीक-ठाक न होने की एक मिसाल 22 फरवरी को ही तब मिल गयी जब नीतीश सरकार में राजद के एक भी मंत्री शामिल नहीं हुए. हालांकि पहले इस बात की चर्चा चली कि राजद के एमएलएज को भी मंत्री बनाया जा सकता है.
हालांकि इस बारे में नीतीश कुमार ने फिलहाल कुछ कहने से इनकार कर दिया है. जब पत्रकारों ने नीतीश से इस बारे में पूछा तो उन्होंने सवाल को टालते हुए कहा कि हर सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं है. लेकिन अंदरखाने में निश्चित रूप से नीतीश कुमार रघुवंश प्रसाद सिंह के इस बयान की गंभीरता को समझ रहे हैं.
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