मुम्बई में लाखों मराठियों की जमघट से भाजपा की फडणवीस सरकार के पसीने छूट गये हैं. कुछ मीडिया इस भीड़ को आठ लाख बता रहे हैं तो कुछ 9 लाख. लेकिन बड़ा सवाल है कि मराठे सड़क पर आये क्यों?
मराठों का यह 58वां साइलेंट प्रोटेस्ट है और यह विरोध वे सरकारी नौकरियों व अपने समुदाय के लिए शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण हेतु जता रहे हैं. लाखों मराठा सड़क पर उतर कर सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक और कृषि से जुड़ी खुद की समस्याओं व मांगों को रख रहे हैं. मराठा समुदाय से ही आने वाले कांग्रेस नेता व पूर्व मुख्यमंत्री पृृथ्वीराज चह्वाण ने कहा है कि मैंने इन्हें आरक्षण दिया था, लेकिन मौजूदा सरकार इसकी उपेक्षा कर रही है. इस प्रोटेस्ट मार्च को नरायण राणे का भी समर्थन है जो कभी शिवसेना के नेता हुआ करते थे और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे. राणे फिलवक्त कांग्रेस में हैं.
भगवाधारियों ने खड़ी की भाजपा व शिवसेना के सामने चुनौती
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण को ले कर मराठों ने गत एक वर्ष में 57 रैलियां की हैं. यह उकी 58 वीं रैली थी. आम तौर पर आरक्षण की मांग करने वाले संगठनों के हाथ में भगवा रंग के झंडे नहीं होते, लेकिन मराठियों ने भगवा रंग के झंडे थाम कर फडणवीस सरकार के समक्ष इसलिए भी चुनौती बढ़ा दी है क्योंकि उनकी पार्टी भगवा रंग का ही प्रतिनिधित्व करती है. मीडिया खबरों के अनुसार मराठियों ने मुम्बई में पहले से लगे शिवसेना के बैनर भी फाड़ डाले. इस तरह से कहा जा सकता है कि मराठियों का यह विरोध शिवसेना और भाजपा दोनों के लिए खतरे की घंटी है.
मराठों ने इस प्रदर्शन में नारा दिया है : एक मराठा, लाख मराठा. मराठों ने कहा है किसानों के बच्चे से आर्थिक संकट के कारण कोई विवाह नहीं करना चाहता है. उनकी दलील है उच्च शिक्षण संस्थानों में उनका नामांकन नहीं हो पाता है और उनके पास नौकरियां नहीं हैं. मालूम हो कि मराठा महाराष्ट्र का एक प्रभावी जातीय समुदाय है. शरद पवार, अशोक चह्वाण, पृथ्वीराज चह्वाण जैसे कई प्रमुख नेता इस वर्ग से आते हैं. सतारा-सांगली इलाकों में मराठों की बहुलता है और वे पूरे राज्य की आबादी में अकेले 33 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं. ऐसे में वे राजनीतिक रूप से बेहद अहम हैं और कोई पार्टी या सरकार उन्हें कभी नाराज नहीं करना चाहती है.