राजनीतिक विश्लेषक और पत्रकार सुरेंद्र किशोर मतदान प्रतिशत में हुए इजाफे के बारे में बता रहे हैं कि ऐसा होने से जातीय और साम्प्रदायिक वोट बैंक को खत्म करने में मदद मिलेगी. पढिए उनके इस तर्क का क्या आधार है
यदि ‘वोट बैंक’ के कुप्रभाव को कम या खत्म करना हो तो मतदान का प्रतिशत बढ़ाना अत्यंत जरूरी है। लोकतंत्र प्रेमियों के लिए यह खुशी की बात है कि बिहार में भी मतदान का प्रतिशत बढ़ रहा है। इस लोकसभा चुनाव के विभिन्न चरणों में देश के अन्य हिस्सों में भी मतदान का प्रतिशत बढ़ा है। बिहार में तो गुरुवार को हुए मतदान में 56 प्रतिशत वोट पड़े। इन इलाकों में 2009 के लोकसभा चुनाव में सिर्फ 39 प्रतिशत वोट पड़े थे। यह उत्साहवर्धक बात है। पर, इसे और भी बढ़ाना होगा तभी जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक का कुप्रभाव खत्म किया जा सकेगा।
वोट बैंक और बुद्धिजीवी
वैसे तो अनेक बुद्धिजीवी व प्रबुद्ध मतदातागण जातीय व सांप्रदायिक वोट बैंक की बुराइयों की चर्चा समय-समय पर करते रहते हैं। पर उसको बेअसर करने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठाते। उनमें से कुछ लोग मतदान के दिन वोट डालने के बदले छुट्टियां मनाने लगते हैं।
यह देखा जाता है कि अधिकतर विवादास्पद उम्मीदवार जातीय या सांप्रदायिक वोट बैंक के सहारे ही जीत हासिल कर लेते हैं। आम तौर पर ऐसे लोगों के कारण ही देश में अच्छी सरकारें नहीं बन पातीं।
अच्छी सरकार नहीं रहने का कुप्रभाव आमजन पर अधिक पड़ता है। क्योंकि आमजन सरकार पर अधिक निर्भर रहते हैं। वैसे भी मतदान करना लोगों का संवैधानिक अधिकार है। पर, अब इसे अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य भी समझने का अवसर आ गया है। वोट बैंक की बुराई से लोकतंत्र को मुक्त करने का कर्तव्य। जब समाज के अच्छे लोग बड़ी संख्या में मतदान नहीं करेंगे तो विवादास्पद उम्मीदवारों को भी जिता देने के लिए थोड़े से निहित स्वार्थी लोगों के मत भी निर्णायक बन सकते हैं।
अन्य कई चुनाव क्षेत्रों में अभी मतदान बाकी हैं। मतदान तो सबको करना ही चाहिए। पर जिस दिन कम से कम अस्सी से नब्बे प्रतिशत मतदातागण अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने लगेंगे उस दिन वोट बैंक की राजनीति को भारी झटका लगेगा।आम तौर से किसी भी वोट बैंक में शामिल मतदाताओं की संख्या 14-15 प्रतिशत से अधिक नहीं होती है। अस्सी-नब्बे प्रतिशत में 15 प्रतिशत मतदाता आखिर कितना असरदार साबित हो सकेंगे?हां, 40-50 प्रतिशत ही मतदान होने पर जरूर कुछ जगहों पर 14-15 प्रतिशत मत भी निर्णायक साबित हो सकते हैं।
दैनिक भास्कर से साभार