एक दौर में आतंक का पर्याय रहे बिंदुूसिंह पिछले 20 वर्षों से बऊर जेल में बंद है पर उसके आतंक का साम्राज्य बाहर कायम है. सूत्र बताते हैं कि 12 जून को पुलिस ने उसे बेरहमी से पीटा है. आखिर क्या है माजरा? सुनिए उसकी पूरी कहानी.
विनायक विजेता की रिपोर्ट
बीते कई वर्षो से पटना के बेऊर जेल में बंद बिंदू सिंह जेल से ही बिहार और झारखंड में अपना आपराधिक साम्राज्य चला रहा है।
1990 से पहले बांकीपुर और बाद में बेऊर जेल सहित बिहार-झारखंड की कई जेलों में एक लंबे अर्से से बंद बिन्दू सिंह को 1993 में एक बार पंद्रह दिनों का पेरोल तब मिला था जब जहानाबाद स्थित उसके गांव दौलतपुर में माओवादियों ने उसके भाई फेकन सिंह, पिता और बहन की हत्या कर दी थी।
तो ऐसी है बिंदू की कहानी
आज की भाकपा माओवादी तब मजदूर किसान संग्राम समिति के नाम से जानी जाती थी जिसकी पूरे मध्य बिहार में पैठ थी। फेकान सिंह की हत्या भी नक्सलियों ने विभत्स तरीके से की थी। एक रात पूरे दौलतपुर गांव को घेरने के बाद फेकन के पिता और बहन को जहां नक्सलियों ने घर के बाहर गोली मार दी वहीं छत पर सोए और हमेशा राइफल लेकर सोने और चलने वाले फेकन सिंह ने एक घंटे तक नक्सलियों से अकेले लोहा लिया। जब उसकी गोलियां खत्म होन को आई तो वह अपने घर के एक कमरे में बंद हो गया। पूराने जमाने का बना इस घर का दरवाजा इतना मजबूत था कि नक्सली लाख प्रयास के बाद भी उसे तोड़ नहीं पाए। बाद में नक्सलियों ने उस कमरे की छत पर एक सुराख बनाकर उस कमरे के अंदर जलती हुई लुकबारी फेकने लगे। कमरे में फैलते धुएं से जब फेकन सिंह का दम घुटने लगा तो वह अपने पास बची तीन-कारतूस को अपनी रायफल में लोड कर दरवाजा खोल फायरिंग करता हुआ बाहर की ओर भागा तभी नक्सलियों ने उसे भून डाला और बाद में उसका सर काटकर गांव के ही एक पेड़ में टांग दिया।
जेल दर जेल का सफर
1993 में घटी इस घटना के समय बिन्दू सिंह पटना के बांकीपुर जेल में बंद था जहां से वह अपने पिता भाई और बहन के श्राद्धकर्म के लिए पंद्रह दिनों के लिए पेरोल पर रिहा हुआ था। बिन्दू सिंह के पेरोल पर रिहा होने के बाद उसके कई शागिर्द हथियारों के साथ लगातार पंद्रह दिनों तक बिन्दू सिंह के साथ रहे। जेल में बंद बिन्दू सिंह को इसके बाद एक बार बीच में और पुन: 2002 में जमानत मिली। इस बीच कंकड़बाग में बेगुसराय निवासी एक दारोगा के मकान पर कब्जा कर रहने वाले बिन्दू सिंह की ही राह पर चलने वाले उसके बेटे की हत्या उसी के मकान के नीचे के दूकानदार ने झड़प के बाद कर दी। जेल से जमानत पर निकलने के बाद बिन्दू सिंह ने उस दूकानदार की हत्या कर दी। वर्ष 2002 में बिन्दू सिंह को स्टेनगन और अन्य हथियारों के साथ जहानाबाद के उसी अमरपुर गांव से गिरफ्तार किया गया जहां उसके पांच साथियों की नक्सलियों ने जिंदा जला डाला था।
उसके बाद से बिन्दू सिंह लगातार जेल में है पर उसके आतंक में कोई कमी नहीं है। 8 अक्टूबर 2010 को भी पुलिस ने बिन्दू के वार्ड में छापेमारी की थी तब पुलिस ने उसके पास से 35 हजार नकद और गले में पहने लाखों रुपये मूल्य के सोने के चेन बरामद किया था। जेल से ही अपना आपराधिक साम्राज्य चला रहे बिन्दू सिंह का नेटवर्क बिहार से लेकर झारखंड तक फैला है। बीते दिनों बिन्दू सिंह के कई गुर्गे की गिरफ्तारी के बाद पटना पुलिस इस कुख्यात को लेकर काफी चिंतित है। सूत्र बताते हैं कि बीते 12 जून को बेऊर जेल पहुंचे एसएसपी और सिटी एसपी से भी बिन्दू उलझ गया जिसके बाद पुलिस ने बिन्दू सिंह और अजय वर्मा की इतनी पिटाई कर दी कि दोनों अपराधी अबतक ठीक से चल भी नहीं पा रहें हैं।
बहरहाल अस्सी के दशक में नक्सलियों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए हथियार उठाने वाला बिन्दू सिंह की 90 के शुरुआती दशक में अपराध की दुनिया में प्रवेश के बाद राज्य में कितनी सरकारें आई और गर्इं पर बिन्दू सिंह के आतंक में कोई कमी नहीं आई। जेल रुपी अभेद किले में महफूज बिन्दू आज भी जेल से ही अपना साम्राज्य चला रहा है।