मर्यादा लांघते शब्दों की राजनीति, गुमनाम और छुटभैये नेताओ को शोहरत,ब्रांडिंग और कभी-कभी पद भी दे देती है।गिरराज उसी के उदाहरण हैं।
–तबस्सुम फातिमा
भाजपा नेता गिरीराज सिंह की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर रंगभेद टिप्पणी के बाद भले उन्हें अमित शाह और जेटली फटकार झेलनी पड़ी हो, मगर यह नहीं भूलना चाहिये कि बिहार के एक मामूली नेता को केंद्रीय मंत्राी बनाने में भी इसी रंगभेद और साम्प्रदायिक भाषा का हाथ रहा है। इन विवादास्पद बयानों की भाषा उस मुखौटे से पर्दा उठाती है जो मुजफ्फरनगर से मुजफ्फरपुर दंगों तक को, एक बेरहम और सुनियोजित षड्यंत्रा के तहत न भूलने वाले इतिहास में परिवर्तित कर देती है।
मुजफ्फरनगर से मुजफ्फरपुर
ऐसी ही भाषा एक वर्ष पूर्व, पश्चिमी उ0प्र0 के संवेदनशील बना दिये गये क्षेत्रा में आमितशाह ने भी बोली थी और चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की गई थी। ‘साम्प्रदायिक दंगों से हमारा वोट बैंक बढ़ता है’ कहने वाले अमित शाह यदि गिरीराज सिंह की नस्ल भेद और साम्प्रदायिक टिप्णियों पर प्रतिक्रिया देते हैं तो यह नहीं भूलना चाहिये कि मुखौटों के पीछे के इतिहास में लगातार ऐसे साम्प्रदायिक शब्दों पर ऐसे लोगों को पुरसकृत किये जाने की भी परिपाटी रही है।
अमित तो शाह निकले
स्पष्ट है, साम्प्रदायिक भाषा के पीछे आरएसएस का खुला समर्थन है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।संघ परिवार के महत्वपूर्ण सदस्य प्रवीण तोगड़िया गुजरात के हिन्दू मुहल्लों में मुसलमानों द्वारा मकान खरीदने पर आपत्तिजनक बयान देते हैं कि मकान पर कब्जा कर लो या आग लगा दो। गिरीराज सिंह भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तान भेजते हैं। अतीत में ‘कटी पतंग, कटा पान, कूटए जाओ पाकिस्तान’ जैसे नारे भी लगाते रहे हैं। असभ्य होती और अमर्यादित भाषा समाज, कलचर से धर्म तक फैल गई है। अभी हाल में साध्वी सरस्वती मिश्रा ने बयान दिया कि ‘मैं हिन्दू लड़कियों से आग्रह करती हूं कि वे मुस्लिम लड़कों से दूर रहें। अगर कोई मुस्लिम लड़का आपके संपर्क आये तो आप उसपर पत्थर बरसाओ।’ भाजपा नेता साध्वी प्राची का बयान भी सुन लें। शेर का एक बच्चा नहीं होता इसलिए हिन्दू के हर परिवार में चार बच्चे होने चाहियें। ‘मैंने 4 बच्चे पैदा करने के लिए कहा है, 40 पिल्ले नहीं।’भारत की नई राजनीति की गवाह अब यही अमर्यादित और अभद्र भाषाएं रह गई हैं। बार-बार भारतीय संस्कृति की दुहाई देने वाला संघ अपने राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए धर्म के विकृत अर्थ को अपना कर भारत की गौरवशाली परम्परा को नुकसान पहुंचा रहा है, तो उस पर नये सिरे से विचार करना होगा। गंगा-जमुनी सभ्यता और समानता के विचार जहरीले बयानों के शोर में खो गये हैं। ऐसे भड़काऊ बयानात आतंकवाद, अलगावाद और विघटनकारी शक्तियों को बढ़ावा दे रहे है। इन नेताओंजहरीली भाषा पर सरकार की चुप्पी से के कारण उसकी प्रसिद्धी के गिराफ को जमीनदोज करके रख दिया है। 