मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहले सवर्ण जातियों के लिए सवर्ण आयोग बनाया था। अब सवर्ण जातियों के गरीब छात्रों के लिए छात्रवृत्ति की घोषणा कर दी है। नीतीश कुमार के फार्मूले के अनुसार, प्रति वर्ष डेढ़ लाख रुपये तक की आमदनी वाले परिवार के छात्रों को अब स्कूलों में छात्रवृत्ति मिलेगी। इसे आप ओबीसी के लिए निर्धारित क्रीमी लेयर के तर्ज पर सवर्णों के लिए ‘नीतीश रेखा’ कह सकते हैं।
वीरेंद्र यादव, बिहार ब्युरो प्रमुख
लालू यादव के साथ नीतीश कुमार के आने बाद उनका यह सबसे बड़ा व महत्वपूर्ण निर्णय है। यादव और मुसलमान को अपने आधार वोट मानने वाले लालू यादव के सहयोग से चलने वाली सरकार ने सवर्णों के लिए छात्रवृत्ति की घोषणा की है। भाजपा के सहयोग से जब तक नीतीश कुमार सरकार चल रही थी, तब तक सवर्णों के लिए छात्रवृत्ति की नहीं सोच सकी। लेकिन लालू के कंधे पर सवार होते नीतीश ने सवर्णों को तोहफा थमा दिया।
पूरे देश में पहली बार
देश में जाति के आधार पर बिहार में पहली बार सवर्णों को सुविधाएं दी जा रही हैं। इसके लिए आर्थिक पैमाने को आधार बनाया गया है, जबकि संविधान में आर्थिक आधार पर सुविधाएं देने का कोई प्रावधान नहीं है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि नीतीश कुमार ने लालू यादव के समर्थन मिलते ही संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाना शुरू कर दी। चुनाव वर्ष में नीतीश कुमार ने सवर्ण वोटों की खातिर गरीब के नाम पर सवर्णों को लालीपॉप थमा दिया है। इसे कैबिनेट की मंजूरी भी मिल चुकी है। अब देखना यह है कि चुनाव में इसका लाभ नीतीश को मिलता है या खामियाजा लालू यादव को उठाना भुगतना है।