कुछ नौकरशाह समाज से इतने कटे होते हैं कि बेसहारा लोगों की बेचारगी पर भी उन्हें रहम नही आता और वह न सिर्फ निर्मम वो लापरवाह हो जाते हैं हैं बल्कि उनकी भाषा भी असंवेदनशील होती है.
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट इन
उत्तर प्रदेश के गृह विभाग के प्रधानसचिव अनिल कुमार गुप्ता ने मुजफ्फरनगर दंगापीड़ितों के मासूम बच्चों की मौत पर जिस निष्ठुरता का परिचय दिया है वह उनके अमानवीय आचरण को ही इंगित करता है. उन्होंने टीवी चैनलों पर कहा कि “मुजफ्फरनगर के कैम्पों में जो बच्चे मरे हैं वो ठंड से नहीं मरे, ठंड से कोई नहीं मरता. अगर ठंड से मौतें होतीं तो साइबेरिया( दुनिया का सबसे ठंड इलाकों में से एक) में एक भी आदमी जीवित नहीं बचता”.
एक आईएएस और उसपर से गृह विभाग के प्रधान सचिव जैसे वरिष्ठ अधिकारी का यह गैरजिम्मेदाराना बयान न सिर्फ चौंकाने वाला है बल्कि काफी असंवेदशील भी है. संभ्रांत जीवन और लाइफ स्टाइल वाले अधिकारी को कड़ाके की ठंड का अनुभव हुआ होता तो वह ऐसी बातें नहीं करते. अगर अनिल गुप्ता को इतना विश्वास है कि बच्चे ठंड से नहीं मरते तो उन्हें उसी मुजफ्फरनगर के शर्नार्थी कैम्प में तीन रात के लिए जा कर समय बिताना चाहिए तब उन्हें अनुभव होगा कि ठंड क्या बला है और ठंड से मौतें कैसे होती हैं.
हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने यह तो स्वीकार कर लिया है कि मुजफ्फरनगर के कैम्पों में 34 बच्चों की मौत हुई है लेकिन सरकार का कहना है कि ये मौतें न्युमोनिया से हुई है. पर सवाल यह है कि सरकार की लापरवाही से हुई इन मौतों की जिम्म्दारी किस पर आती है ?
ध्यान रहे कि मुजफ्फरनगर में हाल ही में हुए दंगों से प्रभावित हजारों परिवार कैम्पों में लाचारी की जिंदगी बिता रहे हैं और उसपर से कोई सरकार उनकी मदद करने के बजाये उनकी मौतों के कारणों पर ही बेतुकी बातें कहने लगे तो ऐसे नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई जरूर की जानी चाहिए.
हालांकि इस संबंध में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का बयान भी अपने नौकरशाह को बचाने वाला ही है.
अखिलेश यादव ने अनील गुप्ता के खिलाफ विभागीय कार्रवाई करने के बजाये उन्हें यह नसीहत दी कि टीवी चैनलों के जमाने में बातें कहते समय शब्दों पर नियंत्रण रखना जरूरी है. लेकिन क्या अखिलेश यादव को यह नहीं पता कि उनके नौकरशाह ने अपने मन के अंदर छिपी हुई बात को सहसा कह दिया है. ऐसे अधिकारियों को सजा मिलनी चाहिए और जरूर मिलनी चाहिए.