जदयू के वरिष्ठ नेता और सांसद आरसीपी सिंह पहली बार लालू यादव की सभा में नजर आए। नीतीश के साथ सभाओं में उपस्थिति उनकी सामान्य रूप से रही है। रविवार को पटना के गांधी मैदान में आयोजित कुम्हार समाज की रैली में लालू यादव के साथ आरसीपी सिंह और जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह साथ-साथ पहुंचे थे। इस रैली में नीतीश कुमार को पहुंचना था, लेकिन उन्होंने अपने सबसे विश्वस्त दूत आरसीपी सिंह को भेजा।
वीरेंद यादव
आइएएस की नौकरी करते-करते बिहार की सत्ता के असली नियंता बनने वाले आरसीपी सिंह एक समय बिहार के सुपर सीएम कहे जाने लगे थे। पूर्व आइएएस एनके सिंह के साथ मिलकर आरसीपी सिंह ने दिल्ली के प्रशासिनक गलियारे में नीतीश की पैठ बनवाइ। मीडिया में छवि चमकाने का भी पूरा प्रयास किया। इससे नीतीश इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने आरसीपी सिंह को आइएएस से इस्तीफा दिलवाकर राज्य सभा में भिजवा दिया। राज्य सभा में पहुंचने के बाद उनकी भूमिका में जबरदस्त बदलाव आया। उन्होंने प्रशासनिक सत्ता के साथ राजनीतिक सत्ता पर कब्जा जमा लिया। वह नौकरशाही के साथ से जदयू के संगठन को भी चलाने लगे। उनका असर सिर्फ जदयू ही नहीं, बल्कि भाजपा के मंत्रियों पर भी बराबर का था। बताया जाता है कि उस दौर में मंत्रियों को सिर्फ साइन करने की जगह ही फाइल पर दिखायी जाती थी। फाइल में क्या लिखा हुआ है, किसी मंत्री ने कभी नहीं पूछा।
नयी भूमिका की तलाश
नये परिवेश में सत्ता का समानांतर केंद्र लालू यादव के बनने की संभावना को भांपते हुए आरसीपी सिंह ने अपनी दिशा बदल दी है। वह सात नंबर (नीतीश कुमार का आवास) के साथ दस नंबर (लालू यादव का आवास) को साधने में जुट गए हैं। इसी क्रम में वह पहली बार लालू यादव के साथ मंच पर गए। इसका मकसद कार्यकर्ताओं को यह बताना भी था कि हम नीतीश कुमार के साथ लालू यादव के भी करीबी हैं। उनकी यह रणनीति कितनी सफल होगी, यह भविष्य में तय होगा, लेकिन इतना तय है कि विलय के बाद अपनी सत्ता और भूमिका को लेकर आरसीपी सिंह सचेत हो गए हैं और उसके अनुकूल समीकरण बनाने में जुट गए हैं।
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