हरियाणा में कई प्रभावशाली लोग रॉबर्ट वाड्रा को ढाल बना आईएएस अशोक खेमका को ठिकाने लगाने में लगे हैं.तहलका में राहुल कोटियाल की लिखी रिपोर्ट हम अपने पाठकों के लिए प्रकाशित कर रहे हैं.
अक्टूबर, 2012 का पहला हफ्ता. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली में एक प्रेस कॉफ्रेंस बुलाई. इसमें उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा पर आरोप लगाया कि बहुराष्ट्रीय कंपनी डीएलएफ ने उन्हें सैकड़ों करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया है जिसके बदले में हरियाणा सरकार ने डीएलएफ को उपकृत किया है. इसके बाद कुछ राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने भी रॉबर्ट वाड्रा और डीएलएफ के बीच हुई इस डील के बारे में छापा. हरियाणा के एक आईएएस अधिकारी अशोक खेमका ने इन आरोपों को गंभीरता से लिया और इसकी जांच के लिए संबंधित अधिकारियों से रिकॉर्ड तलब किए. खेमका उस वक्त हरियाणा के चकबंदी एवं भूमि रिकॉर्ड के महानिदेशक तथा पंजीकरण के महानिरीक्षक के पद पर तैनात थे. कुछ होता इससे पहले ही 11 अक्टूबर की रात को करीब दस बजे उनका ट्रांसफर कर दिया गया. मगर अपना कार्यभार छोड़ने से पहले उन्होंने रॉबर्ट वाड्रा की जमीन से संबंधित प्राथमिक जांच पूरी कर ली. जांच में उन्हें कई अनियमितताएं मिलीं. उन्होंने 15 अक्टूबर को संबंधित जमीन का दाखिल-खारिज निरस्त करने के आदेश दिए और अपना नया कार्यभार संभालने चले गए.
खेमका के लिए न तो ट्रांसफर होना नया था और न ही किसी प्रभावशाली व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई करना. बतौर आईएएस अपने 21 साल के कार्यकाल में उनके 40 से ज्यादा बार ट्रांसफर हो चुके हैं. अपने इस कार्यकाल में उन्होंने कई प्रभावशाली लोगों के खिलाफ कार्रवाइयां भी की हैं. लेकिन इस बार मामला देश के सबसे प्रभावशाली परिवार के दामाद से जुड़ा था. यह मामला मीडिया में ऐसा छाया कि अशोक खेमका को अपने साहस के लिए सारे देश में पहचान मिल गई.
तरह-तरह के आरोप
आज मीडिया में खेमका से जुड़े मुद्दों को ‘अशोक खेमका बनाम रॉबर्ट वाड्रा’ की तरह पेश किया जा रहा है. खेमका पर कभी अपनी कार्यक्षमता से बाहर जाकर काम करने तो कभी अपना काम ठीक से नहीं करने के आरोप लग रहे हैं. हरियाणा सरकार, जो पिछले कई साल से खेमका को लगातार एक विभाग से दूसरे विभाग में ट्रांसफर करती आ रही थी, उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई तक करने की तैयारी में है. आम धारणा यही है कि खेमका के साथ ऐसा इसलिए किया जा रहा है कि उन्होंने वाड्रा के खिलाफ कार्रवाई करने का साहस किया. लेकिन यदि खेमका के पिछले कुछ समय में किए गए कार्यों पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि यह मामला सिर्फ ‘खेमका बनाम रॉबर्ट वाड्रा’ का नहीं है. दरअसल अपने साहसिक कार्यों के चलते खेमका ने हरियाणा में कई प्रभावशाली लोगों को अपना दुश्मन बना लिया है जो अब कई तरीकों से उन पर पलटवार कर रहे हैं. ऐसे में रॉबर्ट वाड्रा उन सभी खेमका-विरोधियों के लिए ढाल बन गए और पहली नजर में यह मामला ‘खेमका बनाम वाड्रा’ के रूप में नजर आने लगा.
खेमका से संबंधित एक मामले को जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय तक ले जाने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं, ‘रॉबर्ट वाड्रा मामले से कई बड़े मामलों का खुलासा खेमका जी ने अपने कार्यकाल में किया है. उन्होंने हरियाणा सरकार के कई बड़े नेताओं और आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई एवं शिकायतें की हैं. ये सभी लोग किसी भी तरह से खेमका जी पर लगाम लगाकर उन्हें निष्क्रिय करने की तैयारी में थे. ऐसे में रॉबर्ट वाड्रा जैसा बड़ा नाम बीच में आ गया तो इन सभी ने इसे खेमका को परेशान करने की छूट के तौर पर ले लिया.’