2 अप्रैल, ‘आज तक’ टीवी चैनल के सर्वे में बताया गया कि यदि आज चुनाव होते तो भाजपा के पास वह लहर नहीं होती जो 2014 में थी। भाषा की मर्यादा-रेखा पहले भी लांघी जाती रही है। महात्मा गांधी को कांग्रेस का दलाल तक कहा गया। कई मार्क्सवादियों ने सूभाषचन्द्र बोस को जापानी तानाशाह तोजो का कुत्ता कहा। आज़ाद हिन्द पफौज को राक्षस, लुटेरों और हत्यारों की सेना के नाम से याद किया गया। पंडित नेहरू को अमेरिकी साम्राज्यवाद का कुत्ता तक कहा गया और भूतपूर्व कांग्रेसी नेता बलराम जाखड़ ने जयललिता के लिए भैंस शब्द का प्रयोग किया था। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय राजनीति भाषा की तमाम सीमायें लांघ चुकी थीं। साध्वी निरंजन ज्योति हों, साध्वी प्राची या गिरीराज सिंह, महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि क्या राजनीति दबाव में माफी मांगने से उस मांसिकता को बदल सकती है, जहां संकीर्णता और साम्प्रदायिकता की जड़ें गहरी हों?
संघ की चुप्पी
इन भड़कऊ बयानात को संघ या मोदी सरकार का समर्थन नहीं मिलता तो एक के बाद एक नये अश्लील व भड़काऊ भाषण सामने नहीं आते। देश का मुस्लिम और ईसाई तबका यदि शब्दों की टूटती मर्यादाओं के घेरे में स्वयं को असुरक्षित महसूस करता है तो इसका जिम्मेदार कौन है? महत्वपूर्ण सवाल यह भी है कि भाजपा शाशित प्रदेशों और केन्द्र में भाजपा सरकार के होने पर ही, अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमानों पर अभद्र भाषा और इल्ज़ामों का दबाव क्यों बनाया जाता है? भाजपा जब सरकार में नहीं होती तो ऐसे भड़काऊ भाषाओं की सुनामी थम जाती है। सत्ता में आते ही साम्प्रदायिकता का सांढ़ जंगल से निकल कर बाहर सड़कों पर आ जाता है।
घृणा बनाम प्यार
सलमान खान की दबंग में नायिका सोनाक्षी अपने हीरो सलमान से कहती है। ‘थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्यार से लगता है।’ वास्तविकता यह है कि राजनीति अब डराने लगी है। मर्यादा लांघते शब्दों में, अब एक गम्भीर नाम अरविंद केजरीवाल का जुड़ गया है। देश के 68 वर्षाें के उठा-पटक वाले राजनीतिक इतिहास में आम आदमी पार्टी की सुथरी राजनीति पर विश्वास करते हुए दिल्ली की जनता ने 70 में से 67 सीट उस मृलरमैन को देने में हिचक महसूस नहीं की, जिसने बेहतर राजनीति देने के वायदे से समूचे भारत का दिल जीत लिया था। लेकिन नये हालात स्टिंग ने अचानक उस बेदाग राजनीति की पोल खोल दी, जहां अरविंद ‘पिछवाड़े लात मार कर भगा दो’ जैसी भाषा बोलते हुए नजर आये। साम्प्रदायिक बयानबाजियों पर मोदी सरकार चुप है तो लात मारने वाले बयान पर अरविंद केजरीवाल की चुप्पी स्वच्छ और आम आदमी की राजनीति का मुखौटा उतारने के लिए काफी है। विवादों से घिरे अरविंद इस बार माफी मांगना तक भूल चुके हैं। अरविंद के मर्यादा-रेखा लांघते शब्दों ने करोड़ों देशवासियों का दिल तोड़ दिया है।‘थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब राजनीति से लगता है।’ राजनीति के नये पन्ने असुरक्षा के थप्पड़ और भाषा की सनसनाती गोलियों से प्रभावित है। यहां एक हम्माम है और सारे नंगे हैं। किसको दोष दिया जाये[email protected]