अररिया की जनता लोकसभा उपचुनाव के लिए अपना प्रतिनिधि चुनने को तैयार है. 28 वर्ष पुराने इस क्षेत्र में आज तक उपलब्धि के नाम पर 50 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग है. बाढ़ है, तबाही है, कालाजार का प्रकोप है, और जो सबसे ज्यादा है वह है गरीबी. क्या बदलेगी यहां के लोगों की तकदीर?
अब्दुलगनी शेक की कलम से
अररिया: देश के अन्य राज्यों के मुकाबले बिहार पिछड़ा राज्य है लेकिन देश की मुस्लिम आबादी बिहार का एक बड़ा क्षेत्र सीमांचल और जिले अररिया न केवल वंचित है बल्कि अपने गैर और  राजनीतिक नेताओं की चालाकी अय्यारी तसाहुली नाअहली  और सरकारों की अनदेखी के कारण दिनों दिन विकसित होने के बजाय जिले की हालत खराब होती जा रही है.
जिला राजनीतिक शोषण का शिकार हुआ है और बहुत ज्यादा हुआ है लेकिन यहां के भोले  भाले जनता की आंखें नहीं खुलीं स्थानीय नेताओं ने जनता को विकास परियोजनाओं, रोजगार अवसरों, शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा बुनियादी समस्याओं, पानी, बिजली और सड़कों के बजाय, अनावश्यक जाति समुदाय की चक्ररव्यूह में फंसाऐ रखा है स्थानीय नेताओं ने बड़ी अय्ययारी और चाालाकी के साथ लगभग तीन दशक तक जिले के लाखों आबादी को आपस , लड़ाई झगड़ा करवा के कलक्ट्रेट थाना और अदालतों मेंं उलझाए रखा और जरूरी समस्याऔं पर सोचने  का अवसर भी नहीं मिला.
25 साल में 50 कदम 
भोले भाले लोगों को आज से पच्चीस साल पहले अररिया कल्याण और विकास के लिए वर्ष 1990 में पूर्णिया से विभाजित करके अररिया को जिला का दर्जा दिया गया था. अररिया को जिला बने पच्चीस साल हो गये लेकिन विकास के नाम पर केवल 40 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग और सुविधाहीन  सीमांचल एक्सप्रेस, इसी ट्रेन से जिले के हजारों युवा रोजी रोटी केे लिये रोजाना राजधानी दिल्ली और दुसरे बड़े शहरों के लिये पलायन करते हैं.
यहाँ छोटे मोटे कारोबार के लिये मार्किट बाज़ार  तक नहीं मानो विकास की राहें बिलकुल बंंद है अवरुद्ध है जिले की बागडोर एक लंंबे समय तक दो ही राजनीतिक खानवादा में रहा अब भी क्षेत्र की राजनीतिक मीटर पे वह  घराना हावी है  वोट के ठेकेदार भी जिले पिछड़ेपन की वजह सरकारें और नेता हैं हर चुुुुनाव में जनता सब  गिले शिकवे भूल कर वोट करती है बेसुध जनता को भला विकास रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली और मकान से क्या मतलब.
मुसीबत जदा लोग
यही कारण है  राजनीतिक पार्टी  और नेता यहाँ के दिशाहीनता का भरपूर उपयोग करते हैं कोसी और नेपाल नदी की नदियों से हर साल यहां के किसानों और जनता को लाखों-करोड़ों का वित्तीय नुकसान उठाना पड़ता है सालों की महनत पर पानी फिर जाता है और सारे अरमान पानी के भेंट चढ़  जाता है. हजारों एकड़ की फसलें तबाह हो जाती हैं पहले से बदहाल बहुत कम क्षेत्रफल के मालिक किसानों जमा पूँजी भी खत्म जाता है. कमर सीधी नहीं हो पाती है कि अगले साल फिर बाढ़ का कहर बरपा हो जाता है.
