स्मृति ईरानी के मंत्रालय के अधीन नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज ने उर्दू लेखकों और संपादकों को सरकार और देश विरोधी नहीं होने का प्रमाण पत्र देने को कहा है. ऐसे न करने वालों की रचनायें न तो प्रकाशित होंगी और न ही उन्हें सरकारी अनुदान मिलेगा.
एक फार्म में लेखकों को यह घोषणा करने को कहा गया है कि बुक और मैगजीन में प्रकाशित आलेख सरकार और देश के खिलाफ नहीं है। यह फॉर्म उन लेखकों को जारी किया गया है, जो कि सरकार आर्थिक योजना के तहत एनसीपीयूएल की योजना का लाभ उठाना चाहते हैं।
इंडियन एक्सप्रेस में दिप्ति गोयल की रिपोर्ट के मुताबिक इस घोषणा पत्र में लेखकों को लिखना होगा कि मैं पुत्र-पुत्री यह आश्वस्त करता हूं करती हूं कि एनसीपीयूएल द्वार खीदी जाने वाली मेरी पुस्तक में सरकार की पालिसियों के खिलाफ कुछ भी नहीं लिखा है. इसमें विभिन्न वर्गों के बीच असौहार्द जताने वाला कोई कंटेंट नहीं है.
हूं कि एनसीपीयूएल द्वारा आर्थिक सहायता योजना के तहत एक साथ खरीदने लिए मंजूर हुई मेरी किताब और मैगजीन में भारत सरकार की नीतियों और राष्ट्रहितों के खिलाफ नहीं लिखा है। एनसीपीयूएल के डायरेक्टर इरतेजा करीम का कहना है कि अगर कोई लेखक सरकार से आर्थिक मदद चाहता है तो सामग्री सरकार के खिलाफ कतई नहीं होनी चाहिए।
एनसीपीयूएल सरकारी संस्थान है और हम सरकारी कर्मचारी। स्वभाविक है कि हम सरकार के हितों की रक्षा करेंगे। साथ ही फॉर्म के फैसले के बारे में उन्होंने कहा कि इसका फैसला पिछले साल काउंसिल मेंबर्स की बैठक में एक साल पहले लिया गया था। जिसमें एचआरडी मिनिस्ट्री के सदस्य भी शामिल थे.
सरकार के इस रवैये की मुखालफत भी शुरू हो गयी है.