नरेंद्र मोदी सरकार के विस्तार के बाद भाजपा ने अपनी जातीय प्राथमिकता तय कर दी है। पार्टी ने तय कर दिया है कि बहुसंख्यक व सामाजिक रूप से मजबूत जातीयों के भरोसे ही उसे विधानसभा चुनाव की वैतरणी पार करनी है। कैबिनेट विस्तार के बाद मोदी सरकार में बिहार से मंत्रियों की संख्या आठ हो गयी है। इनमें से कोई महादलित या अतिपिछड़ा नहीं है। हालांकि इस बार भी ब्राह्मणों को जगह नहीं मिल पायी।
बिहार ब्यूरो प्रमुख
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बिहार के आठ में से छह मंत्री लोकसभा के सदस्य हैं, जबकि दो राज्य सभा के सदस्य हैं। आठ मंत्रियों में दो राजपूत जाति के हैं, जबकि कायस्थ और भूमिहार एक-एक हैं। तीन पिछड़ी जाति के और एक दलित हैं। राधामोहन सिंह व राजीव प्रताप रुडी राजपूत, रविशंकर प्रसाद कायस्थ और गिरिराज सिंह से भूमिहार हैं। रामविलास पासवान दलित हैं, जबकि शेष तीन पिछड़ी जातियों के हैं। उड़ीसा निवासी बिहार से राज्यसभा सदस्य धर्मेंद्र प्रधान पिछड़ी जाति से आते हैं, जबकि रामकृपाल यादव व उपेंद्र कुशवाहा भी पिछड़ी जातियों से आते हैं।
ब्राह्मण भी हाशिए पर
नरेंद्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में अतिपिछड़ा वोटों के लिए खुद को अतिपिछड़ा नेता के रूप में प्रस्तुत किया था। चुनाव प्रचार में खुद नमो और पार्टी इस मुद्दा को प्रमुखता से उठाया था। लेकिन जब सत्ता में भागीदारी का मौका आया तो अतिपिछड़ों से पार्टी ने किनारा काट लिया। इसी तरह महादलितों को भी भाजपा ने तरजीह नहीं दी। किसी ब्राह्मण को भी मंत्री नहीं बनाया। कुल मिलाकार भाजपा ने विधानसभा चुनाव को लेकर अपना समीकरण बनाया है और उसी हिसाब से मंत्रियों की चयन भी किया है।
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