भारतीय प्रशासनिक सेवा या भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति कैडर के बाहर दूसरे राज्यों में भी होती है। अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति सामान्य प्रक्रिया है। यह संयोग है या राजनीतिक विवशता कि नीतीश कुमार के राज में दूसरे राज्यों से बिहार प्रतिनियुक्ति पर आने वाले अधिकारियों में कुर्मी जाति को प्राथमिकता मिलती रही है। अभी प्रतिनियुक्ति पर तैनात तीन से दो आइएएस अधिकारी कुर्मी जाति के ही हैं।
बिहार ब्यूरो
नीतीश राज में कुर्मी एक बड़ा फैक्टर था। वह जीतनराम मांझी राज भी कायम है। राज्यसभा सांसद आरसीपी सिंह भी उत्तर प्रदेश कैडर में आइएएस अधिकारी थे। नीतीश कुमार उन्हें प्रतिनियुक्त पर बिहार लाए थे। इसके बाद उन्हें अपना प्रधान सचिव बनाया। प्रधान सचिव बनने के बाद उनकी राजनीतिक शक्ति में काफी इजाफा हुआ और एक वक्त ऐसा भी आया, जब प्रशासनिक व राजनीतिक सत्ता के केंद्र आरसीपी सिंह बन गए। उन्होंने अपनी प्रशासनिक क्षमता व संपर्क के आधार पर केंद्र में बिहार का हस्तक्षेप बढ़ाया और इसका लाभ नीतीश कुमार को मिला। बाद में उन्हें राज्य सभा में भेज दिया गया। सांसद के रूप में सत्ता और संगठन दोनों स्तरों पर उनकी बात सुनी जाती है और निर्णय प्रक्रिया में उनकी भागीदारी काफी होती है।
फिलहाल बिहार सरकार के वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार, तीन आइएएस अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर हैं। इसमें दो कुर्मी और एक कुशवाहा है। मनीष कुमार वर्मा अभी पटना के डीएम हैं और संजय कुमार सिंह मुख्यमंत्री के सचिव हैं। जबकि कुशवाहा जाति के अभिजीत सिन्हा फिलहाल निदेशक मध्याह्न भोजन में पदस्थापित हैं। संजय कुमार सिंह दिंसबर, 2008 में पांच वर्षों के लिए आए थे और उनका वह कार्यकाल पूरा हो गया है। लेकिन उनका अवधि विस्तार हुआ या नहीं, इसकी कोई सूचना साइट पर उपलब्ध नहीं है। नीतीश राज में कुर्मी अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति का प्रशासनिक या राजनीतिक प्रभाव क्या हुआ, यह भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। इससे यह तो तय था कि बिहार में प्रशासिनक सेवा में पिछड़ी जाति के लोगों की संख्या काफी कम थी और मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार को अपने सामाजिक आधार के अनुरूप प्रशासनिक अधिकारी नहीं मिल रहे थे। इस कारण उन्हें प्रतिनियुक्ति पर बुलाना पड़ा और इसमें भी उन्होंने सामाजिक व जातीय संतुलन का ख्याल रखा।
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