बिहारी महाभारत में ‘सर्वपार्टी समभाव’ का दौर चल रहा है। इस महाभारत में कोई किसी का दुश्मन नहीं है। सब अवसर के यार हैं। भाजपा ने टिकट काटा तो राजद या कांग्रेस से परहेज नहीं। राजद में दाल नहीं गली तो जदयू या भाजपा से भी परहेज नहीं। संभावित उम्मीदवार की बात छोडि़ए, पार्टी के नेता ही डुबकी मारते देर नहीं कर रहे हैं। लोजपा, रालोसपा या हम जैसी पार्टियों का कोई व्यावहारिक ढांचा नहीं है। रामविलास पासवान, उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी पार्टी के नेता नहीं हैं। ये पार्टी के पर्याय हैं। बल्कि इन नेताओं की पार्टी है। ये डुबकी पटना में मारेंगे और निकलेंगे मोकामा। आप एनडीए में खोजते रहेंगे और वे महागठबंधन में गले मिल रहे होंगे।
वीरेंद्र यादव
हम उम्मीदवारों की बात कर रहे थे। सांसद हों या लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारी के दौर में शामिल नेता हों, सब अपनी-अपनी दावेदारी जता रहे हैं। आज हमने पूर्व सांसद मंगनीलाल मंडल, पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया और विधायक बंटी चौधरी से अनौपचारिक बातचीत की। सभी चुनाव में उम्मीदवारी के दावों को अपने-अपने ढंग से व्याख्या कर रहे हैं। सबके अपने-अपने दावे हैं। गठबंधनों के पेंच में सभी पक्षों के दावेदार अलबला रहे हैं। किस पार्टी के खाते में कौन सीट जाएगी, कौन होगा उम्मीदवार। दावेदार भी इसी निर्णय का इंतजार कर रहे हैं। दावेदारी कमजोर नहीं पड़ जाये, इसको लेकर सभी सतर्क हैं। भाजपा सांसदों की सांस सांसत में पड़ी है। अमित शाह की गाज किसके माथे पर गिरेगी, कोई नहीं जानता है। इसलिए सभी अपने बचाव की राह तलाश रहे हैं।
ठबंधन के कारण एक ही सीट पर कई-कई दावेदार हैं। दावेदारी के इस ‘ब्लाइंड रेस’ में न मंजिल तय है, न दूरी। सभी अलबला रहे हैं। कोई देह रगड़ रहा है तो कोई एड़ी। पार्टियों के मठाधीश इस ब्लाइंड रेस से गदगद हैं। मठाधीशों को उम्मीदवार नहीं, पहलवान की तलाश है। चुनाव जीतने, बूथ लूटने और वोट खरीदने वाले पहलवान चाहिए। ऐसे पहलवानों की कमी नहीं है। अपनी योग्यता साबित करने के लिए रैलियां कर रहे हैं। मठाधीशों की आरती उतार रहे हैं। क्षेत्रों का कोई भरोसा नहीं है। इसलिए नेता का भरोसा हासिल करना चाहते हैं। हालांकि अंधकार छंटने के लिए लंबा इंतजार करना होगा।