पिछले साल 2016 की विनाशकारी बाढ़ ने तो वह जुल्म ढाया कि पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिया घरों में बांस बांस पानी घुस आया था आदमी मछली की तरह तैर रहे थे किसानों को खातिर खाह मदद  तक ​​ नहीं मिली है जी आर की राशि अभी तक  सभी बाढ़ पीड़ितों को भी नहीं मिला है सैलाब में  में धराशायी हुए घरों के लिए सरकार ने मरम्मत राशि देने का वादा किया था लेकिन उसकी कोई सुन गुन  नहीं है. स्थानीय नेता भी राहत पैकेज के लिए सरकार से अपील करने से परहेज करते हैं सरकार और नेता भी जनता को मजबूर बस देखना चाहता है जिले में हर साल बाढ़ से जिस तरह तबाही मचती है इससे बचा जा सकता है बाढ़ की रोकथाम के लिए नदियों को जोड़ा जा सकता है गाद साफ करवा पानी खेती के लिए सुरक्षित किया जा सकता है बाढ़ के पानी का संग्रहण किया जासकता है लेकिन स्थानीय नेताओं और जिले के विधान परिषद् के सदस्यों  और राज्य सरकारों सहित, इसमें कोई भूमिका नहीं है। बाढ़ की रोकथाम के लिये उनके पास कोई विजन नहीं है जनता भी राहत पैकेज से खुश होकर मूकदर्शक बनी हुई ही है.
संसाधनों से वंचित जिले कमज़ोर कंधे पर 30 लाख आबादी ज़रूर है लेकिन जीवन की रमक बातिल है जनता की एक बड़ी आबादी कालाज़ार, हैजा, एड्स जैसी जान लेवा बीमारियों की चपेट में है जिला आधे से अधिक किशोर बच्चे युवा कुपोषण के शिकार हैं नवजात मृत्युदर में दिनोंदिन बढ़ रही है अररिया फारबिसगंज सदर अस्पताल केवल बिल्डिंग है आधे से अधिक डॉक्टरों के पद खाली हैं ओ पी डी में पैरा सीटा मोल अलावा जनता को दवाएं उपलब्ध नहीं होती ही आंकड़े के अनुसार 30  लाख की आबादी पर  एक  सदर असपताल एक
2 रेफरल अस्पताल ,199 उप स्वास्थ्य केंद्र और जिले में 30 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है, जहां नियमित उपचार के इलावा सब काम होता है शिक्षा का भी हश्र बदतर है एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार जिले की साक्षरता दर महज 54० 53 है कुल 786 मिडिल स्कूल है जबकि 1339 प्राथमिक मध्य विद्यालय और 314 प्राथमिक स्कूल उच्च माध्यमिक शिक्षा के लिए भी छात्रों को पलायन करना पड़ता है जिले के 218 पंचायत और 9 ब्लॉक और 2 नगर परिषद में कुल 95 हाई स्कूल ही है जो अपग्रेटेड है इस के अलावा कई हाई स्कूल में इमारत तक नहीं है शिक्षकों की कमी तो है ही जिले में कुल 6 सरकारी कॉलेज है जो केवल अररिया और फारबिसगंज कॉलेज में छात्रों कला और अन्य महत्वहीन विषय में दाखिला ले पढ़ाई कर सकते हैं क्योंकि इन कॉलेजों में लखनऊ की सिक्योरिटीज खाली हैं, लेकिन आररिया कॉलेज में पिछले तीन सालों से विज्ञान विषयों के कोई अध्यापक नही है।
अलबत्ता इन कालेजों से छात्र हर साल पास आउट हो रहे हैं उच्च और तकनीकी शिक्षा में जिला बिल्कुल पिछड़ा हुआ है तकनीकी के नाम पर महज दो आईटीआई है जहां पलम्बरिंग और इसी तरह के अन्य छोटी शिल्प सीखलाई जाती है इसके अलावा मेडिकल कॉलेज और एग्रीकल्चर कॉलेज की कोई कल्पना ही नहीं है यहाँ है उच्च शिक्षा के लिये मासूम बच्चों को भी पलायन करना पडता है इस के  अलावा आजादी के सात दशक बाद भी  कल कारखाना न अब तक स्थापित नहीं हो सका है मक्का और अन्य उपजाऊ फसलों पर अगर ईमानदाराना विचार किया गया तो यहां छोटे बड़े उद्योग की शुरुआत हो सकती है  इस क्षेत्र के लोग भी समृद्ध हो सकते हैं।
मगर यह मुद्दे अररिया लोक सभा उप चुनाव में  है बल्कि विकास का मुद्दा यहाँ सिरे से गायब है पिछड़े पन की मार झेल रहे अररिया की जनता को यह हक है कि वह अप ने हक हुकूक के लिये अपने और जिले की तरक्की के लिये ठोस कदम उठाएंगे और दल जात पात मजहब धर्म के बजाय अररिया के विकास के लिये अपना बहुमूल्य समय निकाल कर वोट करेंगे!

By Editor


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