1991 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका को 1993 में अपनी पहली पोस्टिंग मिली. उनका गृह कैडर हरियाणा था जहां उस वक्त भजन लाल की सरकार थी. अपनी कार्यशैली के कारण शुरुआत से ही ट्रांसफरों का सिलसिला उनसे जुड़ गया. भजन लाल के मुख्यमंत्री रहते लगभग ढाई साल में खेमका का आठ बार ट्रांसफर हुआ. इसके बाद बंसी लाल की सरकार बनी. लगभग सवा तीन साल की इस सरकार में खेमका का छह बार ट्रांसफर किया गया. साल 1999 से और 2005 तक रही चौटाला सरकार में खेमका के कुल 12 ट्रांसफर हुए. फिर 2005 से आज तक हुड्डा सरकार में भी खेमका लगभग 18 ट्रांसफर आदेश पा चुके हैं. खेमका के साथ काम कर चुके हरियाणा कैडर के अधिकारी बताते हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा में शायद ही किसी अन्य अफसर के इतने ट्रांसफर हुए हों.
बेझिझक कार्रवाई
खेमका जिस भी विभाग में गए उन्होंने वहां चल रही गड़बड़ियों पर न सिर्फ खुल कर बोला बल्कि दोषियों पर बेझिझक कार्रवाई भी की. उनके आदेश पर कई लोगों का निलंबन हुआ, कइयों के खिलाफ जांच हुई, कइयों को जुर्माने भुगतने पड़े और कई मामले सरकार ने उनकी शिकायत के बाद भी दबा दिए. रॉबर्ट वाड्रा के मामले में भी खेमका ने अपनी तरफ से बेझिझक कार्रवाई की. इसका परिणाम यह हुआ कि उनके आदेश के चार दिन बाद ही हरियाणा सरकार ने एक जांच समिति का गठन कर दिया. हरियाणा के तीन वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों की इस समिति का काम था खेमका के आदेश की जांच करना. समिति ने अपनी जांच पूरी की और पाया कि खेमका का आदेश सही नहीं था. जांच के दौरान इस समिति ने एक बार भी खेमका से संपर्क नहीं किया, न ही उनसे कोई सवाल ही किया गया. समिति की इस जांच रिपोर्ट के जवाब में खेमका ने 105 पन्नों की एक रिपोर्ट बनाई. इसमें उन्होंने वाड्रा से संबंधित मामलों की जांच के लिए बनाई गई समिति पर सवाल करते हुए लिखा कि समिति में उन्हीं लोगों को चुना गया जिन्होंने खुद वाड्रा को व्यापारिक लाइसेंस जारी किए थे. तीन सदस्यीय समिति के एक सदस्य केके जालान के बारे में उन्होंने लिखा कि 18 जनवरी, 2011 को जब वाड्रा के लाइसेंस का नवीनीकरण किया गया उस वक्त जालान ही संबंधित विभाग के प्रधान सचिव थे. इसके साथ ही अपनी इस रिपोर्ट में खेमका ने व्यापारियों-राजनेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से हो रही लूट के बारे में भी विस्तार से लिखा है. इस रिपोर्ट की एक प्रति तहलका के पास मौजूद है.
ट्रांस्फर में मनमानी
2009 में हरियाणा सरकार द्वारा बनाई गई नियमावली के अनुसार किसी भी आईएएस अधिकारी को दो साल से पहले ट्रांसफर नहीं किया जा सकता. लेकिन खेमका के कुल कार्यकाल और कुल ट्रांसफरों का यदि औसत निकालें तो वह छह महीने से भी कम बनता है. साथ ही बीते कुछ समय में तो अशोक खेमका का एक साल से भी कम समय में चार-चार बार ट्रांसफर हुआ. अपनी रिपोर्ट में इन ट्रांसफरों और इनके कारणों का जिक्र खेमका ने किया है.
अदर्स वॉयस कॉलम के तहत हम अन्य मीडिया की खबरों को साभार प्रकाशित करते हैं. यह रिपोर्ट हमने तहलका से साभार ली है.