उच्चतम न्यायालय ने सरकारी विज्ञापनों में तस्वीरों के इस्तेमाल से संबंधित अपने पूर्व के आदेश में आज संशोधन करते हुए राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों एवं संबंधित विभाग के मंत्रियों को भी शामिल करने की अनुमति दे दी। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई एवं न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद पंत की पीठ ने केंद्र सरकार, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु एवं कुछ अन्य राज्य सरकारों की पुनर्विचार याचिकाएं स्वीकार करते हुए मई 2015 के उस आदेश में संशोधन किया।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
शीर्ष अदालत ने इन विज्ञापनों में राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों एवं कैबिनेट मंत्रियों की तस्वीरें भी शामिल करने का आदेश दिया। इससे पहले उसने सरकारी विज्ञापनों में केवल राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की तस्वीर प्रकाशित करने का आदेश दिया था, वह भी उनकी अनुमति लेकर ही। पुनर्विचार याचिका दायर करने वालों में पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम और ओडिशा की सरकारें भी शामिल थीं। याचिकाकर्ताओं की दलील दी थी कि न्यायालय का संबंधित आदेश देश के संघीय ढांचे के विरुद्ध है। केंद्र सरकार की ओर से खुद एटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत में मोर्चा संभाला था और दलील दी थी कि संघीय ढांचे में मुख्यमंत्रियों या केंद्रीय मंत्रियों का स्थान प्रधानमंत्री से कम नहीं है।
श्री रोहतगी ने दलील दी थी कि यदि सरकारी विज्ञापनों में प्रधानमंत्री की तस्वीर लग सकती है तो इसका कोई कारण नहीं दिखता कि मुख्यमंत्रियों को इससे वंचित रखा जाए। यदि प्रधानमंत्री की तस्वीर जरूरी है तो मुख्यमंत्री की तस्वीर भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार ने अपनी पुनर्विचार याचिका में भी कहा था कि विज्ञापन में किसकी तस्वीर लगेगी और उसकी विषय-वस्तु क्या होगी, यह तय करना सरकार का काम है। याचिका में कहा गया था कि न्यायालय को ऐसे नीतिगत मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।