प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने लंदन में पत्रकारों से बात की. वहां के पत्रकारों ने भारत में बढ़ती असहिष्णुता पर सवाल दागे. ऐसे में ओम थानवी यह पूछ रहे हैं कि मोदी ने जो जवाब वहां दिया उसी इश्यु पर वह भारत में क्यों खामोश रहे ?
प्रधानमंत्री ने लंदन में पत्रकारों से रूबरू हुए; भारत में नहीं हुए। वहां उनसे बढ़ती हिंसा और असहिष्णुता के बारे में पूछा गया, उन्होंने संविधान, गांधी और बुद्ध की दुहाई दी और कहा कानून अपना काम करेगा; यह बात भारत में हिंसा और उसके सरोकार में पनपे आंदोलन के जवाब में तुरंत यहाँ क्यों नहीं कही? यहाँ प्रतिरोध को मैन्युफैक्चर्ड या फरजी करार दिया गया था, वहां ऐसा नहीं कहा; हम यहाँ के स्टैंड को सही मानें या वहाँ के?
भारत के टीवी चैनलों के खुशगवार तेवर भी प्रायोजित माहौल सा बनाते प्रतीत होते हैं।
उन्होंने मोदी के खिलाफ हुए प्रदर्शनों को खास खबर नहीं माना, ब्रिटेन के चैनलों ने माना; हमारे चैनलों ने प्रदर्शनकारियों से विरोध के कारण जानने की कोशिश नहीं की, पर मोदी के स्वागत में खड़े लोगों से बात कर ‘भारत का शेर’ आदि नारे हमें सुनवा दिए; वहां ब्रिटेन के 200 से ज्यादा लेखकों ने हिंसक असहिष्णुता और अभिव्यक्ति के कुंठित माहौल के प्रति जो सरोकार व्यक्त किया, उसे भी खबरों में वाजिब जगह नहीं मिली।
‘मोदी-मोदी’ के जाप वाले चीयरलीडर ‘पेड’ हो सकते हैं, पर टीवी तो स्वायत्त हैं और अपने खर्च पर खबरें दे रहे हैं! जो होता है, वह क्यों न दिखाएं? वह सही है या गलत, अच्छा है या बुरा, यह दर्शक भी तो तय कर सकते हैं!