अमरनाथ यात्रा शुक्रवार को अस्थायी रूप से रोक देने की खबर है. पर इसमें चिंता की बात यह है कि इस मामले में सीआरपीएफ की तरफ से जो बयान आया वह भ्रामक है और उसकी भूमिका संदिग्ध.
आधार शिविर बालटाल के पास टट्टू मालिकों और सामुदायिक रसोई चलाने वालों के बीच विवाद के बाद सीआरपीएफ कर्मियों के सख्त रवैये के चलते हिंसा भड़क गई, जिसमें 25 लोगों से ज्यादा घायल हुए. खबरों में साफ बताया गया है कि घायलों में एक भी अमरनाथ यात्री नहीं है.
लेकिन जिस तरह से सीआरपीएफ के जवानों में इस मामले में अपनी भूमिका निभाई है वह वह काफी भ्रामक है. खबरों में बताया गया है कि शुक्रवार को तीर्थयात्रियों के लिए लंगर चलाने वालों और स्थानीय टट्टू मालिकों के बीच कहासुनी हुई. फिर यह मामला हिंसक हो उठा. आरोप है कि सीआरपीएफ कर्मियों ने बाद में तंबुओं को आग के हवाले कर दिया. अग भड़कने से रसोई गैस के सिलंडरों में विस्फोट हो गया और कई तंबवओं में भी आग लग गयी.
इस मामले में सीआरपीएफ ने आरोप लगाया कि उनके दस सामुदायिक रसोइयों को आग के हवाले कर दिया गया. लेकिन सीआरपीएफ के इस बयान में कहीं से कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि स्थानीय अधिकारियों का कहना है कि मेडिकल शिविर में एक भी सीआरपीएफकर्मी को इलाज के लिए नहीं ले जाया गया. सीआरपीएफ देश की जिम्मेदारी पुलिस फोर्स है. उससे स्थिति को नियंत्रित करने की उम्मीद की जाती है, न कि माहौल को तनावपूर्ण बनाने या भ्रामिक बयान दे कर माहौल को बिगाड़ने की उम्मीद की जाती है