सरकार आईएएस और आईपीएस की तर्ज पर अब आईएमएस यानी इंडियन मेडिकल सर्वस के गठन पर विचार कर रही है.पढिए क्या फर्क पड़ेगा आईएमएस के गठन से.
ऋतिका चोपड़ा, नई दिल्ली
क्या आपने आईएएस या आईपीएस की तरह इंडियन मेडिकल सर्विस के बारे में सुना है? केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड ट्रेनिंग (डीओपीटी) के भेजे गए उस प्रस्ताव पर गौर कर रहा है, जिसमें अलग से सरकारी डॉक्टरों का एक पूल बनाने की बात कही गई है। इंडियन मेडिकल सर्विस का प्रस्ताव कई सालों से लंबित है। लेकिन, अब लगता है कि मोदी सरकार में इसे अंतिम रूप दे दिया जाएगा।
मंत्रालय के अधिकारियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि डीओपीटी ने दो प्राइवेट पार्टी प्रपोजल भेजे थे, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय से इंडियन मेडिकल सर्विस बनाए जाने पर विचार करने के लिए कहा गया है। प्रस्ताव में आईएएस और आईपीएस की तर्ज पर डॉक्टरों के लिए ऑल इंडिया सर्विस शुरू किए जाने की बात है। इसमें आईएएस और आईपीएस की तरह ही ट्रेनिंग, वर्किंग कंडीशंस और अन्य सुविधाओं देने का प्रस्ताव है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्द्धन ने इस मामले में टिप्पणी करने से मना कर दिया, लेकिन मामले की जानकारी रखने वाले सूत्रों की मानें तो हर्षवर्द्धन इस प्रस्ताव से सहमत हैं।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘इस प्रस्ताव पर नए सिरे से विचार करने का फैसला किया गया है। हमने अधिकारियों को इस मामले से जुड़ी पुरानी फाइलों को बाहर निकालने का आदेश दिया है।’ पब्लिक हेल्थकेयर मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में है। खुद प्रधानमंत्री इस सेक्टर पर किए जाने वाले खर्च को दोगुना करने का वादा कर चुके हैं। इंडियन मेडिकल असोसिएशन के मुताबिक आईएमएस प्रस्ताव पिछले करीब तीन दशक से लटका हुआ है।आईएमएस पर आईएमए की वर्किंग कमिटी के हेड और यूरोलॉजिस्ट डॉ राजीव सूद ने कहा, ‘डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनल ऐंड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्म्स ने इस सेवा के बारे में 25 जनवरी 1977 को नोटिफिकेशन जारी कर दिया था लेकिन बाद में इसे रद्द कर दिया गया। उसके बाद कई कमिटियों ने इसकी सिफारिश की। यहां तक कि 1997 में 5वें वेतन आयोग ने भी इसकी सिफारिश की थी।’
मेडिकल कम्युनिटी भी कई वजहों से आईएमएस के पक्ष में है। पहला कारण तो यह है कि अगर डॉक्टरों को आईएएस की तरह की सुविधाएं और वेतन मिलने लगे, तो हेल्थ सर्विस की क्वॉलिटी सुधरेगी। इससे डॉक्टरों का पलायन रोकने में भी मदद मिलेगी। इससे पब्लिक हेल्थकेयर में डॉक्टरों की कमी को पूरा करने में मदद मिलेगी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 1,700 लोगों पर एक डॉक्टर है, जबकि 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर होना चाहिए था। नेशनल हेल्थ प्रोग्राम को भी बेहतर तरीके से लागू किया जाना इस सेवा को शुरू किए जाने की प्रमुख दलीलों में से एक है।
अदर्स व्यॉस कॉलम के तहत हम अन्य मीडिया की खबरें प्रकाशिक करते हैं. यह खबर इकोॉनामिक टाइम्स से साभार
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