तो आप जज साहब से डर गये. वैसे, जज साहबान से बड़े साहब ही डरते हैं. डरिये. पर अवाम से क्यों नहीं डरते आप? क्या आप अवाम की जरूरतों से तब डरेंगे जब अवाम भी जज साहब की तरह आपको अपने कठघरे में बुलायेंगे?
नौकरशाही डेस्क
यह खबर जब अखबारों में आयी कि एक जज साहब ट्रैफिक जाम में फंस गये क्योंकि मुख्यमंत्री का काफिला वहां से गुजरा. जब जज साहब को इस जाम से परेशानी हुई तो उन्होंने खुद संज्ञान लिया. हाईकोर्ट, पटना के जज न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण अदालत पहुंचे तो सबसे पहले जो काम किया वह कि उन्होंने जिला प्रशासन के तमाम आला अधिकारियों को तलब किया.
‘योर ऑनर अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी’
प्रधान अपर महाधिवक्ता ललित किशोर, पटना के कमिश्नर, डीएम, एसएसपी, ट्रैफिक एसपी, सिटी एसपी सहित तमाम आला अधिकारियों के साथ कोर्ट में हाजिर हुए. प्रधान अपर महाधिवक्ता ने खेद व्यक्त करते हुए कहा कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा. मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की सूचना समाचार पत्रों में देने के अलावा हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को भी दी जाएगी.
अब सवाल यह है कि न्यायमूर्ति शरण जो कर सकने का हक रखते हैं, उन्होंने वह किया. लेकिन उन हजारों लाखों लोगों का ख्याल आला अफसरान कब और कैसे रखेंगे. माना कि मुख्यमंत्री की सुरक्षा और उनके समय का ख्याल रखना लाजिमी है, पर इतनी ही लाजमी उन जिंदगियों को भी बचाना है जो एम्बुलेंस से अस्पतालों की ओर जा रही होती हैं. लेकिन सीएम प्रोटोकॉल के नाम पर हजारों लोगों को रोक दिया जाता है. भले ही न्यायमूर्ति शरण जाम में खुद फंस कर यह महसूस कर गये कि ऐसे जाम का शिकार जब वह हो सकते हैं तो आम लोग भी इससे इतने ही पीड़ित होते होंगे.
अब अदालत में प्रशासन के अफसरों ने सर झुका कर ‘योर ऑनर अब ऐसी गलती कभी नहीं होगी’ कहा तो ऐसा लगा कि सचमुच अब अवाम के लिए भी कुछ होगा. पर सचमुच क्या कुछ होगा या अवाम जाम में अपनी जिंदगी को पिसवाते रहेंगे?